mahakumb

‘एक साथ चुनाव’ की दिशा में बढ़ता देश

Edited By ,Updated: 17 Dec, 2024 05:31 AM

the country is moving towards simultaneous elections

‘एक देश-एक चुनाव’ संबंधी विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी के साथ ही नरेंद्र मोदी सरकार ने इस दिशा में एक कदम और बढ़ा दिया है। संकेत हैं कि संसद के जारी शीतकालीन सत्र में ही इन विधेयक को  पेश भी किया जा सकता है। संभावना है कि विधेयक को पेश करने के बाद...

‘एक देश-एक चुनाव’ संबंधी विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी के साथ ही नरेंद्र मोदी सरकार ने इस दिशा में एक कदम और बढ़ा दिया है। संकेत हैं कि संसद के जारी शीतकालीन सत्र में ही इन विधेयक को  पेश भी किया जा सकता है। संभावना है कि विधेयक को पेश करने के बाद संसदीय समिति को भेजा जाएगा, ताकि प्रावधानों पर व्यापक विचार-विमर्श किया जा सके। सरकार समिति के माध्यम से विधेयक पर राज्य विधानसभा अध्यक्षों से भी सलाह चाहती है। दरअसल ‘एक देश- एक चुनाव’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पुराना एजैंडा है, लेकिन इस मुद्दे पर शुरू से गहरे राजनीतिक मतभेद हैं। भाजपा और उसके मित्र दलों के अलावा ज्यादातर राजनीतिक दल इस सोच का विरोध करते रहे हैं।

कैबिनेट द्वारा 12 दिसम्बर को ‘एक देश- एक चुनाव’ संबंधी विधेयक को मंजूरी पर भी विपक्ष से तीखी प्रतिक्रिया आई। दिल्ली और पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने ‘एक्स’ पर लिखा कि देश को ‘एक देश-एक शिक्षा’ और ‘एक देश- एक स्वास्थ्य व्यवस्था’ की आवश्यकता है। ‘एक देश-एक चुनाव’ भाजपा की गलत प्राथमिकता है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने टिप्पणी की कि सरकार ‘एक देश- एक चुनाव’ की बात करती है, लेकिन एक साथ दो राज्यों में चुनाव कराने में भी असमर्थ है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कहा कि ‘एक देश- एक चुनाव’ क्षेत्रीय आवाजों को मिटा देगा। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे असंवैधानिक और संघीय ढांचे के विरुद्ध बताया।
उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा कि प्रस्तावित कानून सत्ता को केंद्रीकृत करने और भारत के लोकतंत्र को कमजोर करने का प्रयास है। 

उधर भाजपा और उसकी अगुवाई वाले राजग के घटक दलों ने इसका स्वागत करते हुए कहा कि इससे राजकोष पर बोझ कम होगा। ‘एक देश-एक चुनाव’ के पक्ष में ये तर्क भी दिए जाते हैं कि मतदान के प्रति मतदाताओं की उदासीनता कम होगी, बार-बार चुनाव के चलते वोट डालने के लिए प्रवासी श्रमिकों के काम छोड़ कर जाने से आपूर्ति शृंखला और उत्पादन में आने वाले व्यवधान दूर होंगे तथा नीति-निर्माण में निश्चितता आएगी। बार-बार चुनाव के चलते लागू होने वाली आदर्श आचार संहिता से सरकारी कामकाज में आने वाले ठहराव से मुक्ति मिलेगी तथा चुनाव सम्पन्न करवाने के लिए सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों की तैनाती से उनके मूल काम पर पडऩे वाले असर से भी बचा जा सकेगा। ध्यान रहे कि ‘एक देश-एक चुनाव’ की सोच को साकार करने के लिए मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले 1 सितंबर, 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति बनाई थी, जिसने 15 मार्च,  2024 को अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी, जिसे 18 सितम्बर को कैबिनेट ने मंजूरी भी दे दी। तभी से इस बाबत संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक पेश किए जाने की संभावना जताई जा रही है। 

कोविंद समिति ने अपनी सिफारिशों को लागू करने के लिए कुल 18 संविधान संशोधनों का सुझाव दिया है, जिनमें से ज्यादातर के लिए राज्य विधानसभाओं की सहमति की जरूरत नहीं होगी। मसलन, लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने पर संसद से ही संविधान संशोधन पर्याप्त होगा, जबकि सिंगल वोटर लिस्ट और  सिंगल वोटर कार्ड के लिए संविधान संशोधन को आधे से अधिक राज्य विधानसभाओं की मंजूरी की जरूरत होगी। विपक्ष के मुकाबले राजग ज्यादा राज्यों में सत्तारूढ़ है, यह देखते हुए ऐसा कर पाना ज्यादा मुश्किल नजर नहीं आता। अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए कोविंद समिति ने 7 देशों : स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, जापान, जर्मनी, फिलीपींस, बैल्जियम और इंडोनेशिया की चुनाव प्रणाली का तुलनात्मक अध्ययन किया। वैसे इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि ‘एक देश- एक चुनाव’ कोई अनूठा विचार नहीं है। 1951 से ले कर 1967 तक भारत में भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते रहे। बाद में राजनेताओं की चुनावी चालों और राजनीतिक अस्थिरता के चलते ही यह प्रक्रिया भंग हुई। 

कोविंद समिति का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने से संसाधनों की बचत होगी, सामाजिक सामंजस्य बढ़ेगा तथा विकास कार्य भी बाधित नहीं होंगे। अपनी सिफारिशों को लागू करने के लिए कोविंद समिति ने एक कार्यान्वयन समूह गठित करने का भी प्रस्ताव रखा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि एक साथ चुनाव  से चुनावी खर्च काफी घट जाएगा, आचार संहिता के चलते प्रशासन पर पडऩे वाले प्रभाव से भी बचा जा सकेगा, लेकिन उसके खतरे भी हैं। विधानसभा चुनाव अक्सर राज्य के और स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं। एक साथ चुनाव कराने पर क्या राष्ट्रीय मुद्दे हावी और स्थानीय मुद्दे गौण नहीं हो जाएंगे?  इसलिए इस संवेदनशील मामले में राजनीतिक आम राय बना कर पूरी तैयारी के साथ आगे बढऩा ज्यादा बेहतर होगा।-राज कुमार सिंह

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!