राजनीति की गिरती साख किसी से छिपी नहीं रही

Edited By ,Updated: 06 Aug, 2024 05:30 AM

the declining credibility of politics is no longer hidden from anyone

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की संसद में ऐसे असंसदीय आचरण के उदाहरण ज्यादा नहीं मिलेंगे। अपने विशेषाधिकारों के प्रति संवेदनशील रहने वाले सांसदों में ही संसद की गरिमा के प्रति सजगता नजर नहीं आती। चुनावी और राजनीतिक सभाओं में बोले जाने वाले राजनेताओं...

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की संसद में ऐसे असंसदीय आचरण के उदाहरण ज्यादा नहीं मिलेंगे। अपने विशेषाधिकारों के प्रति संवेदनशील रहने वाले सांसदों में ही संसद की गरिमा के प्रति सजगता नजर नहीं आती। चुनावी और राजनीतिक सभाओं में बोले जाने वाले राजनेताओं के बिगड़ैल बोल अब लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर में सुनाई पडऩे लगे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर द्वारा बिना नाम लिए ही नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की जाति पर कटाक्ष करने के कुछ अंशों को आसन द्वारा सदन की कार्रवाई से निकाल देना बताता है कि वे असंसदीय थे, पर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उस भाषण की प्रशंसा से साफ  है कि अपने सांसदों के आचरण के प्रति दलों का नेतृत्व भी बहुत संवेदनशील नहीं। 

18वीं लोकसभा के चुनाव के पहले से ही विपक्ष जाति जनगणना को नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा के विरुद्ध मुद्दा बना रहा है। कभी अमीर-गरीब तो कभी विभिन्न वर्गों को ही जाति बता कर भाजपा इसकी काट करती रही है। निकट भविष्य में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि हमारे चुनावजीवी राजनीतिक दल और नेता अपने हर उस मुद्दे को धार देते रहेंगे जो उनके पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण कर सकता हो, पर जिस तरह संसदीय गरिमा और सार्वजनिक शिष्टाचार की सीमाएं लांघी जा रही हैं, वह चिंताजनक है। लोकसभा में 29 जुलाई को बजट पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने बजट तैयार करने वाले नौकरशाहों में दलित, आदिवासी, ओ.बी.सी. और अल्पसंख्यकों की संख्या पर सवाल उठाते हुए कटाक्ष किया कि बजट प्रक्रिया की शुरूआत में जो हलवा बनता और बंटता है, उसके फोटो में तो इन वर्गों का कोई भी अफसर नजर नहीं आ रहा। 

नेता प्रतिपक्ष ने टिप्पणी की कि दो-तीन प्रतिशत लोग हलवा बनाते हैं और आपस में बांट लेते हैं, शेष आबादी को कुछ नहीं मिल रहा। इस पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सिर पकड़ कर हंसने लगीं तो राहुल ने टिप्पणी की कि मैडम, यह हंसने की बात नहीं है। बजट निर्माण समेत सरकार के हर काम को जातीय प्रतिनिधित्व के  नजरिए से देखना कितना उचित है और यह सोच कहां जाकर रुकेगी, यह व्यापक विमर्श का विषय होना चाहिए। राहुल के व्यंग्य बाणों का सत्तापक्ष की ओर से जवाब अपेक्षित ही था, पर उस प्रक्रिया में तमाम मर्यादाएं लांघ जाना भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर से अपेक्षित नहीं था, जो पिछली मोदी सरकार में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रह चुके हैं। ठाकुर ने राहुल गांधी का नाम तो नहीं लिया, पर कटाक्ष किया कि जिसकी जाति का पता नहीं, वह गणना कराने की बात करता है। आम व्यवहार में भी ऐसी भाषा पर तीव्र प्रतिक्रिया होती है। ऐसे में संसद में हंगामा होना ही था। अनुराग के कटाक्ष पर राहुल बोलने के लिए खड़े तो हुए, पर आपत्ति जताने के बजाय कहा कि आप लोग मुझे चाहे जितनी गाली दो, अपमानित करो, पर मैं जाति जनगणना से पीछे हटने वाला नहीं। 

राहुल ने यह कह कर सबको चौंका दिया कि उन्हें अनुराग से इस टिप्पणी के लिए माफी भी नहीं चाहिए, पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने ठाकुर को आड़े हाथों लिया। अखिलेश ने इस तरह किसी की जाति पूछने पर कड़ी आपत्ति जताई और फिर व्यंग्य किया कि इस बार मंत्री न बनाए जाने का दर्द उनके चेहरे पर झलक रहा है। भाजपा ने राहुल गांधी पर ऐसा तीखा कटाक्ष पहली बार नहीं किया है। भाजपा ‘युवराज’ और ‘शहजादा’ ही नहीं, ‘पप्पू’ तक कह कर उनका मजाक उड़ाती रही है, पर लोकसभा में अनुराग की टिप्पणी तमाम हदें पार कर जाने जैसा है। फिर भी संभव था कि दो-चार दिन उनकी आलोचना के बाद टिप्पणी नेताओं के बिगड़े बोल मान कर भुला दी जाती, लेकिन खुद प्रधानमंत्री ने अनुराग के भाषण को शेयर करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर जिस तरह उसकी प्रशंसा की, उसने ‘इंडिया’  गठबंधन, खासकर कांग्रेस को भड़का दिया है। मोदी ने ‘एक्स’ पर लिखा कि मेरे युवा और ऊर्जावान साथी अनुराग ठाकुर का भाषण अवश्य सुनना चाहिए, जो तथ्यों और व्यंग्य का सही मिश्रण है तथा ‘इंडी एलायंस’ की गंदी राजनीति को बेनकाब करता है। 

मोदी की इस टिप्पणी के बाद बात प्रधानमंत्री के विरुद्ध संसद में विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव तक पहुंच गई है। विशेषाधिकार प्रस्ताव का परिणाम तो समय बताएगा, लेकिन विपक्ष की पूरी कोशिश और रणनीति इसके जरिए खुद को जाति जनगणना और सामाजिक न्याय की राजनीति का चैंपियन बताने की रहेगी। जानकार मानते हैं कि जिन मुद्दों के चलते हाल के लोकसभा चुनाव में भाजपा बहुमत के लिए तेदेपा और जद (यू) पर निर्भर हो गई तथा ‘इंडिया’  गठबंधन 234 सीटों तक पहुंच गया, उनमें संविधान बदलने और आरक्षण समाप्त करने की आशंकाओं के अलावा जाति जनगणना भी प्रमुख था। भाजपा को विपक्ष के मंसूबों का अहसास है। इसीलिए वह जाति जनगणना के मुद्दे पर कांग्रेस के अतीत पर सवाल उठा रही है। बताया जा रहा है  कि  किस तरह देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ही जाति जनगणना को नकार दिया था और फिर किस तरह कांग्रेस सरकारें मंडल आयोग की सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डालती रहीं। 

इन आरोपों पर कठघरे में खड़ी कांग्रेस सफाई देने के बजाय अतीत की गलतियों के लिए माफी मांगते हुए अब राजनीतिक प्रतिबद्धता के साथ आगे बढऩे की बात कर रही है। जातीय आकांक्षाओं को ङ्क्षहदुत्व के कमंडल में समाहित कर ओ.बी.सी. वर्ग के बड़े हिस्से का समर्थन पाने में सफल होती रही भाजपा खुद प्रधानमंत्री मोदी को सामाजिक न्याय के सबसे बड़े चेहरे के रूप में पेश करती है। अतीत के आइने में सत्तापक्ष और विपक्ष की राजनीति को देखते हुए देश की जनता सामाजिक न्याय के प्रति किसकी प्रतिबद्धता पर भरोसा करेगी, इसका पहला संकेत पाने के लिए हमें इस साल के आखिर और अगले साल के शुरू में होने वाले हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार और दिल्ली के विधानसभा चुनावों का इंतजार करना पड़ेगा। बेशक लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन है, लेकिन नेताओं को चुनावी मुद्दों को धार देते समय भी संसदीय गरिमा और सार्वजनिक शिष्टाचार की मर्यादा का पालन करना ही चाहिए। राजनीति की गिरती साख किसी से छिपी नहीं है। उसे और रसातल में पहुंचाने के बजाय सुधारने की जरूरत है।-राज कुमार सिंह
 

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