Edited By ,Updated: 29 Aug, 2024 05:39 AM
पिछली बार ‘किंगमेकर’ रही जजपा के आजाद समाज पार्टी (आसपा) से गठबंधन के साथ ही हरियाणा में चुनावी बिसात बिछ चुकी है।
पिछली बार ‘किंगमेकर’ रही जजपा के आजाद समाज पार्टी (आसपा) से गठबंधन के साथ ही हरियाणा में चुनावी बिसात बिछ चुकी है। इनैलो और बसपा के बीच पहले ही गठबंधन हो चुका है। इनैलो-बसपा में 53-37 का सीट बंटवारा हुआ तो जजपा-आसपा में 70-20 का हुआ है। जाहिर है, यह देवीलाल परिवार में शक्ति-प्रदर्शन भी है, पर अब ‘आप’ के पास अकेले चुनाव मैदान में उतरने के अलावा कोई विकल्प नहीं। वैसे हरियाणा में सत्ता की जंग दरअसल ‘हैट्रिक’ करने और उससे बचने की जंग ही होगी। दूसरा शासनकाल पूरा कर रही भाजपा सत्ता की ‘हैट्रिक’ करना चाहेगी, जबकि 10 साल से सत्ता से वनवास झेल रही कांग्रेस अपनी पराजय की ‘हैट्रिक’ से बचना चाहेगी। बाकी दलों की भूमिका एक-दो सीट जीत कर या 2-4 प्रतिशत वोट काट कर इस जंग को दिलचस्प बनाने की रहेगी।
हरियाणा की राजनीति दशकों तक 3 चर्चित लालों बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल के इर्द-गिर्द घूमती रही। देवीलाल और बंसीलाल के दलों से गठबंधन में भाजपा जिस हरियाणा में राजनीति करती रही, उसी में दस साल से सत्ता पर काबिज होना छोटी उपलब्धि नहीं। आज तीनों चर्चित लाल-परिवार के कुछ सदस्य भी भाजपा का झंडा उठाए हुए हैं। 2014 में इनैलो ने 19 सीटों के साथ मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल किया था, जबकि 10 साल से सत्तारूढ़ कांग्रेस तीसरे स्थान पर फिसल गई थी, लेकिन 2019 आते-आते सब कुछ बदल गया। देवीलाल परिवार में विभाजन से जजपा जन्मी और इनैलो में ऐसी भगदड़ मची कि कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा मिल गया। अब 2024 के विधानसभा चुनाव से पहले जजपा में भी वैसी ही भगदड़ है।
10 में 6 विधायक उसे अलविदा कह चुके हैं। कभी भी यह संख्या 7 हो सकती है। हाल के लोकसभा चुनाव में जजपा उम्मीदवार जमानत तक नहीं बचा पाए, जबकि 10 में से 5 लोकसभा सीटें जीत कर कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया। विधानसभा क्षेत्रों की दृष्टि से देखें तो कांग्रेस ने कुल 90 में से 46 में बढ़त हासिल की, जबकि भाजपा ने 44 में। फिर भी हर चुनाव और उसके मुद्दे अलग होते हैं। 2019 में ही भाजपा ने लोकसभा की सभी 10 सीटें जीतीं, लेकिन चंद महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में 46 सीटों का बहुमत का आंकड़ा भी नहीं छू पाई और 10 सीटें जीतने वाली नई-नवेली जजपा की सत्ता में भागीदारी की लॉटरी खुल गई। इसलिए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 46 विधानसभा क्षेत्रों में मिली बढ़त को ज्यादा भाव नहीं दिया जाना चाहिए।
चुनाव से पहले होने वाले दलबदल का लाभ भाजपा और कांग्रेस, दोनों को हुआ है, लेकिन 10 साल पहले जिस अंतर्कलह के चलते कांग्रेस की दुर्गति हुई थी, उससे वह आज भी मुक्त नहीं। 10 साल मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा को नेता प्रतिपक्ष और उन्हीं की पसंद से उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बना कर आलाकमान ने उन्हें ‘फ्री हैंड’ का ही संदेश दिया है। परिणामस्वरूप हुड्डा विरोधियों के समक्ष कमल थामने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। कांग्रेस छोडऩे वाले नेताओं की फेहरिस्त लंबी है, लेकिन अभी भी कुमारी सैलजा और रणदीप सिंह सुर्जेवाला के रूप में 2 दिग्गज ऐसे मौजूद हैं, जिनकी आलाकमान तक सीधी पहुंच है। दोनों ही राष्ट्रीय महासचिव हैं। सिरसा से सांसद चुने जाने के बावजूद सैलजा ने विधानसभा चुनाव लडऩे का संकेत देकर बता दिया है कि वह मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं।
कांग्रेस द्वारा किसी को ‘सी.एम. फेस’ पेश करने के आसार कम ही हैं, लेकिन रोहतक से कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा जिस तरह ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ यात्रा निकाल रहे हैं, उसे भूपेंद्र हुड्डा द्वारा अपने बेटे को स्थापित करने के रूप में देखा जा रहा है। जवाब में सैलजा भी यात्रा अलग निकाल रही हैं। यह खेमेबाजी टिकट वितरण में भी दिखेगी। अब जजपा ने भी नगीना के सांसद चंद्रशेखर रावण की आसपा से गठबंधन कर जाट-दलित समीकरण का दांव चल दिया है। भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़े मुकाबले में ये दल शक्ति संतुलन के जरिये चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की हैसियत तो रखते ही हैं। वैसे बहुकोणीय मुकाबला भाजपा के लिए अनुकूल साबित होगा, क्योंकि सत्ता विरोधी वोट बंट जाएंगे।
विधानसभा चुनाव में हार-जीत का अंतर भी बहुत ज्यादा नहीं रहता। फिर भी इस सियासी दंगल में सबसे अहम् होंगे चुनावी मुद्दे। हरियाणा में बेरोजगारी की उच्च दर अर्से से चर्चा में है। महंगाई सर्वव्यापी है, लेकिन भाजपा के लिए असल चुनौती होंगी। किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के दिल्ली में अनशन से बना माहौल तथा ‘अग्निवीर’ योजना। विवादास्पद कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमा पर साल से भी लंबे चले किसान आंदोलन का ठिकाना हरियाणा ही था।
अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में सबसे ज्यादा मैडल हरियाणा के खिलाड़ी ही लाते हैं। सेना में भागीदारी वाले राज्यों में भी हरियाणा अग्रणी है। ऐसे में कांग्रेस चुनावी लाभ उठाने से क्यों चूकेगी? याद रहे कि राहुल गांधी ने किसानों को मिलने के लिए संसद भवन बुलाया तो ओलंपिक के फाइनल मुकाबले से पहले अयोग्य घोषित कर दी गई चॢचत पहलवान विनेश फोगाट का स्वागत करने दीपेंद्र हुड्डा एयरपोर्ट पहुंचे।
‘अग्निवीर’ योजना समाप्त करने का वायदा कांग्रेस लोकसभा चुनाव में ही कर चुकी है। ऐसा नहीं कि राज्य और केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को इन चुनौतियों का अहसास नहीं। सुधारात्मक कदम उठा कर सकारात्मक संदेश देने की कोशिश हो रही है। हाल में एन.पी.एस. की जगह यू.पी.एस. भी मंजूर की गई है, पर ‘इतनी देर’ से की जाने वाली इन ‘कुछ कोशिशों’ का असर चुनाव परिणाम ही बताएंगे। -राज कुमार सिंह