मानवता के दुश्मनों को समाज से अलग करने की जरूरत

Edited By ,Updated: 01 Oct, 2024 06:27 AM

the enemies of humanity need to be separated from society

धार्मिक जलूसों और आयोजनों में जिस तरह की अराजकता और शोर-शराबा पिछले कुछ वर्षों से दक्षिण में देखने को मिल रहा है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। हिंदू-मुसलमानों के पवित्र धार्मिक अनुष्ठानों में कुछ शरारती लोग नफरत की आग में बह जाते हैं और आम लोग अंधश्रद्धा...

धार्मिक जलूसों और आयोजनों में जिस तरह की अराजकता और शोर-शराबा पिछले कुछ वर्षों से दक्षिण में देखने को मिल रहा है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। हिंदू-मुसलमानों के पवित्र धार्मिक अनुष्ठानों में कुछ शरारती लोग नफरत की आग में बह जाते हैं और आम लोग अंधश्रद्धा के प्रवाह में बहकर अनजाने में इन उपद्रवों में शामिल हो जाते हैं। इस प्रकार जान-माल की भारी क्षति तो होती है, लेकिन आपसी विश्वास और सांप्रदायिक सौहार्द की जो हानि होती है, उसकी भरपाई असंभव है। अगर दोनों तरफ के कुछ शरारती लोगों की पारदर्शी तरीके से जांच की जाए तो आसानी से पता चल जाएगा कि इन लोगों का मूल स्रोत एक ही है। 

ये ‘सज्जन’ दोनों तरफ से अपना सिंहासन का खेल खेलने में माहिर हैं। क्या भारत में सदियों से सभी धर्मों के लोग एक साथ नहीं रहते आ रहे? क्या एक-दूसरे की धार्मिक आस्था का सम्मान करना और विभिन्न धार्मिक आयोजनों में खुशी-खुशी भाग लेना हमारे देश की विशिष्ट और गौरवपूर्ण पहचान नहीं रही है? सभी धर्मों के लोगों ने सभी मतभेदों को किनारे रखकर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और सम्माननीय बलिदान दिया। मानवता के दुश्मन और देशद्रोहियों को पूरे समाज और समुदाय से अलग करने की सख्त जरूरत है। 

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि केंद्र में 3 बार भाजपा की मोदी सरकार बनने के बाद इस घटना में तेजी आई है। इस घिनौने कार्य में आर.एस.एस. और उसके सहयोगी संगठन, गोदी मीडिया, भाजपा की राज्य सरकारें और सरकारी तंत्र पूरा सहयोग कर रहे हैं। गौ रक्षक दल, ङ्क्षहदू युवा वाहिनी, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठन मुख्य रूप से ऐसे कार्यों के लिए ही बनाए गए हैं। अब न्यायपालिका, सरकारी एजैंसियां, पुलिस प्रशासन और सशस्त्र बल भी इन सांप्रदायिक विचारों से चिंताजनक हद तक प्रभावित हो गए हैं। एक मामले की सुनवाई के दौरान कर्नाटक उच्च न्यायालय के माननीय विद्यासाचर शिरिसानंदा ने बेंगलुरु के मुस्लिम बहुल इलाके ‘गोरी पलाया’  को ‘पाकिस्तान’ कहा और दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि ने ‘धर्मनिरपेक्षता को भारतीय की बजाय यूरोपीय’ कहा है। 

इस अवधारणा को बताने से देश के संविधान की मूल अवधारणाओं को नष्ट करने के निरर्थक प्रयासों के बारे में कोई संदेह नहीं रह जाता है। इसलिए, जब भी धार्मिक सुरक्षा के नाम पर किसी विशेष धर्म के लोगों के खिलाफ हिंसक कृत्य किए जाते हैं, तो अक्सर कानून प्रवर्तन मशीनरी का व्यवहार संविधान-कानून के अनुसार पीड़ितों के प्रति तटस्थ और सुरक्षात्मक नहीं होता है, बल्कि दर्शकों या अपराधियों की पीठ ठोकने वाला होता है। भाजपा के नेतृत्व वाली मोदी 3.0 सरकार, अपने पहले 2 कार्यकालों के विपरीत, सहयोगियों पर अधिक निर्भरता वाली गठबंधन सरकार है, क्योंकि भाजपा का अपने दम पर 400 सीटें जीतने का दावा 240 पर रुक गया है। इसके बावजूद, संघ ने 1925 में अपनी स्थापना के समय जो धर्म-आधारित लोकतंत्र राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा था, उसे धीमा  करने की बजाय तेज करना जारी रखा है। 

अब गोदी मीडिया के एंकर टी.वी. पर बहस के दौरान कहते हैं या इस तरह से सवाल-जवाब में हस्तक्षेप करते हैं कि किसी भी नकारात्मक घटना या ङ्क्षहसक घटना के लिए अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को ही दोषी माना जाए। हिंदुत्व संगठन अल्पसंख्यक समुदाय को देश विरोधी गतिविधियों को प्रायोजित करने के लिए जिम्मेदार ठहराना अपना ‘सर्वोच्च कत्र्तव्य’ मानते हैं। अत: अल्पसंख्यक समुदाय के कट्टरवादी एवं शरारती तत्वों के राष्ट्रविरोधी एवं असामाजिक कार्यों से सचेत रहने की आवश्यकता है, जो धर्म के नाम पर अधर्मी कार्य करते रहते हैं। ये लोग मासूम बच्चों को धार्मिक आधिपत्य के अधीन कर अवैज्ञानिक, पिछड़ी विचारधारा की ओर धकेलने तथा महिलाओं की दुर्दशा को धर्म के नाम पर उचित ठहराने के लिए दुष्प्रचार करते रहते हैं। 

इस तथाकथित धार्मिक गुरुओं के एकतरफा प्रचार और महिला विरोधी मानसिकता का ही नतीजा है कि तमाम सरकारी दावों के बावजूद देशभर में महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार की दिल दहला देने वाली घटनाएं कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रही हैं। ‘सामूहिक हत्याओं’ की भयावहता देखकर हर समझदार इंसान की रूह कांप जाती है। हरियाणा के फरीदाबाद में तथाकथित ‘गौरक्षकों’ द्वारा 12वीं कक्षा के ङ्क्षहदू छात्र आर्यन मिश्रा की हत्या से पता चलता है कि अपराधियों के लिए कोई धर्म, क्षेत्र या राष्ट्रीयता नहीं है। अंधविश्वास बढ़ रहा है। बिहार में दलितों पर अत्याचार की एक और दिल दहला देने वाली घटना घटी है, जहां गुंडों ने दलितों की पूरी बस्ती को जलाकर राख कर दिया। अल्पसंख्यकों, दलितों, महिलाओं, आदिवासियों, वंचित जनसंख्या समूहों और गरीब जनता को यह पीड़ा क्यों झेलनी पड़ रही है, जबकि सरकार समर्थित लोग और धनाढ्य वर्ग गलत तरीके से जुटाई गई पूंजी से खुशी और ऐशो-आराम से रह रहे हैं। 

कमर तोड़ महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी, भुखमरी, स्वास्थ्य एवं शैक्षणिक सुविधाओं की कमी और असुरक्षा से लोगों का ध्यान हटाने के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने, वक्फ बोर्ड संशोधन कानून बनाने, एक राष्ट्र-एक चुनाव का शगूफा छोडऩे, मुस्लिमों की बढ़ती जनसंख्या जैसे अनावश्यक मुद्दों को जानबूझकर प्रचारित किया जा रहा है, ताकि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में भाजपा को अधिक वोट और सीटें मिल सकें। पंचायत से लेकर लोकसभा तक सभी चुनाव एक साथ कराने का कानून पारित करने से एक बहुराष्ट्रीय, बहुधार्मिक और विविध सांस्कृतिक और भाषाई देश के लिए आवश्यक मजबूत संघीय ढांचे की नींव हिल जाएगी और आर. एस.एस. एकात्मक शैली की सरकारी संरचना की स्थापना का मार्ग प्रशस्त होगा। 

इस उद्देश्य से भारतीय संविधान में ऐसे परिवर्तन करने होंगे, जिससे संविधान का मूल स्वरूप ही बदल जाएगा। जो लोग यह तर्क देते हैं कि अलग-अलग समय पर चुनाव कराने का खर्च अनिवार्य रूप से इस हद तक जाएगा कि चुनावों के माध्यम से लोकप्रिय जनमत द्वारा चुनी गई सरकार को किसी अन्य राजनीतिक ढांचे से बदल दिया जाएगा, जहां चुनाव कराने की कोई आवश्यकता नहीं है। दरअसल, मोदी सरकार और संघ परिवार की मंशा कुछ और ही है, जो वे भारत की जनता को धोखा देना चाहते हैं। इस तथ्य को जितनी जल्दी हो सके समझ लिया जाए, यह देश व समाज की भलाई के लिए बेहतर होगा।-मंगत राम पासला

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