कुर्सी का मोह ही हरियाणा में कांग्रेस की हार का बड़ा कारण

Edited By ,Updated: 12 Oct, 2024 05:06 AM

the greed for power is the main reason for congress s defeat in haryana

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और लोकसभा सदस्य कुमारी शैलजा के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर असंतोष ने हरियाणा में पार्टी की हार में अहम भूमिका निभाई है। दीपक बाबरिया, उदय भान, भूपेंद्र हुड्डा और दीपेंद्र हुड्डा ने हरियाणा में पार्टी के...

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और लोकसभा सदस्य कुमारी शैलजा के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर असंतोष ने हरियाणा में पार्टी की हार में अहम भूमिका निभाई है। दीपक बाबरिया, उदय भान, भूपेंद्र हुड्डा और दीपेंद्र हुड्डा ने हरियाणा में पार्टी के प्रचार अभियान की अगुवाई की थी। कांग्रेस द्वारा मैदान में उतारे गए 89 उम्मीदवारों में से भूपेंद्र हुड्डा को 72 टिकट मिले, जिसको लेकर कुमारी शैलजा और रणदीप सुर्जेवाला खुलकर नाराज दिखे। हालांकि, हुड्डा के साथ प्रतिद्वंद्विता में रणदीप सिंह सुर्जेवाला भी सी.एम. पद के दावेदार थे।

सुर्जेवाला राजनीतिक अभियान या बैठकों के दौरान राज्य में बहुत सक्रिय नहीं रहे हैं। वह कैथल पर ही केंद्रित रहे, जहां इस बार उनके बेटे आदित्य चुनाव लड़ रहे थे और आदित्य ने कैथल सीट 8,124 वोटों से जीती। दूसरी ओर, शैलजा की नाराजगी कि उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला इसलिए उन्होंने पार्टी के लिए प्रचार नहीं किया तथा 2 सप्ताह तक घर पर बैठी रहीं। उनके समुदाय ने इस बात को नोटिस किया। अंत तक वह कहती रहीं कि वह सी.एम. की दौड़ में हैं। हुड्डा-शैलजा विवाद कोई नई बात नहीं है, यह एक नियमित प्रक्रिया बन गई है। 

इस बार जो सबसे प्रमुख और नया है, वह है हुड्डा के नेतृत्व में गैर जाटों का व्यापक एकीकरण। कई दलित जाटशाही (जाट प्रभुत्व) तथा पसंदीदा लोगों को नौकरी देने की खर्ची-पर्ची प्रणाली की वापसी को लेकर आशंकित थे। भाजपा ने हुड्डा के खिलाफ शैलजा के कथित असंतोष का लाभ उठाने में तेजी दिखाई तथा कांग्रेस पर पार्टी में दलित नेताओं का अपमान करने का आरोप लगाया। भाजपा ने ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों में भी अपनी पैठ बनाई और इससे पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में दलितों और ओ.बी.सी. का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के पास वापस चला गया है। 65 ग्रामीण सीटों में से भाजपा ने 32, कांग्रेस ने 30 और इनैलो ने 2 सीटें जीतीं, जबकि एक सीट निर्दलीय के खाते में गई। अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 17 सीटें दोनों पार्टियों के बीच लगभग बराबर-बराबर बंट गईं। इनमें से 9 कांग्रेस और 8 भाजपा के खाते में गईं। अब सवाल यह उठ रहे हैं कि हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस के प्रचार अभियान में जाटों पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करने से भाजपा को जाट विरोधी वोटों को जुटाने में मदद मिली। अब जबकि कांग्रेस को हरियाणा में करारी हार मिली तो ऐसे में भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर तलवार लटकने की उम्मीद की जा सकती है। राजनीतिक गर्मी कुमारी शैलजा और रणदीप सुर्जेवाला को झुलसा सकती है। 

इंडिया ब्लॉक में अब बड़ा मोलभाव होगा : हरियाणा में कांग्रेस के करारी हार झेलने और जम्मू-कश्मीर में अपने दम पर खराब प्रदर्शन करने के बाद, इंडिया ब्लॉक के सहयोगियों ने संकेत दिया है कि वे अधिक सीटों के लिए बड़ा मोलभाव करेंगे।
यू.बी.टी. सांसद संजय राऊत ने संकेत दिया कि अगर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सहयोगियों को शामिल किया होता और गठबंधन बनाया होता तो चुनाव परिणाम अलग हो सकते थे। जबकि ‘आप’ ने अपना रुख दोहराया कि अगले साल की शुरूआत में होने वाले दिल्ली चुनाव में कोई गठबंधन नहीं होगा। वरिष्ठ टी.एम.सी. नेता कुणाल घोष ने कहा, ‘‘भाजपा विरोधी दलों को अब आत्मचिंतन करना चाहिए कि वे भाजपा को हराने में बार-बार क्यों विफल हो रहे हैं... हर बार बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं और अंत में वे चुनावों में विफल हो जाते हैं।’’

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की जंग : महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की जंग सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति के साथ शुरू हो गई है, जिसमें मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना, भाजपा और अजीत पवार की एन.सी.पी. शामिल हैं, जिसका लक्ष्य सत्ता बरकरार रखना है। जबकि शिवसेना (यू.बी.टी.), एन.सी.पी. (एस.पी.) और कांग्रेस की विपक्षी महा विकास आघाड़ी (एम.वी.ए.) बहुमत हासिल करने की कोशिश कर रही है। एक तरफ, एम.वी.ए. ने अब तक अपने घटकों के बीच 208 सीटों के वितरण पर सहमति व्यक्त की है। ये आबंटन मुख्य रूप से मौजूदा विधायकों, निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी की ताकत और उम्मीदवार की जीतने की कथित क्षमता जैसे प्रमुख कारकों पर आधारित है। लेकिन शेष 80 सीटें अभी विवाद का विषय हैं। 

कर्नाटक कांग्रेस में एक मोड़ : कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर कानूनी मुसीबतों के चलते, कर्नाटक कांग्रेस में एक मोड़ आता दिख रहा है, जिसमें इस बात पर चर्चा चल रही है कि अगर उन्हें पद छोडऩा पड़ा तो उनकी जगह कौन लेगा। डिप्टी सी.एम. डी.के. शिवकुमार की सी.एम. बनने की ख्वाहिश जगजाहिर है। अब शिवकुमार पार्टी विधायकों से बातचीत कर उनका समर्थन हासिल करने और शीर्ष पद का दावा करने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, सिद्धारमैया एच.सी. महादेवप्पा या सतीश जरकीहोली में से किसी एक को अपना समर्थन दे सकते हैं। दूसरी ओर कांग्रेस आलाकमान कर्नाटक के गृह मंत्री और दलित समुदाय के प्रमुख नेता जी. परमेश्वर के पक्ष में है। परमेश्वर, जिन्होंने के.पी.सी.सी. अध्यक्ष के रूप में 8 साल बिताए, वह  2013 में अप्रत्याशित हार का सामना करने के बाद मुख्यमंत्री बनने से चूक गए। उन्हें जल्द ही मौका मिल सकता है । अगर परमेश्वर को शीर्ष पद मिलता है, तो कर्नाटक में पहला दलित मुख्यमंत्री होगा।-राहिल नोरा चोपड़ा
 

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