Edited By ,Updated: 26 Jun, 2024 05:36 AM
बीते कुछ महीनों में देश में विभिन्न प्रतियोगी और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक होने और संदेह के घेरे में आने के मामले लगातार उजागर होते रहे हैं। निश्चित रूप से सुनहरे भविष्य की आस में रात-दिन एक करने वाले प्रतिभागियों...
बीते कुछ महीनों में देश में विभिन्न प्रतियोगी और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक होने और संदेह के घेरे में आने के मामले लगातार उजागर होते रहे हैं। निश्चित रूप से सुनहरे भविष्य की आस में रात-दिन एक करने वाले प्रतिभागियों के सपने चकनाचूर होने के समान तो हैं ही, इस तरह के मामलों से प्रतिभागियों का विश्वास व्यवस्था से उठ जाता है।
मैडिकल परीक्षा की पुरानी प्रक्रिया में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने के लिए लाई गई नई व्यवस्था भी अब सवालों के घेरे में है। परीक्षाओं की जो पवित्रता भंग की गई है, उससे लाखों युवाओं के करियर और भविष्य अधर में लटके हैं। धनबल से पेपर, परीक्षा केंद्र, पेपर सैटर आदि खरीदे जा सकते हैं। धनबल के इस खेल में सबसे ज्यादा नुकसान उन बच्चों का होता है, जो ईमानदारी एवं एकाग्रतापूर्वक अपनी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। सरकार ने राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षाओं में पारदर्शिता लाने के लिए राष्ट्रीय परीक्षा एजैंसी (एन.टी.ए.) की स्थापना की थी। लेकिन नीट परीक्षा के नतीजों पर उठे सवालों ने इस संस्था और उसके कार्यों को संदेह के दायरे में ला दिया है।
सवाल है कि जो माता-पिता अपने बच्चे की परीक्षा पास कराने के लिए 40 लाख रुपए प्रश्नपत्र के लिए खर्च कर सकते हैं, क्या वे देश में ‘मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस.’ पैदा करना चाहते हैं? यह घोर दंडनीय अपराध है। नीट प्रकरण के अलावा यू.जी.सी. नेट, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी.एस.आई.आर.) और नीट-पीजी परीक्षाएं भी रद्द या स्थगित की गई हैं। इस तरह 37 लाख से अधिक युवाओं के भविष्य अनिश्चित हो गए हैं। छात्रों के सामने उम्र निकल जाने का खतरा भी है। एन.टी.ए. की प्रक्रिया, परीक्षा-प्रणाली, आऊटसोर्स की मजबूरी, विशेषज्ञता के अभाव और मूल में भ्रष्टाचार आदि ऐसे बुनियादी कारण हैं, कि इस संस्थान को ही समाप्त करने की मांग की जा रही है।
युवाओं के विरोध-प्रदर्शन इतने उग्र और व्यापक हो गए हैं कि एन.टी.ए. के महानिदेशक सुबोध कुमार सिंह को हटा कर एक सेवानिवृत्त आई.ए.एस. अधिकारी प्रदीप सिंह खरोला को इस पद का दायित्व सौंपना पड़ा। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने एक विशेष समिति का गठन किया है। बेशक उसमें महा विशेषज्ञ किस्म के महाबौद्धिक चेहरे शामिल हैं लेकिन वे एन.टी.ए. की तकनीक, परीक्षा-प्रविधि और अंतॢवरोधों के समाधान नहीं दे सकते। यह उनकी विशेषज्ञता से बिल्कुल अलग क्षेत्र है। समिति को 2 माह का समय दिया गया है। यह राजनीतिक विवाद भी बन गया है और प्रतिपक्षी नेता शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान का इस्तीफा मांग रहे हैं। बहरहाल विशेष समिति का काम नौकरशाही किस्म का नहीं होना चाहिए क्योंकि उससे व्यवस्था को छिद्रों से मुक्त नहीं किया जा सकेगा।
पेपर लीक पर सरकार को सख्ती से कदम उठाने होंगे, तभी परीक्षाओं की विश्वसनीयता बन पाएगी। एक ही एजैंसी से बार-बार परीक्षा नहीं करवानी चाहिए। इसके लिए नियम बनाए जाने चाहिएं। दरअसल, कोचिंग सैंटरों के खेल व अंग्रेजी के वर्चस्व के चलते आरोप लगाए जाते हैं। आरोप हैं कि इस परीक्षा में हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में परीक्षा देने वाले छात्रों को न्याय नहीं मिलता। बेहद गंभीर सवाल है कि अनिश्चितताओं के इस दौर में युवा छात्रों का क्या होगा? क्या सफल युवाओं को उनके मैडिकल कॉलेज आबंटित किए जाएंगे या नीट परीक्षा का परिणाम ही रद्द कर दिया जाएगा और परीक्षा दोबारा होगी?
परीक्षाओं की पवित्रता का निर्वहन करने की बजाय समस्त परीक्षा एजैंसियां धन लोलुपता की शिकार हो चुकी हैं। बार-बार परीक्षाएं स्थगित या रद्द हो रही हैं। विद्यार्थियों के साथ अन्याय हो रहा है। कई कोङ्क्षचग सैंटर दलाल बन गए हैं। पेपर लीक से लेकर ग्रेस अंक और असामान्य अंक देना किसी भी परीक्षा संस्था के विरुद्ध सवालों की लडिय़ां तो अवश्य खड़ा करेगा। केंद्र सरकार ने नकल विरोधी कानून पिछले दिनों लागू कर दिया है, इसके प्रावधानों को और कड़ा बनाया जाना चाहिए।
परीक्षा के वर्तमान स्वरूप में व्यापक स्तर पर सुधार और साफ-सफाई करनी पड़ेगी क्योंकि लाखों युवा भारतीयों का भविष्य दांव पर है। बहरहाल, यह मामला जांच के लिए सी.बी.आई. को सौंप दिया गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि गुनाहगार पकड़े जाएंगे और प्रतिभागियों को भी न्याय मिलेगा।-राजेश माहेश्वरी