अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष महत्व रखता है 1971 का भारत-पाक युद्ध

Edited By ,Updated: 03 Dec, 2024 05:31 AM

the indo pak war of 1971 holds special importance at the international level

1971 का भारत-पाक युद्ध अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष महत्व रखता है क्योंकि इससे पहले पाकिस्तान ने 1947 और 1965 में दो बार भारत पर आक्रमण किया जिसमें जम्मू-कश्मीर का बहुत सारा भाग पाकिस्तान के कब्जे में चला गया।

1971 का भारत-पाक युद्ध अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष महत्व रखता है क्योंकि इससे पहले पाकिस्तान ने 1947 और 1965 में दो बार भारत पर आक्रमण किया जिसमें जम्मू-कश्मीर का बहुत सारा भाग पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। 1962 में चीन ने भारत पर अपनी विस्तारवादी नीति और भारत से विश्वासघात करके बहुत सारे इलाके पर कब्जा कर लिया जो आज भी उसके नियंत्रण में है। इतने वर्षों से न तो हम खुद वापस ले सकें और न ही संयुक्त राष्ट्र संगठन कोई हमारी कार आमद सहायता कर सका है परंतु 1971 के युद्ध से पहले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रूस के साथ सुरक्षात्मक संधि  की ताकि भारत-पाक युद्ध के दौरान कोई तीसरा देश दखलअंदाजी न कर सके। 

दूसरी तरफ फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने एक कामयाब युद्ध नीति के निर्माण में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। समूचा राष्ट्र भी पाकिस्तान को इस बार सबक सिखाने के लिए एकजुट होकर सरकार के पीछे चट्टान की तरह खड़ा हो गया। पाकिस्तानी ऊंट 3 दिसम्बर, 1971 को भारतीय पहाड़ के नीचे आ गया। जब पाक ने भारत के 11 हवाई अड्डों पर शाम के साढ़े 5 बजे जबरदस्त हमले कर दिए जिनमें श्रीनगर, अवंतिपुर  पठानकोट, अमृतसर और अन्य शामिल थे। इस बार भारत हर तरह की तैयारी के साथ मुकाबला करने में सक्षम हो चुका था। इस युद्ध की वास्तविकता को जानने के लिए पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान में पिछले कई वर्षों से चल रही राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और भेदभावपूर्ण कशमकश पर नजरसानी करना अति आवश्यक होगा।

1947 में भारत के पश्चिम और पूर्व में पाकिस्तान अस्तित्व में आया। संसदीय प्रजातांत्रिक पद्धति द्वारा शासन करने का फैसला लिया गया। परंतु 1951 में वजीरे-आजम पीरजादा लियाकत अली की हत्या कर दी गई। 1953 में पहली बार  बगावत हुई और 1957 में पाकिस्तान में फौजी राज स्थापित हो गया जो लंबे समय तक चला। इस मामले में पाकिस्तान बदकिस्मत  निकला क्यों कि प्रजातांत्रिक  पद्धति की जड़ें मजबूती से लगने ही नहीं दीं।

1968 में बेबुनियाद और आधारहीन अगरतला  केस में शेख मुजीबुर्रहमान को बंदी बना लिया गया जिसके परिणामस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान में जोरदार आंदोलन शुरू हो गए। प्रैजीडैंट अयूब खान ने इस बेबसी के आलम में शेख को भी रिहा कर दिया और बाद में स्वयं भी पद त्याग दिया। हकीकत में मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान में उर्दू को राष्ट्रीय भाषा बनाने का फैसला किया था जिसे पूर्वी पाकिस्तान के लोग मानने के लिए तैयार नहीं थे। 1950 के बाद लगातार उर्दू के खिलाफ आंदोलन चलाए जा रहे थे क्योंकि उनकी अपनी बंगला भाषा अति प्राचीन और समृद्धिशाली थी। उर्दू ने ही एक ऐसी चिंगारी लगाई जिसने पाकिस्तान के हितों को जलाकर राख कर दिया।

पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान में 1500 किलोमीटर से अधिक का फासला था। समुद्री रास्ते से पहले अरब सागर,हिंद महासागर फिर खाड़ी बंगाल से होकर जाना पड़ता था। जो बड़ा लंबा, कठिन और अति दूभर था। इसके अतिरिक्त दोनों की वेषभूषा रहन-सहन, खान-पान, भाषा और पूरी  संस्कृति ही अलग थी। पश्चिमी  पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान पर नियंत्रण रखना नामुमकिन तो नहीं था पर मुश्किल जरूर था। यह ऐसा ही था जैसे 18वीं शताब्दी में इंगलैंड में बैठकर दूर अमरीका पर शासन करना था। अमरीका भी स्वतंत्र देश बन गया और पूर्वी पाकिस्तान का अलग होना भी अवश्यंभावी था। ये दोनों भाग केवल एक मजहब के कारण जुड़े हुए थे। जिन्ना का द्वि-राष्ट्रीय सिद्धांत भी मिट्टी में मिल गया। केवल मजहब से ही लोगों को एक सूत्र में पिरोकर नहीं रखा जा सकता। इसके लिए विकास, सहनशीलता, उदारता और मानवतावादी नजरिए की आवश्यकता होती है। वास्तव में यह पूरी तरह अव्यवहारिक फैसला था। गैर-राजनीतिक और गैर प्रबंधकीय। 1970 में प्रैजीडैंट यहिया खान ने पुन: प्रजातंत्र को बहाल करने के लिए चुनाव की घोषणा कर दी। चुनावों में शेख मुजीबुर्रहमान को पूर्वी पाकिस्तान में 169 में से 167 सीटें जीतने में कामयाबी मिली जबकि पश्चिमी पाकिस्तान में 146 सीटों में से जुल्फिकार अली भुट्टो केवल 81 सीटें जीत सका। 

चुनावी नतीजों ने स्पष्ट कर दिया कि शेख ही पाकिस्तान का वजीरे-आजम बनने का एकमात्र नेता है जबकि घमंडी भुट्टो ने महाभारत के शकुनि मामा की भूमिका निभाई और फौज के साथ मिलकर चुनाव परिणामों को रद्द करवा दिया जिससे पूर्वी पाकिस्तान में जबरदस्त आंदोलन होने लगे और उन्होंने अलग स्वतंत्र देश बनाने की घोषणा कर दी। इस आंदोलन को दबाने के लिए जनरल टिक्का खां को पूर्वी पाकिस्तान भेजा गया। शेख मुजीबुर्रहमान को पुन: बंदी बना कर पश्चिमी पाकिस्तान ले आए। फौज ने 20 लाख बंगालियों का बेरहमी से कत्ल कर दिया और 4 लाख महिलाओं के साथ बलात्कार हुए। एक करोड़ लोग डर, दहशत और कत्लो-गारत से घबराकर भारत आ गए। जहां उन्हें बंगाल, बिहार, असम, मेघालय और त्रिपुरा में शरण दी गई। 

भारत  ने पहले 4 दिनों में ही पूर्वी पाकिस्तान के आसमान पर नियंत्रण कर लिया और बड़ी तीव्र गति से भारतीय सेनाएं पूर्वी पाकिस्तान में आगे बढऩे लगीं और ढाका के करीब पहुंचीं। इसमें मुक्ति वाहिनी ने भी खुल कर सहायता की। दूसरी तरफ राजस्थान के जैसलमेर में लौंगोवाल में मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने दशम पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के ईश्वरीय वचन ‘सवा लाख से एक लड़ाऊं’ को हकीकत में साबित कर दिया। जब उसने 120 सैनिकों के साथ पाकिस्तान के 3000 सैनिकों और 59 टैंकों का सारी रात मुकाबला किया और उन्हें भारतीय सीमा में प्रवेश नहीं करने दिया। सुबह हंटर विमानों ने भारी बमबारी करके पाकिस्तान के सभी टैंक तबाह कर दिए। ढाका में 16 दिसम्बर, 1971 को  जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के नेतृत्व में पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने 93,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण  किया और पूर्वी पाकिस्तान बंगलादेश के नाम पर एक स्वतंत्र देश का जन्म हुआ।  यद्यपि यह जंग केवल 13 दिनों की थी परन्तु सैनिकों का आत्मसमर्पण विश्व में सबसे बड़ा था।-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा 
    

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