संविधान बदलने का मुद्दा सिर्फ चुनावी

Edited By ,Updated: 01 Jun, 2024 05:23 AM

the issue of changing the constitution is only an election issue

ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि सभी चरणों के चुनावों के बाद विपक्ष एक मुद्दा सतह पर ऐसा लाने में सफल हो गया है, जो दलित समाज के एक वर्ग में कुछ हद तक काम कर रहा है। कितना किया, यह कहा नहीं जा सकता लेकिन राजनीतिक फिजा में इसकी रंगत दिखी।

ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि सभी चरणों के चुनावों के बाद विपक्ष एक मुद्दा सतह पर ऐसा लाने में सफल हो गया है, जो दलित समाज के एक वर्ग में कुछ हद तक काम कर रहा है। कितना किया, यह कहा नहीं जा सकता लेकिन राजनीतिक फिजा में इसकी रंगत दिखी। भाजपा के 400 पार के नारे से निकली इस हवा को भाजपा के कुछ नेताओं ने ही रंगत दी और इसकी आग को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को यह तक कहना पड़ा कि आज अगर खुद अंबेडकर चाहें तो भी संविधान नहीं बदल सकते। 

क्या सचमुच संविधान खतरे में है : लेकिन क्या वाकई दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र के संविधान को खत्म किया जा सकता है?  क्या वाकई देश का संविधान खतरे में है भी या नहीं। दरअसल, भारतीय संविधान में संशोधन तो किया जा सकता है लेकिन इसे खत्म नहीं किया जा सकता और न ही इसकी मूल संरचना में कोई बदलाव किया जा सकता है। संविधान के खात्मे को लेकर की जा रही बयानबाजी महज वोट बैंक की सियासत का हिस्सा मात्र है। संविधान लागू होने के बाद से अब तक इसमें कुल 106 बार संशोधन किए गए हैं लेकिन संविधान की मूल संरचना आज भी वही है। इंदिरा गांधी सरकार के कार्यकाल के दौरान संविधान में एक संशोधन के माध्यम से इतने बदलाव किए गए जिसके चलते इसे कॉन्स्टिच्यूशन ऑफ इंडिया की जगह कॉन्स्टिच्यूशन ऑफ इंदिरा तक कहा गया लेकिन संविधान की मूल संरचना अक्षुण्ण ही रही। नरेंद्र मोदी सरकार के पिछले 10 वर्षों के कार्यकाल में भारतीय संविधान में 8 बार संशोधन किए गए और उससे पूर्व की सरकारों के 64 वर्षों के कार्यकाल के दौरान 98 बार संविधान को संशोधित किया गया। दुनिया के किसी भी संविधान में अब तक इतने संशोधन संभवत: नहीं किए गए हैं। 

भारतीय संविधान में 3 प्रकार के संशोधन की व्यवस्था दी गई है लेकिन यह संविधान खत्म करने की इजाजत नहीं देता है। इनमें 2 प्रकार के संशोधन अनुच्छेद 368 के तहत किए जाते हैं। पहले प्रकार के संशोधनों में वे शामिल हैं जिन्हें संसद के प्रत्येक सदन में ‘साधारण बहुमत’ द्वारा पारित किया जा सकता है। दूसरे प्रकार के संशोधन संसद द्वारा प्रत्येक सदन में निर्धारित ‘विशेष बहुमत’ द्वारा प्रभावी किए जा सकते हैं; और तीसरे प्रकार के संशोधनों के लिए संसद के प्रत्येक सदन में ऐसे ‘विशेष बहुमत’ के अलावा, देश के कम से कम 50 प्रतिशत राज्य विधानसभाओं की मंजूरी भी अनिवार्य है। 

भारतीय संविधान में किए गए कुछ प्रमुख संशोधन :
1-पहला संविधान संशोधन 18 जून 1951 को किया गया। इसके तहत राज्य को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के विकास के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार प्रदान किया गया। 2-एक नवम्बर 1956 को संविधान में सातवां संशोधन किया गया। इसके तहत राज्य पुनर्गठन अधिनियम के माध्यम से 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों का गठन किया गया। 
3- 1971 में 24वां संशोधन किया गया। इस संशोधन के माध्यम से यह स्पष्ट हो गया कि संसद अनुच्छेद 368 का उपयोग करके अनुच्छेद 13 सहित संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है, अर्थात् संसद को मौलिक अधिकारों में संशोधन करने की शक्ति दी गई। 

4- 1971 में ही 26वां संशोधन किया गया। इसके तहत रियासतों के शासकों को दिए जाने वाले प्रिवीपर्स अर्थात विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
5- 1975 में 38वां संशोधन किया गया। इसके तहत राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
6- 1976 में संविधान में 42वां संशोधन किया गया। इसके तहत संविधान की प्रस्तावना में 3 नए शब्द समाजवादी, धर्म निरपेक्ष और अखंडता जोड़े गए। संसद और राज्य विधानमंडल लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष से बढ़ाकर 6 वर्ष कर दिया गया। इसने ट्रेड यूनियन गतिविधि को कम करने की शक्ति वाले प्रावधान पर रोक लगाई। संवैधानिक संशोधन पर न्यायिक समीक्षा को प्रतिबंधित कर दिया गया। राष्ट्रपति के लिए मंत्रिपरिषद की सलाह को बाध्यकारी बनाया गया। शिक्षा, वन, वजन और माप, वन्य जीवों और पक्षियों का संरक्षण, न्याय का प्रशासन जैसे 5 विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया। अनुच्छेद 329क के तहत लोकसभा अध्यक्ष और प्रधानमंत्री को कुछ विशेष विवेकाधीन शक्तियां दी गईं। न्यायपालिका की न्यायिक समीक्षा और रिट क्षेत्राधिकार की शक्ति को सीमित किया गया। 

7- 1978 में जनता पार्टी की सरकार ने संविधान में 44वां संशोधन किया। 
8- 1985 में 52वां संशोधन किया गया जिसके तहत दलबदल के खिलाफ कानून बनाकर संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई।
9- 1989 में 61वां संशोधन करते हुए मतदान की उम्र 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
10- 1992 में 73वां संशोधन किया गया। इसके तहत पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। 
11- 1992 में ही संविधान में 74वां संशोधन करते हुए शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। 
12- वर्ष 2002 में संविधान में 86वां संशोधन करते हुए 6 से 14 साल की उम्र तक के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया। 
13- 2003 में किए गए 91वें संशोधन के तहत केंद्र और राज्यों में मंत्रिमंडल का दायरा सीमित किया गया।
14- 2014 में कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया। 
15- 2017 में 101 वां संशोधन करते हुए जी.एस.टी. की शुरूआत की गई। 

16- 2019 में 103वां संशोधन कर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया। 
17- 2020 में 104वां संशोधन कर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए आरक्षित सीटों के प्रावधान को हटा दिया गया। 
18- 2023 में 106वां संशोधन महिला आरक्षण विधेयक (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) के लिए किया गया। इसके तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने किया था संविधान को सुरक्षित : 1973 में सुप्रीम कोर्ट के 11 जजों की बैंच ने एक अहम फैसला सुनाया। इस फैसले में भारतीय संविधान के डॉक्ट्रिन ऑफ बेसिक स्ट्रक्चर को स्पष्ट किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि संविधान की मौलिक संरचना को बदला नहीं जा सकता है। इस फैसले ने संविधान में बदलाव को सीमित कर दिया और संविधान की मूल संरचना को सुरक्षित कर दिया। अब तो चुनाव नतीजे आने के बाद यह स्पष्ट हो सकेगा कि कौन-सा मु्द्दा कितना आगे बढ़ सका। क्या सचमुच दलितों का एक वर्ग संविधान या किताब बदलने के मुद्दे पर भाजपा या एन.डी.ए. से खफा रहा। यह भी सही है कि लेकिन चुनावी हवा में संविधान के मुद्दे ने धार जरूर दी।-अकु श्रीवास्तव
 

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