शीर्ष पर बैठे नेताओं के पास सत्ता की सारी शक्ति, लेकिन जवाबदेही नहीं

Edited By ,Updated: 23 Jun, 2024 05:29 AM

the leaders at the top have all the power but no accountability

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से भारतीयों ने आलोचना और बहस के अपने बहुल आधार के लिए उल्लेखनीय समझ दिखाई है साथ ही, भारतीय धर्मनिरपेक्ष परंपरा ने काफी वैचारिक तरलता की अनुमति दी है। फिर भी इसने हमेशा ‘एक आदेश तंत्र’ पर जोर दिया है।

सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से भारतीयों ने आलोचना और बहस के अपने बहुल आधार के लिए उल्लेखनीय समझ दिखाई है साथ ही, भारतीय धर्मनिरपेक्ष परंपरा ने काफी वैचारिक तरलता की अनुमति दी है। फिर भी इसने हमेशा ‘एक आदेश तंत्र’ पर जोर दिया है। इसे नए बुद्धिजीवियों के विचारों और आदर्शों पर आधारित एक नई अखिल भारतीय सांस्कृतिक परंपरा के रूप में देखा जा सकता है, जिस पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और नया राज्य आधारित थे। इसके अलावा, सरकार का कामकाज स्पष्ट और पारदर्शी होना चाहिए और ऐसा ही दिखना चाहिए। यह हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को बचाने के हित में है। हमें सरकारी अधिकारियों को नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों और संवैधानिक रूप से संस्थानों के साथ खेलने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। 

यह खेदजनक है कि शीर्ष पर बैठे नेताओं के पास सत्ता की सारी शक्ति है, लेकिन कोई जवाबदेही नहीं है। इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। नागरिकों को सतर्क रहना चाहिए और निरंकुश प्रवृत्ति दिखाने वाले नेताओं को उनकी जगह पर रखना चाहिए। यह नागरिकों के हित में है और लोकतांत्रिक संस्थाओं की सेवा करता है। यह चयनात्मक प्रवत्र्तन संस्थागत अखंडता और लोकतांत्रिक सिद्धांतों की सुरक्षा के बारे में चिंताएं पैदा करता है। यह सरकार द्वारा पारदर्शिता सुनिश्चित करने और संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को बनाए रखने की जवाबदेही की आवश्यकता पर बल देता है। भारत की आगे की यात्रा के लिए लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करने और सभी नागरिकों के लिए न्याय और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए एक नई प्रतिबद्धता के साथ इन जटिल गतिशीलता को ठीक करने की आवश्यकता है। 

इस संबंध में प्रधानमंत्री मोदी का नेतृत्व एक ऐसे भविष्य  को आकार देने में महत्वपूर्ण होगा जहां शासन एक विविध और महत्वाकांक्षी राष्ट्र के हितों की सेवा करता है। जब व्यक्तित्व और गोपनीयता पर जोर दिया जाता है तो लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर और क्षीण हो जाती हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि पिछले कई वर्षों से भारत ने संस्थागत क्षरण का एक दौर देखा है। व्यक्तिगत नेतृत्व पर बहुत अधिक जोर दिया गया है और संस्थाओं तथा उनकी अखंडता और कार्यात्मक स्वायत्तता पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। वास्तव में, अधिकारियों के लिए भारी चुनौतियों और लोगों की बढ़ती अपेक्षाओं के सामने संस्थागत क्षरण भारत के सामने एक बुनियादी संकट के रूप में उभरा है। 

राष्ट्र निर्माण के भारतीय माडल की विशिष्टता एक शक्तिशाली संस्थागत संरचना बनाने की इसकी क्षमता में निहित है जो अवास्तविक और गलत संरचनाओं को नियंत्रित करती है। सौभाग्य से भारत की संस्थागत संरचना की मुख्य विशेषताएं - एक अनूठी पार्टी प्रणाली और एक नियमबद्ध प्रशासनिक और न्यायिक प्रणाली एक बचत अनुग्रह रही है। सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से, भारतीयों ने आलोचना और बहस के अपने बहुल आधार के लिए उल्लेखनीय समझ दिखाई है। साथ ही, भारतीय धर्मनिरपेक्ष परंपरा ने काफी वैचारिक तरलता की अनुमति दी है। फिर भी, इसने हमेशा ‘एक आदेश तंत्र’ पर जोर दिया है। इसे नए बुद्धिजीवियों के विचारों और आदर्शों पर आधारित एक नई अखिल भारतीय सांस्कृतिक परंपरा के रूप में देखा जा सकता है, जिस पर कांग्रेस और नई सरकार आधारित थे। 

2024 के लोकसभा चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी की सत्ता पर पकड़ कमजोर हो गई है। यह परिणाम उनके निरंकुश शासन की अस्वीकृति का संकेत देता है। यह लोकतांत्रिक मूल्यों, जवाबदेही, अधिक संवाद, संभावित नीति सुधारों और असमानता, आर्थिक संकट और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता पर जोर देता है। ऐतिहासिक रूप से, गठबंधनों ने साहसिक सुधार पेश किए हैं जैसा कि 2000 के दशक की शुरूआत में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए.) की कल्याणकारी नीतियों से देखा जा सकता है। लोकतंत्र की वापसी गठबंधन राजनीति के एक नए युग का सुझाव देती है जो भारत की संघीय व्यवस्था को मजबूत कर सकती है। हालांकि, प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के दशक के दौरान लोकतांत्रिक संस्थाओं को हुए नुकसान की तत्काल मुरम्मत की आवश्यकता है। प्रैस की स्वतंत्रता, न्यायिक स्वतंत्रता और संस्थागत अखंडता को बहाल किया जाना चाहिए। लोकतंत्र विरोधी ताकतों के खिलाफ सतर्कता जरूरी है। 

लैंगिक समानता हासिल करने में भी महत्वपूर्ण प्रगति की आवश्यकता है। महिला आरक्षण अधिनियम के बावजूद महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम है। महिला उम्मीदवारों की संख्या में मामूली वृद्धि हुई है, लेकिन निर्वाचित महिला सांसदों की संख्या में कमी आई है। हालांकि, राजनीतिक प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी में सकारात्मक रुझान है। अभियानों और सार्वजनिक गतिविधियों में उनकी भागीदारी बढ़ रही है। इसलिए, अब जबकि बहुत राहत है, दीर्घकालिक लक्ष्य भारत के लोकतंत्र की रक्षा और मजबूती करना है। साथ ही सामाजिक आर्थिक और लैंगिक असमानताओं को कम करना है। मुझे उम्मीद है कि प्रधानमंत्री राष्ट्र निर्माण के चुनौतीपूर्ण कार्य को करते हुए हमारे बुनियादी संवैधानिक मानदंडों को बनाए रखेंगे। उम्मीद है कि अपने तीसरे कार्यकाल में वे पहले से बेहतर आचरण कर पाएंगे और अपनी निरंकुश प्रवृत्तियों पर लगाम लगा पाएंगे। नई गठबंधन सरकार अधिक संतुलित शासन और लोकतांत्रिक संस्थाओं की बहाली की उम्मीद लेकर आई है, लेकिन प्रभावी प्रशासन सुनिश्चित करने और भारत की विविध आवश्यकताओं को संबोधित करने में चुनौतियां बनी हुई हैं।-हरि जयसिंह
 

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