Edited By ,Updated: 06 Jun, 2024 05:30 AM
कहते हैं कि कानून के हाथ काफी लंबे होते हैं तथा यदि पुलिस व न्यायालय चाहे तो अपराधी को पाताल से भी निकाल कर सलाखों के पीछे धकेल सकते हैं। मगर हमारे देश में पैसे व रसूख से कुछ भी खरीदा जा सकता है। हमारी रगों में भ्रष्टाचार का खून बहता है जो साफ करने...
कहते हैं कि कानून के हाथ काफी लंबे होते हैं तथा यदि पुलिस व न्यायालय चाहे तो अपराधी को पाताल से भी निकाल कर सलाखों के पीछे धकेल सकते हैं। मगर हमारे देश में पैसे व रसूख से कुछ भी खरीदा जा सकता है। हमारी रगों में भ्रष्टाचार का खून बहता है जो साफ करने पर भी गंदा ही बना रहता है। कई ऐसी हृदयविदारक घटनाएं होती हैं, जिन्हें देख कर किसी भी सामान्य व्यक्ति की संवेदनाएं जागृत हो उठती हैं। यह भी ठीक है कि हमारी पुलिस व पूरी न्यायिक व्यवस्था अपराधियों को पकडऩे व उन्हें सजा देने से पीछे नहीं रहती मगर कहते हैं कि पैसे के आगे सब कुछ नतमस्तक हो जाता है। हमारा कानून अपनी आंखों पर काली पट्टी पहने रहता है तथा सबूतों का ही इंतजार करता रहता है। आम सामान्य अपराधियों को भले ही सजा हो जाती है मगर धनबली जिनको राजनीतिज्ञों व पुलिस इत्यादि सभी एजैंसियों का आशीर्वाद होता है, सजा से मुक्त होने में कामयाब हो ही जाते है।
सभी कानूनी संस्थाओं को अपने अपने नियमों का भली-भांति ज्ञान होता है तथा यह एजैंसियां दिन को रात व रात को दिन बनाने में भी सक्षम होती हैं। आमतौर पर देखा गया है कि ट्रैफिक घटनाओं में पुलिस मुकद्दमा दर्ज ही नहीं करती तथा दोनों पक्षों में समझौता करवाने की कोशिश करती है। पुलिस चाहे तो बड़ी से बड़ी घटना को प्राकृतिक व सामान्य रूप दे सकती है तथा दूसरी तरफ छोटी घटना को एक बहुत बड़ा रूप भी दे सकती है। ऐसा तभी संभव होता है, जब या तो नीचे से ऊपर तक सभी भ्रष्टाचार का नंगा नाच कर रहे होते हैं या फिर कुछ ऐसे ईमानदार अधिकारी भी हैं जो खुद सत्यनिष्ठ व ईमानदार तो हैं, मगर वह या तो कानून की बारीकियों के बारे में अनभिज्ञ होते हैं या फिर वो आंखें मूंद कर अपना समय निकालते रहते हैं।
अभी हाल ही में पुणे में 19 मई की एक ऐसी सड़क दुर्घटना का उदाहरण है जो पुलिस, आबकारी विभाग व न्यायपालिका पर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह पैदा करती है, जिससे इन संस्थाओं पर से लोगों का विश्वास तुरंत उठ जाता है। एक बड़े धनबली के साढ़े 17 वर्ष के नाबालिग बेटे ने 19 मई की रात को एक होटल में 48,000 की महंगी से महंगी शराब पी तथा उसके बाद नशे में धुत्त होकर अपनी 2 करोड़ की गाड़ी को 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से सड़क पर एक मोटर साइकिल सवार जिस पर एक 24 वर्षीय लड़का व लड़की जा रहे थे, को बहुत बुरी तरह से कुचल कर मौके पर ही मार देता है तथा घटनास्थल से भागने की कोशिश करता है।
मगर कुछ साहसी लोगों ने अपनी नैतिकता का फर्ज समझते हुए उसे पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया। अब पुलिस किस तरह अपने लंबे हाथों को बांध कर उस अपराधी को बचाने की कोशिश करने लगती है जो सचमुच पुलिस की छवि को धूमिल कर देती है। पुलिस ने इस बिगड़ैल लड़के को थाने में ले जाकर सुबह बर्गर व पिज्जा इत्यादि खिलाया तथा घटना की एफ.आई.आर. लगभग 6 घंटे के बाद सोच-समझ कर 8 बजे दर्ज की। उसका तुरंत मैडीकल नहीं करवाया गया तथा घटना के 15 घंटे के बाद शाम 3 बजे उसका ब्लड सैंपल लिया गया। उसका एक किशोर अपराधी की तरह किशोर अपराधी अधिनियम 2015 के अंर्तगत समायोजन किया गया तथा किशोर न्याय बोर्ड के सामने पेश कर दिया।
हालांकि इस एक्ट में विशेष प्रावधान है कि यदि कोई युवक (18 वर्ष की कम आयु वाला) कोई जघन्य अपराध करता है तो उसे एक व्यस्क व्यक्ति की तरह ही गिरफ्तार करके उस पर आगामी कार्रवाई करनी चाहिए। बेईमानी की सीमा अभी समाप्त नहीं हुई। आरोपी के पिता ने फौरेंसिक लैब के निदेशक को 3 लाख रुपए देकर अपने आरोपी बेटे के खून के सैंपल ही बदलवा दिए। इस बात का खुलासा उस समय हुआ जब पुलिस ने आरोपी के ब्लड सैंपल एक अन्य लैब में भी भेज रखे थे तथा इस लैब की रिपोर्ट के अनुसार आरोपी ने शराब पी रखी थी। पुलिस ने इस सूचना के आधार पर आरोपी डाक्टरों को षड्यंत्र रचाने के लिए गिरफ्तार कर लिया है। ऐसा तभी संभव हो सका जब जागृत जनता व मीडिया ने एकजुट होकर आवाज उठाई। न जाने इन आरोपी डाक्टरों ने पहले भी कितने अपराधियों को लाभ पहुंचा कर अपने ईमान को बेच दिया होगा।
पुलिस के इस ढुलमुल रवैये के बाद हमारी न्यायपालिका का रोल आरंभ होता है। जरा देखिए यह भी किस तरह अपनी आंखों पर काली पट्टी बांध कर तराजू के दोनों पलड़ों को बराबर रखते हुए अपनी न्यायिक प्रक्रिया शुरू करती है। यह न्यायिक बोर्ड जिसका चेयरमैन ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट होता है इस बिगड़ैल को 300 पंक्तियों का एक निबंध लिखवा कर छोड़ देता है। अभी आप सोच रहे होंगे कि इस घटना में राजनीतिज्ञों का क्या रोल रहा होगा। वो भी जरा जान लीजिए। घटना का पता चलते ही स्थानीय विधायक महोदय थाना में दस्तक दे देते हैं तथा वह निश्चित तौर पर पुलिस को इस केस को कमजोर करने की ही बात करते होंगे। यदि हम चुनाव में भाग लेनेे वाले उम्मीदवारों की बात कहें तब इस समय लगभग 40 प्रतिशत उम्मीदवारों के विरुद्ध आपराधिक मामले लंबित हैं तथा कई तो एेसे भी हैं जिनके विरुद्ध हत्या के एक से अधिक मामले लंबित हैं। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने कई बार कहा है कि एेसे दागी उम्मीदवारों को चुनाव लडऩे की अनुमति नहीं होनी चाहिए।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी.(रिटायर्ड)