हैट्रिक का मिथक और आंकड़ों का सच

Edited By ,Updated: 05 Dec, 2023 05:24 AM

the myth of the hat trick and the truth of the statistics

प्रधानमंत्री ने बोला ‘हैट्रिक’। बाकी सब भी बोले ‘हैट्रिक’। सुबह होते-होते पूरे देश में यह संदेश फैल गया कि 3 राज्यों की विजय के बाद अब भाजपा को तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीतने से कोई रोक नहीं सकता। भाजपा के समर्थक अभी से विजयोन्माद में हैं, विरोधी...

प्रधानमंत्री ने बोला ‘हैट्रिक’। बाकी सब भी बोले ‘हैट्रिक’। सुबह होते-होते पूरे देश में यह संदेश फैल गया कि 3 राज्यों की विजय के बाद अब भाजपा को तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीतने से कोई रोक नहीं सकता। भाजपा के समर्थक अभी से विजयोन्माद में हैं, विरोधी मायूस हैं। किसी को यह पूछने की फुर्सत नहीं है कि क्या यह निष्कर्ष सच है? 

मनोवैज्ञानिक खेल इसी तरह से खेले और जीते जाते हैं। एक छोटे से सच का इतना बड़ा गुब्बारा फुला दो कि उसमें हर विरोधाभासी सच छुप जाए। एक बात का डंका बजा कर इतना हल्ला मचा दो जिसमें बड़े से बड़ा सच डूब जाए। शुरूआत चुनाव आयोग की वैबसाइट से कीजिए। चारों राज्यों में सभी पाॢटयों को मिले कुल वोटों को जोड़ दीजिए।  विजय का शंखनाद बजाने वाली भाजपा को कुल वोट मिले हैं 4,81,33,463 जबकि चुनाव में परास्त हुई कांग्रेस को मिले हैं 4,90,77,907 वोट। यानी कि भाजपा की तुलना में कांग्रेस को कुल मिलाकर लगभग साढ़े 9 लाख वोट ज्यादा मिले हैं। फिर भी चारों ओर चर्चा ऐसे है मानो भाजपा ने कांग्रेस को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है। 

छवि और हकीकत में अंतर की वजह यह है कि तीनों ङ्क्षहदी राज्यों में भाजपा की जीत का फासला बहुत अधिक नहीं है। अगर सीटों की संख्या देखें तो भाजपा ही भाजपा नजर आती है लेकिन दरअसल वोटों में बहुत बड़ा अंतर नहीं है। राजस्थान में भाजपा को 41.7 प्रतिशत वोट मिले हैं तो कांग्रेस को 39.6 प्रतिशत वोट, यानी कि अंतर सिर्फ 2 प्रतिशत का है। उधर छत्तीसगढ़ में फासला 4 प्रतिशत का है-भाजपा को 46.3 प्रतिशत वोट मिले हैं तो कांग्रेस को 42.2 प्रतिशत। सिर्फ मध्य प्रदेश में फासला 8 प्रतिशत से भी ज्यादा है। भाजपा को 48.6 प्रतिशत तो कांग्रेस को 40 प्रतिशत वोट मिले। तीनों राज्यों में हारने के बावजूद कांग्रेस के पास 40 प्रतिशत या अधिक वोट हैं, जहां से वापसी करना बहुत मुश्किल काम नहीं है। 

इस छवि का दूसरा कारण है तेलंगाना के परिणाम की उपेक्षा। यहां कांग्रेस पार्टी को 39.4 प्रतिशत (92 लाख से ज्यादा) वोट मिले, जबकि भाजपा को 13.9 प्रतिशत (32 लाख से भी कम) वोट मिले। तीनों ङ्क्षहदी भाषी प्रदेशों में कुल मिलाकर भाजपा को जो बढ़त मिली है उसकी भरपाई सिर्फ एक तेलंगाना से हो जाती है। जो भी हो तेलंगाना में कांग्रेस की विजय को केवल आंकड़े के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। जिस राज्य में 2018 के बाद कांग्रेस चुनावी दौड़ से बाहर होने की कगार पर थी वहां उसका  शीर्ष पर पहुंचना राजनीतिक उभार और जिजीविषा का संकेत है। 

हैट्रिक वाले मिथक की जांच के लिए इतिहास की समीक्षा जरूरी है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव के कुछ ही महीनों में लोकसभा का चुनाव पिछले 2 दशक से चला आ रहा है। पिछली बार 2018 में भाजपा इन तीनों राज्यों में हार गई थी। लेकिन तब प्रधानमंत्री या मीडिया ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार निश्चित होने का दावा नहीं किया। जब संसदीय चुनाव हुए तो भाजपा ने इन तीनों राज्यों और बाकी ङ्क्षहदी पट्टी में जबरदस्त जीत हासिल की। सच यह है कि 2024 में सत्ता परिवर्तन के समीकरण में ङ्क्षहदी पट्टी के ये तीनों राज्य केंद्रीय नहीं है। भाजपा इन तीनों राज्यों पर निर्भर है, लेकिन विपक्ष की उम्मीद इनके सहारे नहीं टिकी है। ‘इंडिया गठबंधन’ का चुनावी गणित कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार और बंगाल में भाजपा की सीटें कम करने पर टिका है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की 65 सीटों में भाजपा के खाते में 61 पहले से ही हैं और कांग्रेस के पास सिर्फ 3 हैं। यानी भाजपा की चुनौती है कि वह इन सभी सीटों को बनाए रखे और संभव हो तो तेलंगाना में जो सीटें जीती थीं? उसमें इजाफा करें। उधर कांग्रेस के पास इन राज्यों में खोने को कुछ नहीं है। 

कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में विधानसभा के इन नतीजों को पलटने की जरूरत भी नहीं है। अगर कांग्रेस लोकसभा में उसी हिसाब से वोट ले जैसे कि इस विधानसभा चुनाव में, उतने भर से भाजपा का लोकसभा में बहुमत का आंकड़ा गड़बड़ा जाएगा। इस गणित को ध्यान से समझिए। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में कुल मिलाकर लोकसभा की 83 सीटें हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को यहां 65 सीटें मिली थीं, कांग्रेस के हिस्से आईं सिर्फ 6, बाकी बी.आर.एस., एम.एन.एफ. और एम.आई.एम. के हिस्से में थीं। अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में हर विधानसभा हलके में भाजपा और कांग्रेस को ठीक वही वोट मिले जो कि उन्हें 2023 के विधानसभा चुनाव में मिले हैं तो आंकड़ा इस तरह होगा। राजस्थान; भाजपा को 14, कांग्रेस 11, छत्तीसगढ़ भाजपा 8, कांग्रेस 3, मध्य प्रदेश भाजपा 25 तो कांग्रेस 4 और तेलंगाना कांग्रेस 9, भाजपा 0 (बी.आर.एस. को 7 और एम.आई.एम. को 1), मिजोरम जे.एम.पी. 1 सीट। 

कुल मिलाकर इन विधानसभा चुनावों के हिसाब से लोकसभा में 83 सीटों में भाजपा की 46 और कांग्रेस की 28 सीटें बनती हैं। मतलब फायदे की बजाय भाजपा को 19 सीटों का घाटा हो सकता है जबकि कांग्रेस को 22 सीटों का फायदा। बस कांग्रेस को इतना ही सुनिश्चित करना है कि जो वोट उसे विधानसभा में मिले वे लोकसभा में भी मिल जाएं।अब कोई कहेगा कि यह तो सादा गणित है। आपने मोदी मैजिक का हिसाब तो किया ही नहीं। मोदी का जादू चलेगा तो इन सब राज्यों में भगवा लहराएगा और कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो जाएगा। हो सकता है ऐसा हो जाए और एक बार फिर 2019 जैसा परिणाम आए। लेकिन अगर मोदी है तो कुछ भी मुमकिन है तो उसके लिए विधानसभा चुनाव में हैट्रिक का तर्क देने की क्या जरूरत है? जादू में भरोसा है तो इसे आस्था कहिए, विधानसभा चुनाव के परिणाम की आड़ लेने की क्या जरूरत है?-योगेन्द्र यादव
 

Related Story

    Trending Topics

    Afghanistan

    134/10

    20.0

    India

    181/8

    20.0

    India win by 47 runs

    RR 6.70
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!