एक लम्बी और छलावे भरी यात्रा का नाम है ‘डंकी रूट’

Edited By ,Updated: 03 Sep, 2024 06:04 AM

the name of a long and deceptive journey is  donkey route

‘कई दिन भूखे रहना पड़ा। एक बार तो सिर्फ बिस्किुट खाकर पूरा हफ्ता गुजारा। बीच राह फोन और जूते छीन लिए गए। नंगे पांव चलना पड़ा, बिना पंखे और खिड़की वाली जगह में सोने को मजबूर होना पड़ा।’ किसी फिल्मी डायलॉग का हिस्सा न होकर यह आपबीती है समाना के उन 4...

‘कई दिन भूखे रहना पड़ा। एक बार तो सिर्फ बिस्किुट खाकर पूरा हफ्ता गुजारा। बीच राह फोन और जूते छीन लिए गए। नंगे पांव चलना पड़ा, बिना पंखे और खिड़की वाली जगह में सोने को मजबूर होना पड़ा।’ किसी फिल्मी डायलॉग का हिस्सा न होकर यह आपबीती है समाना के उन 4 नवयुवकों की, अमरीका पहुंचने की चाह में जिन्हें हाल ही में ‘डंकी रूट’ की दुश्वारियों का शिकार बनना पड़ा। अवैध ढंग से ही सही, एक बड़ी संख्या में भारतीय युवा अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन जैसे देशों की ओर प्रस्थान कर रहे हैं जिनमें बाहुल्य पंजाब, हरियाणा व गुजरात के ग्रामीणों का है। मुख्य कारण जहां साधन सम्पन्न जीवन जीने की अभिलाषा है, वहीं बेरोजगारी के धब्बे से मुक्त  होने की आकांक्षा भी छिपी है। भारत की बेरोजगारी दर में 2018 से लगातार गिरावट आने के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्धता को लेकर स्थिति संतोषप्रद न हो पाना गौरतलब है। 

पंजाबी भाषा के ‘डुंकी’ से उत्पन्न ‘डंकी रूट’ का शाब्दिक अर्थ है-‘‘एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना’’। सीमा नियंत्रण से बचने हेतु यह एक लंबी व घुमावदार यात्रा है, जो अवैध रूप से दूसरे देश में प्रवेश दिलाती है। डंकी प्रथा दिसंबर 2023 के दौरान सुर्खियों में आई, जब फ्रांस ने मानव तस्करी के संदेह में दुबई से निकारागुआ जा रहे 303 भारतीय यात्रियों वाले एक चार्टर विमान की उड़ान पर रोक लगाते हुए, इनमें से अधिकांश को भारत वापस भेज दिया था। प्राप्त जानकारी के अनुसार, मानव तस्कर अक्सर नई दिल्ली तथा मुंबई से पर्यटक वीजा पर संयुक्त  अरब अमीरात ले जाते हैं। तत्पश्चात वेनेजुएला, निकारागुआ, ग्वाटेमाला जैसे लैटिन अमरीका के अनेकों पारगमन बिंदू पार करते हुए अमरीका-मैक्सिको सीमा तक पहुंच बनाते हैं। इस प्रकार के आव्रजन को ‘नंबर दो’ मार्ग के रूप में भी जाना जाता है, जिसे प्राय: ‘नंबर एक’ के कानूनी तरीके को मंजूरी न मिलने अथवा बैकलॉग के कारण निरस्त होने के चलते वैकल्पिक तौर पर अपनाया जाता है। 

विदेश गमन में सर्वाधिक रुझान अमरीका के प्रति देखा गया। यहां रहकर डॉलर कमाना स्टेटस सिंबल का विषय माना जाता है। अमरीका पहुंचने के  प्रयास में 5 वर्ष के दौरान 2 लाख भारतीय अवैध तरीका अपना चुके हैं। अमरीकी सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के तहत, अक्तूबर 2022 से सितंबर 2023 के मध्य 96,917 भारतीय बगैर दस्तावेज अमरीका में प्रवेश करते हुए पकड़े गए। बेहतर भविष्य की तलाश में अपनाए जा रहे इस ‘डंकी रूट’ में कदम-दर-कदम पेश आने वाली दिक्कतें भी कम नहीं। खराब मौसम, भूख, बीमारी, दुव्र्यवहार के साथ कभी-कभार मौत तक का सामना करना पड़ता है।  रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी 2022 में अमरीका-कनाडा सीमा के पास 3 वर्षीय बच्चों सहित एक भारतीय परिवार की ठंड के कारण मौत हो गई थी। 

महीनों लंबी इस यात्रा में मानव तस्कर भी मिलेंगे, अवैध यात्रा संचालन में मदद के नाम पर जो अच्छी-खासी रकम बटोर लेते हैं। हालिया समाना प्रकरण में भी, कथित तौर पर स्पेन में लावारिस छोड़े गए चारों युवकों में प्रत्येक को अमरीका पहुंचने हेतु एक अन्य एजैंट से संपर्क साधने पर 25 लाख रुपए का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ा, जबकि 35 लाख रुपए प्रति व्यक्ति  वे पहले एजैंट को दे चुके थे। केरल के अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन तथा विकास संस्थान के अध्यक्ष एस. इरुदया के अनुसार, ‘‘मुट्ठी भर डंकी प्रवासियों की सफलता की कहानियां बहुसंख्यकों को गुमराह करती हैं। हर कोई प्रवास के लाभों के बारे में बात करता है लेकिन कोई भी समस्याओं और चुनौतियों के बारे में बात नहीं करता।’’ 

‘न इधर के, न उधर के’ वाली स्थिति देश वापसी का विकल्प ही कहां छोड़ती है? विदेश पहुंचने की कवायद में जमीन-जायदाद-जेेवर, सब कुछ तो दाव पर लग चुका होता है। बचती है तो एकमात्र आस अच्छे दिन आने की, बिल्कुल समाना के उन परिजनों की भांति, डंकी रूट में फंसे जिनके नौनिहालों ने बामुश्किल फोन का इंतजाम करके लगभग एक महीने उपरांत अपनी समूची व्यथा बयां की। अभिभावकों के कथनानुसार, कुल 2 करोड़ 40 लाख रुपए इस अवैध विदेश गमन प्रक्रिया की भेंट चढ़ गए, जो एजैंट के झूठे आश्वासन पर अपने बच्चोंं को अमरीका में बसाने की चाह पूरी करने हेतु उन्होंने जमीन-जेवर बेचकर एकत्रित किए थे। ‘हम अपने माता-पिता की बदौलत जिंदा बच गए और अमरीका पहुंच गए’, भुक्त भोगी युवकों का यह कथन सारांश में ढेरों कटाक्ष छोड़ जाता है। क्यों हमारा तंत्र स्वतंत्रता के 77 वर्ष उपरांत भी इतना विकसित नहीं हो पाया कि रोजगार उपलब्धता के संदर्भ में ‘एक अनार, सौ बीमार’ वाली परिस्थिति से देशवासियों को उबार पाए? 

जनता के प्रति जवाबदेह होने के बावजूद प्रशासन की नाक तले अंधेरा कैसे अपना वर्चस्व बना पाता है? सबसे बड़ा सवाल समाज के उस अतार्तिक वर्ग से, जो व्यापक प्रचार के बावजूद नकली एजैंटों के झांसे में आकर अपने बच्चों को ‘डंकी रूट’ अपनाने की अनुमति प्रदान कर देता है, बजाय इसके कि उन्हें देश में रहकर स्व:रोजगार हेतु प्रेरित करने की बात सोचे!-दीपिका अरोड़ा   
 

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