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इतिहास मेें बंदा सिंह बहादुर का नाम हमेशा अमर रहेगा

Edited By ,Updated: 18 Jun, 2024 07:42 AM

the name of banda singh bahadur will always remain immortal in history

इतिहास से बंदा बैरागी का नाम मिटाना असंभव है जिन्होंने मुगलों द्वारा हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों का न केवल विरोध किया बल्कि उन पर सशस्त्र आक्रमण भी किया। वीर बंदा बैरागी के प्रशंसकों को इतिहासकारों से हमेशा यह शिकायत रही है कि उनको इतिहास में...

इतिहास से बंदा बैरागी का नाम मिटाना असंभव है जिन्होंने मुगलों द्वारा हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों का न केवल विरोध किया बल्कि उन पर सशस्त्र आक्रमण भी किया। वीर बंदा बैरागी के प्रशंसकों को इतिहासकारों से हमेशा यह शिकायत रही है कि उनको इतिहास में उपयुक्त स्थान नहीं दिया गया। हालांकि एक कुटिया से शुरू होकर महायोद्धा और राजा बनने तक का उनका सफर अद्भुत और निराला था। विभिन्न भाषाओं के विश्व प्रसिद्ध साहित्यकारों ने अपनी कविताओं द्वारा उनको भरपूर सम्मान और श्रद्धांजलि दी है। 

साहित्यकारों में तीन प्रमुख कवियों का नाम आता है—नोबेल पुरस्कार से सम्मानित राष्ट्रगान के रचयिता और बंगला भाषा के श्रेष्ठ साहित्यकार गुरुदेव रबींद्र नाथ टैगोर, स्वतंत्रता सेनानी और मराठी भाषा के साहित्यकार वीर सावरकर तथा राष्ट्रकवि के नाम से प्रसिद्ध हिन्दी के कवि मैथिलीशरण गुप्त। इस बारे में बंदा बैरागी पर गहन अध्ययन करने वाले भारत सरकार में अधिकारी डॉ. राज सिंह बताते हैं कि रबींद्र नाथ टैगोर ने बंगला भाषा में लिखी कविता ‘बंदी बीर’ में बंदा बैरागी की कुर्बानी को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। 

वीर सावरकर की मराठी में लिखी कविता ‘अमर मृत’ की विषयवस्तु भी गुरुदेव रबींद्र नाथ टैगोर की कविता जैसी ही है जिसमें उन्होंने इस महायोद्धा की वीरता, देशभक्ति और धर्म के प्रति निष्ठा का चित्रण किया है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी कविता ‘वीर वैरागी’ में माधव दास बैरागी, बंदा बैरागी और गुरु गोबिंद सिंह जी की वार्ता को शामिल किया है। बंदा बैरागी लक्ष्मण देव, माधवदास, वीर बंदा बैरागी और बंदा सिंह बहादुर के नाम से प्रसिद्ध रहे हैं। इस धर्म योद्धा ने सच्चाई, देशभक्ति, वीरता और त्याग के मार्ग पर चलते हुए 9 जून, 1716 को मानव उत्थान यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी। इस महायोद्धा की विजय यात्रा सितम्बर 1708 में गुरु गोबिंद सिंह जी से भेंट के बाद महाराष्ट्र के नांदेड़ से शुरू हुई। 

उन्होंने 21 फरवरी, 1709 को सोनीपत (हरियाणा) के पास सेहरी खांडा नामक गांव में निंबार्क सम्प्रदाय और निर्मोही अखाड़े के संत महंत किशोर दास जी के निर्मोही अखाड़ा मठ को अपना प्रथम सैनिक मुख्यालय बनाया। वहीं पर मात्र 8 महीने की अवधि में अपनी सेना का गठन कर लिया। 2 नवम्बर,1709 को उन्होंने इसी स्थान से सोनीपत स्थित मुगल ट्रैजरी पर हमला किया और अपनी सेना के खर्चों के लिए आर्थिक संसाधनों का प्रबंध किया। यहीं से बंदा बैरागी का प्रामाणिक एवं दस्तावेजों पर आधारित इतिहास आरंभ होता है। इससे पहले की उनकी जीवन गाथा जनश्रुति और इतिहासकारों के अनुमानों पर आधारित थी। 

वीर सावरकर द्वारा बंदा बैरागी पर मराठी में लिखी हुई कविता ‘अमर मृत’ ब्रिटिश इतिहासकार टोड द्वारा लिखी पुस्तक पर आधारित है। वीर सावरकर ने भारतीय इतिहास पर मराठी में लिखी गई अपनी पुस्तक ‘भारतीय इतिहासतील सहा सोनेरी पाने’ में भी बंदा बैरागी की वीरता का वर्णन करते हुए अपनी कविता ‘अमर मृत’ का जिक्र किया है। इस पुस्तक में बंदा बैरागी के बारे में वे लिखते हैं कि हिन्दू इतिहास से उस वीर शहीद का नाम कभी भी नहीं मिटाया जा सकता जिन्होंने मुगलों द्वारा हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों का न केवल विरोध किया बल्कि उन पर सशस्त्र आक्रमण भी किया। वीर सावरकर लिखते हैं कि बंदा बैरागी मूलत: एक वैष्णव संत थे। उन्हें गुरु गोबिंद सिंह जी से पता चला कि किस प्रकार पंजाब में हिन्दुओं और सिखों पर मुगल शासकों द्वारा अत्याचार किए जा रहे हैं। 

इसके बाद उन्होंने मुगलों से बदला लेने की ठान ली। इस प्रकार यह बहादुर योद्धा मुगलों द्वारा अमानवीय तरीकों से हिन्दुओं को प्रताडि़त किए जाने के विरुद्ध पंजाब की ओर अग्रसर हुए। अपनी पुस्तक में सावरकर लिखते हैं कि तत्त खालसा के बैनर तले सिखों का एक बड़ा दल बंदा बैरागी की सेना से अलग हो गया जिसके कारण उनकी सेना कमजोर पड़ गई। यदि ऐसा न हुआ होता तो युद्ध के परिणाम कुछ और होते। वीर सावरकर ने अंडमान की जेल में उनके द्वारा लिखी हुई बंदा बैरागी की कुर्बानी की कविता में उस घटना का वर्णन किया जब 7 दिसम्बर 1715 को गुरदासपुर नंगल की गढ़ी में महीनों तक मुगल सेना का मुकाबला करते हुए खाद्य सामग्री के समाप्त हो जाने के बाद बंदा बहादुर और उनकी सेना को मुगल सेना द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। बंदा बैरागी को सर्कस के शेर वाले लोहे के पिंजरेे में बंद करके लाहौर ले जाया गया। उन्हें करीब दो महीने तक लाहौर में ही रखा गया और फि र फ रवरी 1709 में बंदा बैरागी को उनके 740 सैनिकों सहित लाहौर से दिल्ली तक लाया गया। 

सावरकर के साहित्य को पढ़कर लगता है कि वे बंदा बैरागी के जीवन से अत्यंत प्रभावित थे। वीर सावरकर आगे लिखते हैं कि बंदा बैरागी के रक्तरंजित इतिहास पर मुगल सल्तनत की गर्दन हमेशा शर्म से झुकी रहेगी। ऐसी घटना दुनिया में न पहले कभी हुई और न भविष्य में होगी। सावरकर ने बंदा बैरागी के लिए अनेक विशेषणों का प्रयोग किया है। उन्होंने बैरागी के लिए महावीर, दव्यत्यागी, रणयोद्धा, प्रकांड देशभक्त, अलौकिक देशप्रेमी तथा कर्मयोगी जैसे शब्दों का प्रयोग किया है।
सिख रिसर्च इंस्टीच्यूट टैक्साज के सह संस्थापक हरिंद्र सिंह लिखते हैं, ‘‘38 वर्ष का होते-होते हम बंदा सिंह बहादुर के जीवन की दो पराकाष्ठाओं को देखते हैं। गुरु गोबिंद सिंह से भेंट से पहले वे वैष्णव और शैव परम्पराओं का पालन कर रहे थे। लेकिन उसके बाद उन्होंने सैनिक प्रशिक्षण, हथियारों और सेना के बिना 2500 किलोमीटर की यात्रा की और 20 मास के अंदर सरहिंद पर कब्जा कर खालसा राज की स्थापना की।’’ राजमोहन गांधी अपनी पुस्तक ‘पंजाब ए हिस्ट्री फ्रॉम औरंगजेब टू माऊंटबेटन’ में लिखते हैं, ‘‘घायल होने और अपने ज्योति ज्योत समाने के बीच गुरु गोबिंद सिंह चाहते तो अपने पूर्ववर्तियों की तरह किसी व्यक्ति को अगला गुरु नामांकित कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने  घोषणा की कि उनके बाद गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों के स्थायी गुरु का दर्जा दिया जाएगा।’’(यह लेखक के निजी विचार हैं।)-सुखदेव वशिष्ठ
 

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