जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए कठोर उपायों की आवश्यकता

Edited By ,Updated: 14 Jul, 2024 06:46 AM

the need for strict measures to curb terrorism in jammu and kashmir

जम्मू -कश्मीर में आतंकवाद का कहर जारी है। 8 जुलाई को जम्मू के कठुआ जिले में घात लगाकर किए गए हमले में भारतीय सेना के 5 जवान शहीद हो गए थे। उग्रवादियों ने ऐसी जगह पर हमला किया था जिसके एक तरफ पहाड़ी है और दूसरी तरफ खड़ी ढलान है। हमलावर पहाड़ी की ओर...

जम्मू -कश्मीर में आतंकवाद का कहर जारी है। 8 जुलाई को जम्मू के कठुआ जिले में घात लगाकर किए गए हमले में भारतीय सेना के 5 जवान शहीद हो गए थे। उग्रवादियों ने ऐसी जगह पर हमला किया था जिसके एक तरफ पहाड़ी है और दूसरी तरफ खड़ी ढलान है। हमलावर पहाड़ी की ओर से आए थे उनके वाहन को उग्रवादियों की गोलीबारी का खामियाजा भुगतना पड़ा। राज्य खासकर जम्मू में 48 घंटों के भीतर यह चौथी आतंकी घटना थी और हाल के हमलों की शृंखला का हिस्सा थी। मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि यह जम्मू और कश्मीर में पीर पंजाल रेंज के दक्षिण में बढ़ते आतंकवाद का एक नया चलन है। 

कश्मीर में उग्रवाद की शुरूआत अगस्त 1955 में स्थापित जनमत संग्रह मोर्चे से हुई। इस मोर्चे ने युवाओं के बीच काम किया और उनकी निराशा को भारत के खिलाफ कर दिया। जल्द ही इसने अपना भाग्य भारत विरोधी कट्टरपंथियों से जोड़ लिया। उग्रवादियों की धमकियां महिलाओं को पर्दा करने और उन्हें सिनेमा हॉल में जाने से रोकने के आह्वान के साथ शुरू हुईं। हिंदू महिलाओं से टीका न लगाने का आग्रह किया गया।(माथे पर बिंदी हिंदू महिलाओं की पहचान है)। संयोग से, कश्मीर में ग्रामीण मुस्लिम महिलाएं मुश्किल से ही पर्दा पहनती थीं और यहां तक कि शहरी कस्बों में भी यह प्रथा लगभग बंद हो चुकी थी। इन संहिताओं पर उग्रवादियों के बीच अभी भी एकमत नहीं है। पाकिस्तान लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि उसका उग्रवाद से कोई लेना-देना नहीं है और उसने उग्रवादियों को कोई सहायता नहीं दी है। यह सच नहीं है। यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि पाकिस्तान आतंकवादियों को प्रशिक्षण और उन्हें हथियार दे रहा है। 

इस्लामाबाद कश्मीर के आतंकवादियों के लिए 30 से अधिक प्रशिक्षण शिविर चला रहा है। यह कोई रहस्य नहीं है कि पाकिस्तान 1947 से, खासकर 1972 के बाद से युवाओं में भारत के खिलाफ असंतोष को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। आज, कथित तौर पर घाटी में 100 से अधिक आतंकवादी संगठन हैं। कश्मीर के भविष्य पर वे बंटे हुए हैं। जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जे.के.एल.एफ.) लंबे समय से कश्मीर की आजादी की मांग कर रहा था। कई लोग पाकिस्तान में विलय के पक्ष में हैं और उन्हें न केवल आई.एस.आई. स्रोतों के माध्यम से बल्कि इस्लामिक देशों, विशेषकर खाड़ी में कट्टरपंथी ताकतों से भी धन मिल रहा था।

इसराईली-अमरीकी राजनीतिक वैज्ञानिक योसेफ बोडांस्की, जिन्होंने 1988 से 2004 तक अमरीकी प्रतिनिधि सभा के आतंकवाद और अपरंपरागत युद्ध पर कांग्रेस टास्क फोर्स के निदेशक के रूप में कार्य किया, का मानना था कि उग्रवादी और इस्लामी ताकतें विश्व शांति के लिए प्रमुख खतरा हैं। उन्होंने भारत को चेतावनी दी थी कि यदि किसी कारण से उसने कश्मीर छोडऩे का फैसला किया, तो उस राज्य पर इस्लामवादियों द्वारा कब्जा कर लिया जाएगा। उनका यह भी विचार है कि कश्मीरी कभी भी स्वतंत्रता का आनंद नहीं ले सकते क्योंकि उन्हें हमेशा कट्टरपंथियों के आदेशों का पालन करना होगा। बोडांस्की ने यह भी कहा कि कश्मीर के खोने से भारत की सुरक्षा पर गंभीर प्रतिकूल परिणाम होंगे। 

आतंकवादी वस्तुत: अदृश्य हैं। इन्हें सिर्फ पुलिस ही देख सकती है, सेना नहीं। इसीलिए आतंकवाद विरोधी उपायों में पुलिस की महत्वपूर्ण भूमिका है। केंद्र को इस गंभीर मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना होगा। बेशक, घाटी में पुलिस को पुनर्जीवित करना एक कठिन काम है। फिर भी, पूरे पुलिस तंत्र को नए सिरे से तैयार करना होगा। इस उद्देश्य से प्रशासन को भी दुरुस्त करना होगा। यह एक बहुत बड़ा कार्य है जिसे समय-समय पर करना होगा। यह भी उतना ही आवश्यक है कि नई दिल्ली कश्मीरियों का दिल जीतने के लिए लगातार गंभीर प्रयास करे। वास्तव में, वास्तविक जन लोकतंत्र ही कश्मीर की जटिल समस्याओं का एकमात्र समाधान है। यह शेष भारत के राजनीतिक परिवेश में अच्छी तरह फिट बैठता है।-हरि जयसिंह
 

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