नई सरकार के सामने ‘ए.आई.’ और जलवायु परिवर्तन की बड़ी चुनौती

Edited By ,Updated: 04 Jun, 2024 05:15 AM

the new government faces the big challenge of  ai  and climate change

आखिरी चरण के मतदान के पहले ओपन ए.आई. कम्पनी ने खुलासा किया कि इसराईल और दूसरे देशों से चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश की गई। चुनाव प्रचार के दौरान चैट जी.पी.टी. और दूसरे ए.आई. प्लेटफार्म के माध्यम से झूठी कहानियां गढ़ी गईं।

आखिरी चरण के मतदान के पहले ओपन ए.आई. कम्पनी ने खुलासा किया कि इसराईल और दूसरे देशों से चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश की गई। चुनाव प्रचार के दौरान चैट जी.पी.टी. और दूसरे ए.आई. प्लेटफार्म के माध्यम से झूठी कहानियां गढ़ी गईं। फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और एक्स आदि सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से फेक और झूठे कंटैंट का प्रसार करके मतदाताओं को भरमाने का प्रयास किया गया। भाजपा और संघ समर्थकों के अनुसार यू-ट्यूब के माध्यम से सरकार विरोधी कंटैंट को फैलाने में गूगल इंडिया के कर्मचारियों ने मदद की। साइबर अपराधों पर रोकथाम और ए.आई. (कृत्रिम बुद्धिमता) पर नियमन नई सरकार के सर्वोच्च एजैंडे में शामिल हैं। 

दूसरा बड़ा मुद्दा जलवायु परिवर्तन से जुड़ा है। दिल्ली हाईकोर्ट ने बढ़ते तापमान को लेकर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि वह दिन दूर नहीं जब देश की राजधानी रेगिस्तान बन जाएगी। उत्तर भारत में लू और आग की घटनाओं को रोकने, दक्षिण भारत में रेमल चक्रवात से निपटने और उत्तर-पूर्व भारत में बाढ़ और भू-स्खलन से निपटने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अधिकारियों को दिशा-निर्देश दिए हैं। 

जलवायु परिवर्तन पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला : चुनाव रिजल्ट पर तस्वीर साफ  होने के साथ विश्व पृथ्वी दिवस के मौके पर नई सरकार का आगाज होगा। प्रधानमंत्री मोदी साल 2047 में नए भारत की तस्वीर को गढऩे की कोशिश कर रहे हैं। स्मार्ट सिटी के प्रोजैक्ट में खरबों रुपए खर्च हो रहे हैं जबकि हकीकत में दिल्ली समेत देश के दूसरे महानगरों और गांवों, कस्बों में जलवायु परिवर्तन की वजह से लोगों को जान के लाले पड़ रहे हैं। दिल्ली सरकार पानी की किल्लत के लिए पड़ोसी राज्यों को जिम्मेदार ठहरा रही है लेकिन अधिकांश राज्य भयानक जल संकट से जूझ रहे हैं। सोशल मीडिया में वायरल हो रही पोस्ट के अनुसार दुनिया में प्रति व्यक्ति 422 पेड़ की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति 28 पेड़ ही हैं। इंगलैंड में 47, चीन में 130, अमरीका में 699, ऑस्ट्रेलिया में 3266 और कनाडा में 10163 प्रति व्यक्ति पेड़ होने का दावा किया जा रहा है। 

भारत में सभी शहर कचरों के पहाड़ बन गए हैं। नगर पालिका और एम.सी.डी. इस बदहाली की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर ठेल देते हैं। राज्य सरकारें इसके लिए केन्द्र सरकार को जवाबदेह ठहरा देती हैं। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में इस बारे में सतही पी.आई.एल. फाइल होने के बाद हो-हल्ला भी मचता है लेकिन जमीनी हकीकत बद से बदतर हो रही है। पैरिस और दुबई में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी कांफ्रैंस में जीवाश्म ईंधन पर काबू पाने जैसे मामलों पर ठोस बहस हुई लेकिन भारत में प्रदूषण नियंत्रण, ई-वेस्ट, प्लास्टिक और सोलर वेस्ट से जुड़े नियम सिर्फ कानून की किताबों में कैद हैं। 

2 महीने पहले अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में जलवायु परिवर्तन को समानता और जीवन के अधिकार के साथ जोड़ा था। उसके अनुसार लोगों को स्वस्थ पर्यावरण में रहने का संवैधानिक अधिकार है लेकिन ऐसे फैसलों पर मीडिया में ज्यादा चर्चा नहीं होती। 7 चरणों के चुनावों में जल, जंगल, जमीन और जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर नेताओं और जनता में कोई जागरूकता नहीं दिखी। सरकारें भी वोट बैंक के शॉर्टकट के अनुसार रेवडिय़ां बांटने में ज्यादा मस्त रहती हैं। सरकारी सुविधाओं और रेवडिय़ों की होड़ में लाभार्थी बन रहे समाज में प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का पूरी तरह से अभाव है। गांवों की कृषि अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सरकार, सुप्रीम कोर्ट और संसद के ट्रिपल इंजन को एकजुट होकर दीर्घकालिक रणनीति से मुकाबला करने की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन के दुष्चक्र से यदि शहर भी मौत की भट्ठी बन गए तो फिर 140 करोड़ की आबादी वाले देश में विकसित भारत का सपना कैसे साकार होगा? 

ए.आई. और डिजिटल की चुनौती : इस बार के चुनाव यू-ट्यूब और व्हाट्सएप ग्रुप्स के माध्यम से लड़े गए। विदेशी डिजिटल कम्पनियों के नियमन के लिए हमारे प्रतिवेदन पर चुनाव आयोग ने साल 2013 में गाइडलाइंस जारी की थीं, जिन पर लापता जैंटलमैनों (चुनाव आयुक्तों) के दौर में अमल ही नहीं होता। सभी पाॢटयों के आई.टी. सैल और नेताओं ने सोशल मीडिया के माध्यम से चुनाव आयोग की आचार संहिता का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किया।  इसके लिए ए.आई. के माध्यम से बड़े पैमाने पर फर्जी और झूठी सामग्री बनाई गई। डीपफेक की बाढ़ को रोकने के लिए चुनाव आयोग ने 70 लोगों की टीम बनाई थी। उन्होनें बड़े इन्फ्लुएंसर्स के सोशल मीडिया को खंगाल कर फैक्ट चैक करने की कोशिश की लेकिन पूरे चुनावी प्रचार के दौरान ए.आई. जेनरेटिड वीडियो, ऑडियो, मैसेज और फोटो की बाढ़ थी। मतदान के 48 घंटे पहले के साइलैंस पीरियड में नेताओं ने सोशल मीडिया से चुनाव प्रचार कर आचार-संहिता की धज्जियां उड़ाईं। 

भारत में डाटा सुरक्षा कानून और उसके नियम लागू नहीं हैं और ए.आई. पर कई सालों से कानून बनाने की चर्चा हो रही है। कानून लागू नहीं होने और प्रभावी रैगुलेटर की कमी की वजह से भारत डाटा चोरी और साइबर अपराध की सबसे बड़ी मंडी बन गया है। चुनावों के दौरान दुनिया के सबसे रइस व्यक्ति मस्क ने फेसबुक और व्हाट्सएप वाली मेटा कम्पनी पर डाटा चोरी का आरोप लगाया। टेस्ला और एक्स के मालिक मस्क के इन आरोपों पर भारत में मीडिया रिपोॄटग और चुनावी बहस नहीं होना निराशाजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है। 2007 के बाद ‘ऑप्रेशन प्रिज्म’ के तहत अमरीकी खुफिया एजैंसियों ने भारत का बड़े पैमाने पर डाटा चुराया। डाटा चोरी, अराजक सोशल मीडिया और ए.आई. के गैर-कानूनी इस्तेमाल से वोटिंग और रिजल्ट को प्रभावित करने का ट्रैंड जारी रहा तो भारतीय लोकतंत्र और सरकारें विदेशी कम्पनियों की गिरफ्त में आ सकती हैं।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 

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