नए साल में राजनीतिक दलों के लिए परीक्षा की घड़ी

Edited By ,Updated: 02 Jan, 2025 05:30 AM

the new year is a testing time for political parties

वर्ष 2024 इतिहास में देश के लिए राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण वर्षों में से एक के रूप में दर्ज होगा और सभी राजनीतिक नेताओं को वर्ष 2025 में आने वाले चुनावों की तैयारी के लिए सबक सीखने की आवश्यकता है। लगातार तीसरी बार मोदी सरकार की वापसी नि:संदेह...

वर्ष 2024 इतिहास में देश के लिए राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण वर्षों में से एक के रूप में दर्ज होगा और सभी राजनीतिक नेताओं को वर्ष 2025 में आने वाले चुनावों की तैयारी के लिए सबक सीखने की आवश्यकता है। लगातार तीसरी बार मोदी सरकार की वापसी नि:संदेह वर्ष की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना थी। भारतीय जनता पार्टी, जो ‘अब की बार 400 पार’ के नारे के साथ चुनाव प्रचार में उतरी थी, को 240 सीटों पर संतोष करना पड़ा, जिससे उसे सरकार बनाने के लिए अपने सहयोगियों पर निर्भर होना पड़ा।

99 सीटों के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपनी संख्या में सुधार किया, लेकिन ‘इंडिया’ गठबंधन बहुमत हासिल करने के अपने लक्ष्य से बहुत पीछे रह गया। विडंबना यह है कि विजेता परिणाम से बहुत खुश नहीं था, जबकि प्रतिद्वंद्वी इस बात से खुश थे कि भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को भारी बहुमत से वंचित किया गया था, जो ‘संविधान में संशोधन’ कर सकता था। भाजपा ने अहंकार और विभाजनकारी राजनीति में लिप्त होने की कीमत चुकाई। इसके नेताओं ने यहां तक कहा कि पार्टी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के समर्थन की आवश्यकता नहीं है और यह अपने दम पर चुनाव लडऩे और जीतने में सक्षम है।  ‘इंडिया’ गठबंधन ने क्षेत्रीय दलों के कांग्रेस के साथ गठबंधन करने पर भी प्रभाव डाला, जिससे दो तिहाई बहुमत के साथ वापस आए एन.डी.ए. गठबंधन के संविधान में बड़े संशोधनों की आशंका पैदा हो गई।

भाजपा ने आत्मनिरीक्षण करने और लोकसभा चुनावों में अपने अभियान और प्रदर्शन से सबक लेने में देर नहीं लगाई। इसका असर हरियाणा में कांग्रेस की चौंकाने वाली हार में दिखाई दिया, जहां लगभग हर किसी ने मौजूदा भाजपा सरकार की हार का अनुमान लगाया था। पार्टी ने एक ऐसी रणनीति बनाई जिसने कांग्रेस को मात दी और हार को जीत में बदलने में सक्षम रही। लोकसभा चुनावों में तुलनात्मक रूप से खराब प्रदर्शन के बाद इस जीत ने पार्टी नेताओं और कार्यकत्र्ताओं का मनोबल बढ़ाया। महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में जोरदार जीत के साथ पार्टी को और बढ़ावा मिला, जहां  ‘इंडिया’ गठबंधन के सहयोगियों के लिए दाव ऊंचे थे। 

लोकसभा चुनाव में मिली हार से वह उबर पाई और ऐसा लगा कि उसने सबक सीख लिया है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं है, जिसने लोकसभा में अपनी सीटें बढ़ाई थीं, लेकिन फिर वह आत्मसंतुष्ट हो गई। हरियाणा के उसके नेता जीत के प्रति इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने विधानसभा चुनाव के लिए कोई रणनीति नहीं बनाई। नेताओं के बीच खुली लड़ाई के अलावा, किसी ने बागी उम्मीदवारों से संपर्क करने के बारे में नहीं सोचा। कांग्रेस द्वारा आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन से इन्कार करने के बाद ‘इंडिया’ गठबंधन टूट गया। महाराष्ट्र में भी ऐसी ही गलतियां की गईं। नए साल में 2 प्रतिष्ठित चुनाव होने हैं। एक दिल्ली विधानसभा के लिए और दूसरा बिहार के लिए। 

अगर  ‘इडिया’ गठबंधन के सहयोगी पिछले साल से सबक नहीं सीखते हैं, तो वे इतिहास को दोहराने के लिए अभिशप्त हैं। यह लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के लिए भी परीक्षा की घड़ी होगी, जिन्होंने लोकसभा के लिए प्रचार में कुछ जोश दिखाया था, लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में पीछे हट गए। दूसरी ओर, नर्म पड़ चुकी मोदी सरकार को अपने सहयोगियों को साथ लेकर चलने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा।-विपिन पब्बी
 

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