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A.I. वर्चस्व के लिए जारी संघर्ष

Edited By ,Updated: 23 Feb, 2025 05:49 AM

the ongoing struggle for a i supremacy

हाल ही में म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में अमरीकी उप-राष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने एक स्पष्ट भाषण में यूरोप के नेताओं को लोकतंत्र के पवित्र प्याले का गठन करने वाले मूलभूत सिद्धांतों के बारे में उनके कपट के लिए फटकार लगाई। हालांकि वेंस के भाषणों में...

हाल ही में म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में अमरीकी उप-राष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने एक स्पष्ट भाषण में यूरोप के नेताओं को लोकतंत्र के पवित्र प्याले का गठन करने वाले मूलभूत सिद्धांतों के बारे में उनके कपट के लिए फटकार लगाई। हालांकि वेंस के भाषणों में राष्ट्रपति ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान वैचारिक अलगाववाद को पुनर्जीवित करने पर जोर दिया गया था। एक बार फिर इस बात पर जोर देते हुए ट्रम्प प्रशासन द्वारा ए.आई. सहयोग पर पैरिस घोषणा पर हस्ताक्षर न करने के निर्णय से उपरोक्त धारणाएं स्पष्ट हो गईं, कि सहयोग की बजाय प्रतिस्पर्धा ही ए.आई. वर्चस्व के लिए राजनीतिक और भू-रणनीतिक दौड़ का दृष्टिकोण होगा।

ए.आई. वर्चस्व के लिए भयंकर वैश्विक लड़ाई: दुनिया भर के देश ए.आई. में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहे हैं, इसे भविष्य की आर्थिक और सैन्य ताकत की आधारशिला के रूप में पहचान रहे हैं। चीन ने 2030 तक ए.आई. में 150 बिलियन डॉलर निवेश करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है, जबकि रूस ने 2021 और 2023 के बीच 181 मिलियन डालर आबंटित किए हैं। संयुक्त राज्य अमरीका ने संघीय ए.आई. अनुबंधों में नाटकीय उछाल देखा, जो 2022 में 355 मिलियन डालर से बढ़कर 2023 में 4.6 बिलियन डालर हो गया। इसके अतिरिक्त, सऊदी अरब ने हाल ही में 40 बिलियन डालर के ए.आई. फंड की घोषणा की। इस बीच, राज्य के नेतृत्व वाली पहलों के समर्थन से चीन 2030 तक अमरीका से आगे निकलने के लिए दृढ़ संकल्पित है। डीपसीक-वी3 तकनीक द्वारा संचालित चीनी डीपसीक ए.आई. सहायक की सफलता और पश्चिम में इसके द्वारा बजाई गई खतरे की घंटी ए.आई. के क्षेत्र में चीन की बढ़ती ताकत का संकेत है।

दक्षिण कोरिया और इसराईल जैसे छोटे देश हार्डवेयर, साइबर सुरक्षा और सैन्य अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपने स्वयं के ए.आई. क्षेत्र बना रहे हैं। हालांकि, वैश्विक ए.आई. शासन खंडित बना हुआ है, जैसा कि पैरिस ए.आई. शिखर सम्मेलन 2023 में अमरीका और यू.के. जैसे प्रमुख खिलाडिय़ों के दृष्टिकोण में अंतर और विरोधाभास से स्पष्ट होता है।

भारत का ए.आई. संघर्ष: खोए अवसरों की कहानी :अपने मजबूत आई.टी. क्षेत्र के बावजूद, भारत में स्पष्ट और प्रभावी ए.आई. रणनीति का अभाव है। भारत में ए.आई. मिशन जैसी सरकारी पहलों ने अभी तक कोई खास प्रभाव नहीं डाला है और ए.आई. अनुसंधान और विकास में निवेश अपर्याप्त है। जुलाई, 2024 में पेश किए गए भारत के आॢथक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.64 प्रतिशत आर.एंड डी. को आबंटित करता है, जो चीन के 2.41 प्रतिशत और इसराईल तथा दक्षिण कोरिया जैसे देशों द्वारा खर्च किए जाने वाले 4-5 प्रतिशत से काफी कम है। भारत ने ए.आई. मिशन के लिए बजट 2024-25 में 551.75 करोड़ से घटाकर 173 करोड़ रुपए कर दिया, जबकि 2025-26 के लिए 2000 करोड़ रुपए का प्रस्तावित बजट अनुमान है, जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए आवश्यक स्तर से अभी भी काफी कम है।

चेंज इंजन की एक रिपोर्ट में भारत को ए.आई. अनुसंधान योगदान में 14वें स्थान पर रखा गया है, जो वैश्विक योगदान का सिर्फ 1.4 प्रतिशत है, जबकि यू.एस. और चीन क्रमश: 30.4 प्रतिशत और 22.8 प्रतिशत योगदान के साथ सबसे आगे हैं। इस बीच, हांगकांग, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया जैसे छोटे देशों ने महत्वपूर्ण प्रगति की है। इस अंतर को पाटने के लिए, भारत की इंजीनियरिंग शिक्षा को उन्नत ए.आई. अनुसंधान के लिए स्नातकों को तैयार करने के लिए विकसित किया जाना चाहिए।  विशेषज्ञों का सुझाव है कि एक प्रतिस्पर्धी स्थिति को सुरक्षित करने के लिए, भारत को अगले 5 वर्षों में अपने ए.आई. अनुसंधान उत्पादन को कम से कम 50 प्रतिशत तक बढ़ाना चाहिए।

भारत की  ए.आई. महत्वाकांक्षाएं बुनियादी ढांचे की कमी से बाधित : एक संपन्न ए.आई. पारिस्थितिकी तंत्र एक मजबूत सैमीकंडक्टर और कम्प्यूटिंग उद्योग पर निर्भर करता है। यह  ऐसे क्षेत्र हैं जहां भारत संघर्ष करना जारी रखे हुए है। जबकि ताईवान, दक्षिण कोरिया और यू.एस. जैसे देशों ने सैमीकंडक्टर निर्माण में निवेश किया है, भारत के प्रयास, जैसे कि वेदांता-फॉक्सकॉन परियोजना, नीतिगत अनिश्चितताओं और नौकरशाही की देरी से बाधित हुई है। 2022 में, अमरीका ने चिप्स और विज्ञान अधिनियम के माध्यम से सैमीकंडक्टर अनुसंधान एवं विकास के लिए 52 बिलियन डालर का निवेश किया, जबकि यूरोपीय संघ ने 47 बिलियन डालर की सैमीकंडक्टर पहल शुरू की। इसके विपरीत, भारत के पास व्यापक सैमीकंडक्टर रणनीति का अभाव है। 

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए.आई.) में भारत की धीमी प्रगति का कारण खंडित नीतियां और अपर्याप्त निवेश हो सकता है। एक और बड़ी चुनौती प्रतिभा पलायन है। भारत के कई शीर्ष ए.आई. और सैमीकंडक्टर इंजीनियर बेहतर अनुसंधान सुविधाओं और फंडिंग के कारण अमरीका और यूरोप में अवसरों की तलाश में चले जाते हैं। मजबूत प्रोत्साहन के बिना, प्रतिभा को बनाए रखना एक संघर्ष बना रहेगा। इसके अतिरिक्त, भारत ने अभी तक प्रभावी सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा नहीं दिया है जो अमरीका और चीन जैसे देशों में ए.आई. प्रगति का एक आवश्यक चालक है। नौकरशाही की बाधाएं डीप टेक और ए.आई. स्टार्टअप में निजी निवेश को और हतोत्साहित करती हैं। भारत को अपने ए.आई. भविष्य को सुरक्षित करने के लिए अभी कार्य करना चाहिए।भारत को कृत्रिम बुद्धिमत्ता में वैश्विक नेता के रूप में उभरने के लिए ए.आई. सैमीकंडक्टर और क्वांटम कम्प्यूटिंग के प्रति अपने दृष्टिकोण को तत्काल बदलना होगा।-मनीष तिवारी (वकील, सांसद एवं पूर्व मंत्री)
     

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