ईसाई मत के तेजी से फैलाव का सर्वाधिक असर सिखों पर

Edited By ,Updated: 02 Nov, 2024 06:04 AM

the rapid spread of christianity had the greatest impact on sikhs

भारतीय  जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आर.पी. सिंह द्वारा पंजाब में ईसाई मत के तेजी से फैलने के मुद्दे पर दिए बयान से एक बार तो सिख सियासत में भूचाल की स्थिति पैदा हो गई थी। शिरोमणि अकाली दल के नेताओं ने आर.पी. सिंह के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज करने...

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आर.पी. सिंह द्वारा पंजाब में ईसाई मत के तेजी से फैलने के मुद्दे पर दिए बयान से एक बार तो सिख सियासत में भूचाल की स्थिति पैदा हो गई थी। शिरोमणि अकाली दल के नेताओं ने आर.पी. सिंह के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज करने की भी मांग कर दी थी, मगर बाद में आर.पी. सिंह ने अपना बयान वापस ले लिया था। मगर आज हम आर.पी. सिंह के बयान के गलत या ठीक होने बारे बात नहीं कर रहे। हम बात करेंगे बयान से उठे उस मुद्दे बारे, जिस पर गहरी नजर डालने से यह लगता है कि पंजाब में ईसाई मत तेजी से फैल रहा है और इस फैलाव का सबसे अधिक असर सिख धर्म के अनुयायियों पर पड़ रहा है।

पिछले इतिहास पर नजर डालें तो सहज ही अंदाजा हो जाता है कि अंग्रेज हुकूमत तथा ईसाई धर्म के प्रचारकों द्वारा सिखों का धर्म परिवर्तन करने का पुराना इतिहास है। ऐसी सबसे बड़ी कार्रवाई अंग्रेज हुकूमत द्वारा सिख राज के अंतिम महाराजा दलीप सिंह का विवादपूर्ण हालातों में धर्म परिवर्तन करना था। इसके बाद ईसाई प्रचारकों ने पंजाब में अपनी गतिविधियां बढ़ा दी थीं। महाराजा रणजीत सिंह के निधन के बाद अंग्रेज हुकूमत ने सिख गुरुद्वारों का प्रबंध चलाने के लिए सिख मर्यादाओं के विपरीत चल रहे महंतों, निर्मलियों तथा उदासियों को पूरी हिमायत देनी शुरू कर दी और सिखों को ईसाई बनाने के लिए एक मुहिम छेड़ दी थी। इन हालातों के मद्देनजर प्रमुख सिख शख्सियतों द्वारा सिंह सभा लहर चलाने का फैसला किया गया। इस सभा की पहली औपचारिक बैठक 1 अक्तूबर 1873 को श्री अकाल तख्त साहिब के सामने हुई। इस मीटिंग में ठाकर सिंह संधावालिया को प्रधान चुन लिया गया। इसी वर्ष ईसाई प्रचारकों ने 4 सिख नौजवान विद्याॢथयों को ईसाई धर्म के पैरोकार बना लिया था। इस कारण सिंह सभा लहर के नेताओं ने सिख धर्म के प्रचार को अपना मिशन बना लिया जिसका बड़ा असर हुआ तथा 19वीं सदी के अंत में ही परिणाम आने शुरू हो गए और 1940 तक सिखों की आबादी दोगुनी हो गई। 

इस समय दौरान शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी तथा शिरोमणि अकाली दल ने सिख पंथ की बागडोर संभाल ली थी तथा दोनों संगठन सिख पंथ के सिरमौर संगठन बन गए थे। इसके बाद भारत आजाद हो गया। अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए तथा ईसाई प्रचारक ठंडे पड़ गए। आजादी के बाद बेशक सिख पंथ को धर्म परिवर्तन का कोई खतरा नहीं रहा था मगर देश की हुकूमत के साथ दोनों संगठनों ने कई संघर्ष किए और सिख हितों की रक्षा की। मगर गत कुछ वर्षों से सिख पंथ के सामने फिर महाराजा रणजीत सिंह के निधन के बाद वाली स्थिति पैदा हो गई और ईसाई भाईचारे की आबादी जो 2011 में 1.3 प्रतिशत से भी कम थी, बारे दावा किया जा रहा है कि उनकी आबादी अब 15 प्रतिशत से भी अधिक हो गई है। 

इस दावे को सही ठहराने के लिए कुछ उदाहरण हैं, जिनमें 5 जुलाई 2022 को अमृतसर में अमृतसर क्रूसेड (धर्म युद्ध) के नाम पर ईसाई पादरी अंकुर जोसेफ नरूला के नेतृत्व में किया गया लाखों ईसाइयों का इक_, इसी पास्टर द्वारा जालंधर में दुनिया का चौथा तथा एशिया का सबसे बड़ा चर्च साइनस एंड वंडर्स का निर्माण करवाना, अमृतसर जिले के गांव दूजोवाल में 30 प्रतिशत वोटरों का ईसाई बनना तथा अजनाला तहसील के एक गांव अवाना में 4 चर्चों का स्थापित होना शामिल है।
हैरानी की बात यह है कि सिखों तथा हिंदुओं से ईसाई बने ये लोग न तो अपना पहरावा बदलते हैं और न ही सरकारी कागजों में अपना धर्म, जिस कारण  जनगणना में इनकी सही संख्या का पता नहीं चलता। कुछ समय पहले छपी एक रिपोर्ट में भी यह दावा किया गया था कि गुरदासपुर में पिछले 5 वर्षों में ईसाइयों की जनसंख्या दोगुनी हो गई है तथा धर्म परिवर्तन करने वालों को पहले तो चावल व गेहूं मुफ्त दिया जाता है  मगर अब उनके बच्चों को यू.के. तथा कनाडा के वीजे, नौकरियां, मुफ्त पढ़ाई तथा बुरी ताकतों से रक्षा करने का वायदा किया जाता है। 

किसी धर्म की आबादी कितनी बढ़ रही है इससे किसी अन्य धर्म या संस्था को कोई सरोकार नहीं होना चाहिए किंतु जब यह लगे कि यह धर्म परिवर्तन जबरदस्ती या लालच देकर करवाया जा रहा है तो उस धर्म के नेताओं, जिनके धर्म के लोगों का धर्म परिवर्तन हो रहा है, का चिंतित होना बनता है क्योंकि यह परिवर्तन कानूनी तौर पर भी गलत है। कुछ समय पहले इस सबको भांपते हुए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा इस धर्म परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए घर-घर में धर्मशाल प्रोग्राम शुरू किया गया था। इसके अतिरिक्त श्री अकाल तख्त साहिब के उस समय के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने भी यह आरोप लगाया था कि ईसाई प्रचारक जबरदस्ती तथा लालच देकर सिखों को ईसाई बना रहे हैं और उन्होंने धर्म परिवर्तन विरोधी कानून बनाने की मांग भी की थी। मगर शिरोमणि कमेटी की मुहिम का कोई खास असर नहीं हुआ तथा नए चर्च कुकुरमुत्तों की तरह बन रहे हैं। यह भी दावा किया जा रहा है कि पंजाब में अब 65000 पादरी ईसाई धर्म का प्रचार कर रहे हैं और पंजाब के 8000 गांवों में ईसाइयों की कमेटियां बनी हुई हैं।

फरवरी 2023 में अंग्रेजी के समाचार पत्र ‘द ट्रिब्यून’ ने यह रिपोर्ट छापी थी और दावा किया था कि गुरदासपुर के एक एस.जी.पी.सी. सदस्य ने स्वीकार किया है कि ईसाइयों ने एक धार्मिक संस्था बनाई है, जिसका नाम शिरोमणि चर्च प्रबंधक कमेटी रखा गया है और वह अपने धार्मिक गीत भी सिखों के कीर्तन करने की तरह ही गाते हैं। इन्हीं कारणों से सिख संगत में रोष तथा चिंता पाई जा रही है। इसलिए सिख पंथ का प्रतिनिधि संगठन होने के कारण एस.जी.पी.सी. को गंभीरता दिखाते हुए इस रुझान को रोकने के लिए सिंह सभा लहर जैसी कोई लहर चलानी चाहिए।-इकबाल सिंह चन्नी(भाजपा प्रवक्ता पंजाब)
 

Related Story

    Trending Topics

    Afghanistan

    134/10

    20.0

    India

    181/8

    20.0

    India win by 47 runs

    RR 6.70
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!