हरियाणा की हार का झटका विपक्ष को ज्यादा तकलीफ देगा

Edited By ,Updated: 09 Oct, 2024 05:25 AM

the shock of haryana s defeat will hurt the opposition more

लोकसभा चुनाव में आशातीत सफलता के बाद पहले चुनावी दंगल में कांग्रेस को झटका लगा है। यूं कहिए कि 2029 में देश में सत्ता परिवर्तन के अभियान की बोहनी खराब हुई है। हरियाणा के अप्रत्याशित परिणाम के बाद विपक्षी कांग्रेस ने चुनाव परिणाम की वैधता पर सवाल...

लोकसभा चुनाव में आशातीत सफलता के बाद पहले चुनावी दंगल में कांग्रेस को झटका लगा है। यूं कहिए कि 2029 में देश में सत्ता परिवर्तन के अभियान की बोहनी खराब हुई है। हरियाणा के अप्रत्याशित परिणाम के बाद विपक्षी कांग्रेस ने चुनाव परिणाम की वैधता पर सवाल खड़े किए हैं। उसका जवाब देने की बजाय चुनाव आयोग ने बस इन आरोपों को खारिज कर दिया है। इस तर्क-वितर्क और प्रमाणों की जांच किए बिना यह कहना कठिन है कि इस परिणाम पर कितना भरोसा किया जाए। लेकिन अगर इसे जनमत का प्रतिबिंब मान लें तो इस जनादेश को यूं भी देख सकते हैं कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को सबक सिखाने के बाद अब जनता ने विपक्ष को भी चेतावनी दे दी है। 

जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणाम को देखकर ‘इंडिया’ गठबंधन उत्साहित हो सकता है। बेशक उसे तमाम अनुमानों से बेहतर सीटें और स्पष्ट बहुमत मिला है। यह संतोष की बात है कि नैशनल कांफ्रैंस और कांग्रेस को इतना बहुमत है कि अगर राज्यपाल 5 मनोनयन की सीटों पर भाजपा के पसंदीदा लोगों को बैठा भी दे, तब भी उसे फर्क नहीं पड़ेगा। इस परिणाम से यह भी जाहिर होता है कि कश्मीर घाटी में कायापलट के भाजपा के दावे कितने खोखले हैं। सच यह है कि इतने हवाई दावों के बावजूद भाजपा को अनेक सीटों पर उम्मीदवार ही नहीं मिले। जहां उम्मीदवार मिले तो उन्हें वोट नहीं मिले। और जिस-जिस पार्टी पर भाजपा की बी टीम होने का दाग था, जनता ने उन्हें भी खारिज कर दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कश्मीर घाटी की जनता धारा 370 हटाए जाने से क्षुब्ध है। जम्मू-कश्मीर की जनता राज्य का दर्जा चाहती है।

केंद्र सरकार को यह संदेश देने के साथ-साथ जम्मू की जनता ने कांग्रेस की कमजोरी को भी अस्वीकार कर दिया और एक बार फिर क्षेत्र में भाजपा को अच्छी सफलता मिली है।  लेकिन केवल जम्मू के दम पर और कुछ छुपे सहयोगियों के सहारे प्रदेश में राज करने के उसके मंसूबे सफल नहीं हो सके। लेकिन जम्मू-कश्मीर में इंडिया गठबंधन की सफलता हरियाणा में हुई कांग्रेस की अप्रत्याशित हार को ढक नहीं सकती। जम्मू-कश्मीर की राजनीति अनोखी है और उसके आधार पर बाकी देश के बारे में निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। यू भी वहां के चुनाव एक विशेष परिस्थिति में हुए थे। राज्य की संवैधानिक स्थिति बदल चुकी थी। चुनावी क्षेत्रों का नया परिसीमन हुआ था और पार्टियां भी बदल गई थीं। इसलिए इसे राज्य की विशिष्ट परिस्थिति का परिणाम ही माना जाएगा। 

हरियाणा की हार का झटका विपक्ष को ज्यादा तकलीफ देगा। यह परिणाम बहुत अप्रत्याशित था। इन पंक्तियों के लेखक ने इन्हीं पन्नों पर कहा था कि कांग्रेस आराम से यह चुनाव जीतने वाली है। यही राय सभी विश्लेषकों और एग्जिट पोल की भी थी। इसीलिए यहां की चुनावी हार राजनीतिक रूप से ज्यादा चुभेगी। तकनीकी रूप से देखें तो हार बड़ी है नहीं। वोटों की दृष्टि से कांग्रेस और भाजपा में कोई अंतर नहीं है। सीटों में बड़ा फासला है, लेकिन वोट बराबर हैं। पिछले चुनाव की तुलना में कांग्रेस के वोट भी बढ़ रहे हैं और सीटें भी। लेकिन अंतत: यह सब सांत्वना देने वाली आंकड़ेबाजी मानी जाएगी। लोगों को यही याद रहेगा कि एक चुनाव जो कांग्रेस जीत सकती थी, वह हार गई। राजनीति उगते सूरज को सलाम करती है। इस परिणाम का सीधा असर महाराष्ट्र और झारखंड के वोटरों पर तो नहीं पड़ेगा लेकिन इंडिया गठबंधन के कार्यकत्र्ताओं के मनोबल पर इसका असर जरूर पड़ेगा। देश के राजनीतिक मूड को बदलने के लिए इसका इस्तेमाल होगा। 

आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा का उत्साह बढ़ेगा। जब तक महाराष्ट्र और झारखंड के नतीजे नहीं आ जाते, तब तक इसकी परछाईं  देश के राजनीतिक मूड पर रहेगी। इन परिणामों का इस्तेमाल लोकसभा चुनाव के बाद से ही बुझे-बुझे प्रधानमंत्री की छवि को सुधारने के लिए भी किया जाएगा। सच यह है कि प्रधानमंत्री का इस परिणाम में कुछ ख़ास योगदान नहीं है। सच यह है कि खुद भाजपा ने प्रधानमंत्री को भी इस चुनावी पराजय की संभावना से बचाए रखा था, कि प्रदेश में उनकी सिर्फ चार रैलियां हुई थीं और होर्डिंग्स से भी प्रधानमंत्री की बड़ी तस्वीर और उनकी गारंटी गायब थी। लेकिन भाजपा का प्रचार तंत्र अब इसे प्रधानमंत्री की लोकप्रियता के सबूत के रूप में पेश करेगा। इसी तरह से ही इस परिणाम को राहुल गांधी की बढ़ती लोकप्रियता में ब्रेक की तरह पेश किया जाएगा। यह बात भी तथ्य से परे है। सच यह है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के कारण ही कांग्रेस प्रदेश में भाजपा विरोधी मतों की धुरी बन सकी। राहुल गांधी की इस चुनाव में सीमित भूमिका थी और उससे कांग्रेस को फायदा ही हुआ है। अगर राहुल गांधी 36 बिरादरी की सरकार के अपने वादे को ज्यादा जोर से चला पाते तो कांग्रेस की स्थिति बेहतर होती। 

खराब शुरुआत का मतलब यह नहीं कि इंडिया गठबंधन आने वाले चुनावों में सफल नहीं होगा। चुनाव की वैधता पर उठे सवालों के अलावा विपक्ष को आत्ममंथन भी करना होगा। एक मायने में इस परिणाम से लोकमत का इम्तिहान महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव परिणाम तक खिसक गया है। लेकिन इस सवाल पर कोई भी राय बनाने से पहले जरूरी है कि हरियाणा चुनाव के परिणाम पर उठ रहे सवालों का संतोषजनक समाधान हो, अन्यथा यह भारतीय लोकतंत्र ले लिए अशुभ संकेत होगा।-योगेन्द्र यादव
 

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!