त्रासदी अकेलेपन की

Edited By ,Updated: 08 Oct, 2024 06:36 AM

the tragedy of loneliness

दिल्ली के वसंत कुंज इलाके के चौहान मोहल्ले में रहने वाला हीरालाल तीसरी मंजिल के 2 कमरों के छोटे से फ्लैट में रहता था। उसकी 4 बेटियां थीं। सबसे बड़ी 26 साल की और सबसे छोटी 20 साल की थी।

दिल्ली के वसंत कुंज इलाके के चौहान मोहल्ले में रहने वाला हीरालाल तीसरी मंजिल के 2 कमरों के छोटे से फ्लैट में रहता था। उसकी 4 बेटियां थीं। सबसे बड़ी 26 साल की और सबसे छोटी 20 साल की थी। सभी बेटियां ग्रैजुएट थीं। हीरालाल एक अस्पताल में बढ़ई का काम करता था, लेकिन जनवरी में अचानक उसने नौकरी छोड़ दी थी। बताया जाता है कि उसकी चारों बेटियां दिव्यांग थीं। हीरालाल की पत्नी की मृत्यु एक साल पहले हो गई थी। वह काम पर जाने से पहले बेटियों के लिए खाना बनाता था, उन्हें खिलाता था। उनके दूसरे काम करता था।  फिर लौटकर भी खाना बनाता था, उन्हें खिलाता था। 

एक दिन एक सफाई कर्मचारी को महसूस हुआ कि हीरालाल के घर से बदबू आ रही है। उसने दरवाजा खटखटाया, मगर दरवाजा किसी ने नहीं खोला। मकान मालिक ने भी आकर दरवाजा खोलने की कोशिश की मगर दरवाजा नहीं खुला। पुलिस को सूचना दी गई। पुलिस ने आकर दरवाजा तोड़ा। अंदर जाकर देखा तो एक कमरे में हीरालाल का शव पड़ा था। दूसरे कमरे में चारों बेटियों का। वहां कई गिलास भी मिले और सल्फास के पैकेट भी। पुलिस का अनुमान है कि सभी ने सल्फास खाकर आत्महत्या की है।

पड़ोसियों ने बताया कि हीरालाल बहुत चुप रहता था। पत्नी की मृत्यु के बाद वह और अधिक चुप हो गया था। वह अक्सर अपनी बेटियों को अस्पताल ले जाता दिखता था। कोई उससे बातचीत करने की कोशिश भी करता, तो वह बात न करता। यही नहीं अगर कोई उसके घर भी जाए, तो दरवाजा नहीं खोलता था। उसकी बेटियां अक्सर घर में रहती थीं और लेटी रहती थीं। पत्नी की मृत्यु के बाद हीरालाल और भी अकेला हो गया था। 

उसके भाई की पत्नी ने बताया कि वह अपने रिश्तेदारों और परिवार के अन्य लोगों से भी बात नहीं करता था। यहां तक कि फोन भी नहीं उठाता था। एक बार उसका भाई उससे मिलने आया, तो उसके लिए भी उसने दरवाजा नहीं खोला। यह भी कहा कि वह अपनी बेटियों को बहुत प्यार करता था और उनकी जरूरतों को पूरा करता था। एक बेटी जिसे देखने की समस्या थी, उसने एक दिन उससे कहा कि वह उसे छोड़कर न जाए तो उसने नौकरी छोड़ दी थी। अंतिम बार हीरालाल सी.सी.टी.वी. फुटेज में एक पैकेट लिए दिखता है, जिसमें पुलिस के अनुसार शायद मिठाई थी।  हीरालाल इस इलाके में 2018 से रह रहा था। मूल रूप से वह बिहार का रहने वाला था।

6 लोगों के परिवार का ऐसा करुण अंत, पहले मां  बीमारी से चली गई और पिता शायद इस दुख को नहीं संभाल पाया कि कल को अगर उसे कुछ हो जाता है, तो उसकी चारों दिव्यांग बेटियों का क्या होगा।इसलिए उसने सबकी जीवन लीला समाप्त करने की सोची होगी। हमारे समाज में जहां किसी साधनहीन, स्वस्थ व्यक्ति का ही जीना दूभर है, वहां निश्चित रूप से गरीब परिवार की इन चारों विकलांग बच्चियों का क्या होता। ये बच्चियां पढ़ी-लिखी थीं। शायद किसी की सही गाइडलाइन मिली होती और मदद भी, तो हो सकता है किसी न किसी प्रकार अपने पांवों पर भी खड़ी होतीं। 

परिवार की कुछ सहायता करतीं। मगर ऐसा न हो सका। एक मजबूर पिता को अपनी बेटियों और अपनी जान देना ज्यादा उचित लगा। साधनहीनता और मजबूरी अपने ही परिजनों से क्या-क्या करवाती है। 
अड़ोसी-पड़ोसियों के अनुसार हीरालाल शांत स्वभाव का था, मगर लोगों की हमेशा मदद करता था। लेकिन उसके भाई की पत्नी के अनुसार चाहकर भी वे उस परिवार की मदद नहीं कर सके क्योंकि उसने सभी से संपर्क खत्म कर दिया था। क्या पता उसे लगा हो कि कोई एक दिन मदद कर देगा, दो दिन मदद कर देगा, मगर पूरी जिंदगी का क्या होगा। कौन उसकी बेटियों की जिम्मेदारी उठाएगा। क्या पता यदि वह न रहा तो उसकी बेटियों को किन आफतों से गुजरना पड़े।

हमारे यहां अब भी दिव्यांगों को लेकर कोई खास सहानुभूति नहीं है। न ही उन्हें कहीं से कोई मदद ही मिल पाती है। जीतते रहें वे पैरालिम्पिक में ढेर सारे पदक लेकिन अवसरों के द्वार अक्सर उनके लिए नहीं खुलते। बहुत से अक्सर हों भी तो लोगों को उनके बारे में पता नहीं होता। एक आदमी जो अपनी परेशानियों में लगातार खामोश और अकेला होता गया। क्या पता किसी से परेशानियां शेयर करता तो उनका निदान मिलता। मुसीबतों से बाहर निकलने के बारे में सोचा जा सकता।

मगर ऐसा नहीं हो सका, क्योंकि अपनी जिंदगी से परेशान आदमी, अपने इर्द-गिर्द एक जाला सा बुनता है। उसे दुनिया दुश्मन नजर आती है और वह दुनिया छोडऩे के बारे में सोचने लगता है। सम्भव है कि हीरालाल के मामले में ऐसा ही हुआ हो। कितने जीवन अपनी मुसीबतों से जूझ न पाने के कारण हार मान लेते हैं और खत्म हो जाते हैं। कुछ दिन सब शोक में डूबते हैं फिर जीवन चलने लगता है। कैसे वह भरोसा कायम हो कि बेशक हमारी समस्याएं हमारी होती हैं, मगर दुख के वक्त ऐसे बहुत से लोग भी मिलते हैं जो मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं। -क्षमा शर्मा

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