Edited By ,Updated: 14 Oct, 2024 05:49 AM
सच है कि जम्मू-कश्मीर में भाजपा की हार की चर्चा हरियाणा की जीत के आगे दब गई। यह भी सही है कि कांग्रेस दिख रही जीती बाजी को आपसी कलह, गुटबाजी और सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम लठ्ठ के चलते हार गई। लेकिन हैरानी है कि इस पर कांग्रेस में मंथन, चिंतन,...
सच है कि जम्मू-कश्मीर में भाजपा की हार की चर्चा हरियाणा की जीत के आगे दब गई। यह भी सही है कि कांग्रेस दिख रही जीती बाजी को आपसी कलह, गुटबाजी और सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम लठ्ठ के चलते हार गई। लेकिन हैरानी है कि इस पर कांग्रेस में मंथन, चिंतन, विश्लेषण के पहले ही दौर में एक बार फिर वही दिखा जो अब तक होता रहा। कुछ को आगे कर बाकियों को साधने, समझाने की कवायद में ही शीर्ष नेतृत्व का दम-खम चुनाव के दौरान कााया होता रहा। पहली ही समीक्षा बैठक में क्षत्रपों को न बुलाना, क्या संदेश दिया समझ आता है। यह लाचारी है या मजबूरी, नहीं पता। इसका असर उन राज्यों पर कांग्रेस के दावों पर जरूर पड़ेगा, जहां पर चुनाव होने हैं। यदि कांग्रेस संगठन ने यही तेवर चुनाव के दौरान दिखाए होते तो नतीजे अलग आते।
दरअसल एक बात तो माननी पड़ेगी कि अब बेहद सतर्क और होशियार मतदाताओं ने भी साबित कर दिखाया कि जो दिखता है वह होता नहीं और जो होता है वह दिखता नहीं। चाहे बीता लोकसभा चुनाव हो या हरियाणा राज्य का हालिया चुनाव।अपनी बेलाग बातों और खास अंदाज के लिए चर्चित हरियाणा ने लोकतंत्र को बड़ा संदेश भी चाहे-अनचाहे दे दिया कि मतदाताओं की परिपक्वता और मन-मस्तिष्क की थाह लेना उतना भी सहज नहीं जितना चुनाव के दौरान दल, उम्मीदवार, समीक्षक मान बैठते हैं। करीब 14 सीटों पर अपनों की आजाद उम्मीदवारी तो कुछ क्षेत्रीय दलों की दावेदारी ने ही भाजपा का रास्ता साफ किया। ‘आप’ के साथ गठबंधन न करना भी इस हार की तमाम वजहों में खास है। हां, जहां-जहां लड़ाई कांग्रेस-भाजपा में आमन-सामने की थी बेहद रोचक-रोमांचक थी। 36 बिरादरी की चर्चा फिर खूब हुई जिसका दोनों को समर्थन मिला। जहां भाजपा को ब्राह्मण, राजपूत, गैर जाट ओ.बी.सी., पंजाबी-खत्री के मत एकमुश्त मिले वहीं कांग्रेस पर जाट, गुर्जर, जाटव, मुस्लिम और सिखों ने खूब भरोसा जताया।
हरियाणा में ज्यादातर क्षेत्रीय दलों का सूपड़ा साफ होना भी बताता है कि उनका भविष्य चिंताजनक है! कांग्रेस के मुद्दे यकीनन कमजोर नहीं थे इसीलिए पिछली बार से 6 सीटें अधिक आईं। लेकिन करीब 3 प्रतिशत गैर जाट मत भाजपा की ओर रुख करने से माजरा बदला और फायदा 8 सीटों पर मिला। हरियाणा के नतीजों ने लोकसभा चुनाव में भाजपा के घोषित लक्ष्य नहीं हासिल कर पाने के घाव पर मरहम का काम जरूर किया। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि महाराष्ट्र-झारखंड और उप-चुनावों में चुनौतियां घटेंगी। भले ही हरियाणा में हार से कांग्रेस कमजोर होगी और संभव है कि गठबंधन में चुनौतियां भी बढ़ेंगी। लेकिन संगठन को लेकर पार्टी और गठबंधन कितना चेतेंगे यही देखने लायक होगा। इसकी शुरूआत हरियाणा से कर शायद कांग्रेस कोई बड़ा संदेश दे? भले ही नतीजे चौंकाने वाले कहलाएं लेकिन असल में ऐसा नहीं है। भाजपा खुद भी इतना आश्वस्त नहीं थी। यह तो नतीजों के बाद मौके पर भाजपा ने चौका लगाया और माइक्रो मैनेजमैंट को श्रेय देकर देश भर के कार्यकत्र्ताओं में जोश भरते हुए मोदी मैजिक को रिफ्रैश कर दिया।
उत्साह के लिहाज से भाजपा का खुश होना जायज है लेकिन आगे महाराष्ट्र, झारखंड सहित 6 राज्यों की 28 सीटों जिनमें उत्तर प्रदेश की 10, राजस्थान की 7, पंजाब की 4, बिहार की 4, मध्य प्रदेश की 2, छत्तीसगढ़ की 1 सीट पर उप-चुनाव होने हैं। इसके बाद नए साल में दिल्ली, बिहार के विधानसभा चुनाव होंगे। ज्यादातर में क्षेत्रीय दलों की अपनी ताकत है। यही चुनौती इंडिया गठबंधन और एन.डी.ए. को भी है क्योंकि तब तक भाजपा में हरियाणा का मरहम तो कांग्रेस में हार के गम का असर कम हो जाएगा। यकीनन देश की राजनीति रोचक मोड़ पर है। ले-देकर अनूठा हरियाणवी मिजाज देश में नई राजनीतिक प्रयोगशाला बन गया है।-ऋतुपर्ण दवे