पंजाब के मतदाता किसी भी दल से संतुष्ट नहीं थे

Edited By ,Updated: 14 Jun, 2024 05:35 AM

the voters of punjab were not satisfied with any party

भारत की 18वीं लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद केंद्र में नई सरकार का गठन हो गया है।

भारत की 18वीं लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद केंद्र में नई सरकार का गठन हो गया है। नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले देश के दूसरे प्रधानमंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाया है। हालांकि इन चुनावों में किसी भी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है, लेकिन एन.डी.ए. स्पष्ट बहुमत पाने में कामयाब रहा है, जबकि 10 साल के लगातार शासन के बाद भी भाजपा सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा हासिल करने में सफल रही है। लेकिन पंजाब में भाजपा ऐसा नहीं कर पाई है और एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही जबकि कांग्रेस पंजाब की 13 में से 7 सीटें जीतकर जश्न मना रही है। आम आदमी पार्टी को 3 और अकाली दल बादल को एक सीट मिली।

2 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीतने में सफल रहे हैं। लेकिन अगर चुनाव लड़ रही पाॢटयों के वोट प्रतिशत पर नजर डालें तो यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि पंजाब के मतदाता इनमें से किसी भी पार्टी के प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं हैं। इस विश्लेषण को जानने के लिए पिछले 1 दशक के पंजाब के राजनीतिक परिदृश्य और चुनाव नतीजों पर नजर डालना जरूरी है। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान पंजाब में पहली बार 3 पार्टियों का मुकाबला शुरू हुआ। 

इससे पहले, भाजपा और अकाली दल ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) बनाया था और कांग्रेस और अन्य दलों ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए.) बनाया था और दोनों दलों के बीच सीधी प्रतिस्पर्धा थी। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी के रूप में एक तीसरी पार्टी की एंट्री हुई। हालांकि इससे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान मनप्रीत बादल के नेतृत्व वाली नवगठित पार्टी पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब ने एक बार त्रिकोणीय मुकाबले की कोशिश की थी, लेकिन वह कोई भी सीट जीतने में असफल रही और मनप्रीत बादल कांग्रेस में शामिल हो गए।

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी के चुनावी मैदान में उतरने से पंजाब में चुनावी संघर्ष को एक नई दिशा मिल गई क्योंकि इस समय पंजाब की जनता रिश्वतखोरी, अभद्रता और ङ्क्षहसा की घटनाओं के लिए तत्कालीन सरकारों को जिम्मेदार ठहरा रही थी। युवाओं की मौतें नशे की वजह से हुईं, ऐसे में आम आदमी पार्टी ने रिश्वतखोरी के खिलाफ जोरदार आंदोलन शुरू किया और देश भर में भ्रष्टाचार के लिए कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं को जिम्मेदार ठहराया।

इन लोकसभा चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी को पंजाब में आश्चर्यजनक प्रतिक्रिया मिली और उसके 13 में से 4 उम्मीदवार जीते। पहली बार चुनाव लड़ रही इस पार्टी को पंजाब में 24.5 फीसदी वोट मिले जबकि कांग्रेस को 33.2 फीसदी, अकाली दल को 26.4 फीसदी, भाजपा को 8.8 , बसपा को 1.9 और अन्य को 5.2 फीसदी वोट मिले। 3 साल के अंतराल के बाद पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी अपना वोट प्रतिशत बरकरार रखने में कामयाब रही और उसे 23.70 फीसदी वोट मिले और विधानसभा में 20 सीटें जीतीं।

यू.पी.ए. और एन.डी.ए. गठबंधन लोकसभा चुनावों में कुछ प्रतिशत वोट हासिल करने में कामयाब रहे लेकिन इससे पहले हुए 2012 के  विधानसभा चुनावों के दौरान प्राप्त वोटों के प्रतिशत को बनाए रखने में कामयाब नहीं रहे। 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने पंजाब में सभी राजनीतिक दलों के वोट प्रतिशत पर बड़ा असर डाला। 2 साल पहले 42 फीसदी वोट पाने वाली आम आदमी पार्टी इस बार 3 सीटें जीतकर सिर्फ 26 फीसदी वोट ही हासिल कर सकी, जबकि सबसे ज्यादा 7 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को भी सिर्फ 26.3 फीसदी वोट ही मिले।

एक सीट जीतने वाली अकाली दल बादल को भी सिर्फ 13.4 फीसदी वोट मिले। पंजाब से एक भी सीट न पाने वाली भाजपा 18.56 फीसदी वोट पाने में कामयाब रही है। कोई भी पार्टी न्यूनतम उत्तीर्ण प्रतिशत 33 प्रतिशत अंक (वोट) भी हासिल नहीं कर सकी। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अकाली दल बादल के वोटों की तुलना में कोई भी सीट नहीं जीतने के बावजूद भाजपा अपने वोट शेयर को 3 गुना करने के लिए अपनी पीठ थपथपा सकती है। लेकिन इन सभी आंकड़ों के चलते यह बात बेझिझक कही जा सकती है कि पंजाब के मतदाताओं ने किसी भी पार्टी के प्रदर्शन पर संतुष्टि जाहिर नहीं की।

रवनीत बिट्टू का बयान पंजाब के लिए अच्छा संकेत है : भाजपा के लुधियाना से लोकसभा चुनाव हारने वाले रवनीत सिंह बिट्टू के बयान ने पंजाब की सियासी फिजा में एक नई चर्चा छेड़ दी है और उनके बारे में राजनीतिक विशेषज्ञों द्वारा की गई भविष्यवाणियों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। बिट्टू के मंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही विपक्षी दलों के नेता और पंजाब के राजनीतिक विशेषज्ञ तरह-तरह की चिंताएं व्यक्त कर रहे थे। बिट्टू ने अपने बयान में कहा कि वह राजोआणा मुद्दे पर सिखों के साथ हैं और पंजाब की भलाई के लिए अतीत को भूल जाएंगे। इसके अलावा बिट्टू के पंजाबियों को इस आश्वासन से भी उम्मीद की किरण जगी है कि वह पंजाब के मुद्दे पर प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री से बात करेंगे। पंजाब के  मुद्दों के समाधान के लिए रचनात्मक समर्थन दिया जाना चाहिए। -इकबाल सिंह चन्नी (भाजपा प्रवक्ता पंजाब)

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