घटता जलस्तर, काश! पंजाबियों के लिए ऐसा दिन कभी न आए

Edited By ,Updated: 24 Jun, 2024 05:29 AM

the water level is decreasing i wish such a day never comes for punjabis

पंजाब की मौजूदा स्थिति ऐसी है जैसे सड़क दुर्घटना में घायल कोई व्यक्ति खून से लथपथ सड़क के किनारे पड़ा हो लेकिन उसकी मदद करने की बजाय उसके पास खड़े व्यक्ति केवल यह कहते हुए आगे गुजर जाते हैं कि, ‘‘लगता है कि बचेगा नहीं?’’

पंजाब की मौजूदा स्थिति ऐसी है जैसे सड़क दुर्घटना में घायल कोई व्यक्ति खून से लथपथ सड़क के किनारे पड़ा हो लेकिन उसकी मदद करने की बजाय उसके पास खड़े व्यक्ति केवल यह कहते हुए आगे गुजर जाते हैं कि, ‘‘लगता है कि बचेगा नहीं?’’

पंजाब के भूजल स्तर के दिन-ब-दिन कम होते जाने का जिक्र अक्सर होता रहता है। विशेषज्ञों के अनुसार राज्य के 130 में से 109 ब्लाकों में पानी खतरनाक स्तर तक नीचे चला गया है। पंजाबियों को अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए देश के 4 महानगरों में से एक चेन्नई के निवासियों की तरह भी दूसरे प्रांतों से आने वाली पानी से भरी विशेष ट्रेन का इंतजार करना पड़ सकता है। झीलों का शहर कहे जाने वाले बेंगलुरु के लोगों का भी यही हश्र देखा गया था। काश! ऐसा मनहूस दिन पंजाबियों के लिए कभी न आए। लेकिन जब तक पंजाब सरकार, विपक्षी दल, विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाले सार्वजनिक संगठन और पंजाब का नागरिक समाज एक साथ बैठकर इस गंभीर मुद्दे पर गहराई से चर्चा नहीं करता और पानी के अस्तित्व और शुद्धता को बनाए रखने के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं करता, तब तक बातें करना फिजूल है। 

इस दु:स्वप्न से बचने का कोई रास्ता नहीं है जो निकट भविष्य में सशर्त सत्य बनने जा रहा है। नि:संदेह, पानी कृषि के लिए एक बुनियादी आवश्यकता है। पानी के बिना खेती करना असंभव है। लेकिन पंजाब की धरती पर रहने वाले विभिन्न व्यवसायों से जुड़े शहरों और कस्बों में रहने वाले लाखों भूमिहीन, साधनहीन श्रमिकों के लिए भी ‘जल ही जीवन है’ यानी जल ही उनके जीवन का मूल आधार है। इसलिए इस मुद्दे का समाधान निकालते समय न केवल किसानों, बल्कि पूरे पंजाबियों के हित का ध्यान रखना होगा। 

इस हेतु धान के स्थान पर कम पानी के उपयोग वाली फसलें लगाने की ठोस योजना बनाना आवश्यक है। इसके अलावा, सरकार को किसान संगठनों द्वारा सुझाए गए फॉर्मूले के अनुसार लाभकारी मूल्य पर इन फसलों की गारंटीकृत खरीद की व्यवस्था भी करनी होगी। दुर्भाग्य से कोई भी दल इस गंभीर मुद्दे पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहा है। प्रदेश का पर्यावरण इतना प्रदूषित हो गया है कि कभी-कभी सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे हुए हैं। ओवरफ्लो के कारण अक्सर सीवरेज का गंदा पानी सड़कों पर जमा हो जाता है और दुर्गंध छोड़ता है। अक्सर यह सड़ता हुआ पानी लोगों के घरों में भी घुस जाता है। 

हर दिन हम सीवरेज पाइपों के रिसाव, पीने के पानी के पाइपों में मिश्रण के कारण प्रदूषण की कई शिकायतें सुनते हैं, जो मौजूदा सीवरेज प्रणाली के खराब प्रदर्शन का संकेत देते हैं। लेकिन कई जानलेवा बीमारियों को फैलाने वाली इस समस्या का समाधान ढूंढने की सरकारी कोशिशें कहीं नजर नहीं आ रही हैं। सरकार और नौकरशाही ने अपनी आंखें और कान बंद कर लिए हैं। सरकारों और मुनाफे के भूखे अमीर लोगों की इस असंवेदनशीलता का शिकार पंजाब के सभी लोग हो रहे हैं, लेकिन इस मामले में सबसे बुरी स्थिति मालवा के दक्षिणी जिलों में रहने वाले लोगों की है जो सतलुज नदी का पानी पीते हैं। वर्षा जल संचयन और अपशिष्ट जल को पुनर्चक्रण द्वारा शुद्ध करने के उपाय सरकार के एजैंडे में ऊपर नहीं हैं। मुख्यमंत्री और मंत्रियों की सारी मेहनत अमीर लोगों की सेवा करने और गरीब लोगों से बिना टैक्स वसूले हुए धन की छवि चमकाने के लिए प्रचार के माध्यम से बर्बाद हो जाती है। 

जरूरतमंद लोगों को सस्ती और मुफ्त बिजली, आटा-दाल योजना और अन्य जरूरी चीजें ही नहीं बल्कि जीवन की सभी सुविधाएं मिलनी चाहिएं। आखिर क्यों इन सरकारी योजनाओं का लाभार्थी महंगी कारों के मालिकों, अच्छी आर्थिक स्थिति वाले लोगों को बनाया जाता है। कई सरकारी योजनाओं का लाभ कैसे और क्यों करोड़ों लोगों को मरने के बाद भी मिलता रहता है? जो अचल संपत्तियां उच्च वर्ग के लोगों, अधिकारियों और अमीरों की मदद से हजम की जा रही हैं, उन्हें समुदाय के एक हिस्से की मदद से हजम किया जा रहा है, क्या यह उनके साथ घोर अन्याय नहीं है कि हमें कृषि के लिए मुफ्त बिजली मिलनी चाहिए? किसी सरकारी अस्पताल या सार्वजनिक सेवा से संबंधित किसी भी संस्थान के आकस्मिक निरीक्षण से यह आसानी से पता चल सकता है कि ये संस्थान आवश्यक मशीनरी और उपकरण, दवाओं और विशेषज्ञ कर्मचारियों के बिना कैसे चलाए जा रहे हैं। पंजाब के कई गांवों-शहरों में सरकारी अस्पतालों के अलावा प्रवासी भारतीयों (एन.आर.आई.) के भारी योगदान से शानदार इमारतों वाले अस्पताल भी खोले गए हैं। 

हालांकि, सरकार द्वारा आवश्यक डाक्टरों, सहायक कर्मचारियों, दवाओं और उपकरणों आदि की आपूर्ति की जिम्मेदारी से बचने के कारण, आवारा जानवरों और पक्षियों ने इन इमारतों में घौंसले बना लिए हैं। यदि पंजाब सरकार ‘मोहल्ला क्लीनिक’ का नाटक करने की बजाय पहले से स्थापित स्वास्थ्य सेवाओं के ढांचे को ही नष्ट कर दे, तो पंजाब में बहुत से लोग महंगे निजी अस्पतालों के अत्यधिक खर्चों के डर से बिना इलाज के ही मर जाएंगे। गरीबों से लेकर निम्न मध्यम वर्ग के लोगों की जान बचाई जा सकती है। शैक्षणिक ढांचे की भी यही दुर्दशा की गई है। आज गरीब और निचले तबके के लोगों के लिए शिक्षा बहुत महंगी हो गई है। यह मध्यम वर्ग के लोगों की पहुंच से बाहर हो गई है। बहुत से युवा भ्रमित एवं पथभ्रष्ट होकर लूट, डकैती एवं आपराधिक घटनाओं एवं अन्य असामाजिक गतिविधियों को अंजाम देकर राज्य की सामाजिक एवं सांस्कृतिक संरचना को खराब कर रहे हैं।-मंगत राम पासला

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