Edited By ,Updated: 11 Feb, 2025 06:38 AM
15वीं- 16वीं सदी के दौरान धरती पर एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु का जन्म हुआ जिसने अपनी विनम्र वाणी से सामाजिक कुरीतियों पर चोट की। आज उन्हें श्री गुरु रविदास जी के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब पृथ्वी पर सामाजिक अन्याय, भेदभाव, ऊंच-नीच जैसी...
15वीं- 16वीं सदी के दौरान धरती पर एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु का जन्म हुआ जिसने अपनी विनम्र वाणी से सामाजिक कुरीतियों पर चोट की। आज उन्हें श्री गुरु रविदास जी के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब पृथ्वी पर सामाजिक अन्याय, भेदभाव, ऊंच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों का बोलबाला बढ़ जाता है तब इन बातों को लेकर व्यक्ति ही मानव जाति का दुश्मन बन जाता है और काम, क्रोध और लोभ में फंस कर रह जाता है। तब इन सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए एक आध्यात्मिक आत्मा मानवीय चोला पहन कर धरती पर प्रकट होती है। श्री गुरु रविदास जी का जन्म ठीक उस समय हुआ जब मनुष्य जात-पात और अमीरी-गरीबी के भ्रम में फंस कर मानवता से कोसों दूर हो गया था या कुछ ऐसा कहा जाए कि व्यक्ति अंतरात्मा के ज्ञान से अनभिज्ञ था।
इस समय गुरु रविदास का जन्म होना आध्यात्मिक अस्तित्व का सबसे बड़ा संकेत था। ऐसे समय जन्म लेकर उन्होंने सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध बोलकर उस समय के शासकों को लोक हित के लिए कार्य करने के लिए ज्ञान दिया और सारी प्रजा को समानता का संदेश देकर कहा कि कोई भी मानव जन्म और जात के आधार पर ऊंचा-नीचा नहीं होता बल्कि इंसान अपने कर्मों से जाना जाता है। गुरु रविदास ने प्रेम से रहने का संदेश भी दिया। गुरु जी की सारी बाणी जो श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज है, मनुष्य को एक-दूसरे के साथ प्रेम के साथ रहने के लिए प्रेरित करती है और पाखंड से दूर रहने के लिए कहती है।
श्री गुरु रविदास विनम्रता के पुजारी और करुणा के सागर थे। उनका जन्म 1433 ई. में पिता संतोख दास के घर माता कलसी देवी की कोख से बनारस में हुआ। उनकी रोजमर्रा की आजीविका जूतियां बनाने के काम से चलती थी। ऐसे समय उन्होंने शांत रह कर नाम सिमरने, नेक कार्य करने और बांट कर खाने का संदेश ही नहीं दिया बल्कि पूरी सृष्टि को आध्यात्मिकता का मार्ग भी दिखाया।
गुरु जी ने उस समय एक ऐसे समाज की कल्पना की जिसमें किसी मनुष्य को किसी किस्म का दुख न हो। कोई व्यक्ति जात के आधार पर ऊंचा-नीचा न समझा जाए अर्थात न किसी को शोक, न किसी को रोग, न दर्द, न दुख, न ङ्क्षचता और न ही गम हो। श्री गुरु रविदास जी की ओर से जिस समाज की कल्पना की गई उसको बाद में समाजवादी सरकारों के नाम से जाना गया जिसके आधार पर कार्ल माक्र्स तथा अन्य समाजवादी लेखकों ने अपनी किताबें लिखीं और चीन, हंगरी, रूस तथा अन्य माक्र्सवादी देशों में इस समाजवादी सोच को सराहा गया। श्री गुरु रविदास जी ने अपने उपदेशों को लेकर राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात के कई शहरों में सत्संग किए। पुष्कर, प्रयाग, हरिद्वार, सुल्तानपुरी, पनघट आदि तीर्थ स्थलों की यात्रा की।
विद्वानों के अनुसार श्री गुरु रविदास जी ने त्रिवेणी, संगम, गोदावरी, सिंधकाबल, भरतपुर, कोठा साहिब, श्री अमृतसर साहिब और खुरालगढ़ जिला होशियारपुर इत्यादि स्थानों की यात्रा कर मानवता और आपसी सद्भावना का संदेश दिया। हम सब श्री गुरु रविदास जी का प्रकाश पर्व मनाते हुए उनके बताए मार्ग पर चल कर सामाजिक ढांचे में आई दरारों को दूर कर प्यार का संदेश फैलाएं और बेगमपुरा शहर रूपी समाज का निर्माण करें।-सर्बजीत राय(पुलिस कप्तान (डी) कपूरथला)