Edited By ,Updated: 06 Jan, 2025 05:18 AM
जब से मुसलमान शासक भारत में आए तब से गौवंश की हत्या होनी शुरू हुई। हिन्दू लाख समझाते रहे कि गौमाता सारे संसार की जननी के समान है। उसके शरीर के हर अंश में लोक कल्याण छिपा है और तो और उसका मूत्र और गोबर तक औषधि युक्त है, इसलिए उसकी हत्या नहीं उसका...
जब से मुसलमान शासक भारत में आए तब से गौवंश की हत्या होनी शुरू हुई। हिन्दू लाख समझाते रहे कि गौमाता सारे संसार की जननी के समान है। उसके शरीर के हर अंश में लोक कल्याण छिपा है और तो और उसका मूत्र और गोबर तक औषधि युक्त है, इसलिए उसकी हत्या नहीं उसका पूजन किया जाना चाहिए। पर कोई असर नहीं पड़ा। आज भी मूर्खतावश बहुत से मुसलमान गौवंश की हत्या करते हैं। अक्सर यह दोनों धर्मों के बीच विवाद का विषय रहता है। अंग्रेज जब भारत में आए तो उन्होंने हिन्दुओं का मजाक उड़ाया। वे अपने सीमित ज्ञान के कारण यह समझने में असमर्थ थे कि हिन्दू गौवंश का इतना सम्मान क्यों करते हैं? आजादी के बाद धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वालों ने भी हिन्दुओं की इस मान्यता पर ध्यान नहीं दिया।
कुछ वर्ष पहले जब यह सूचना आई कि गौमूत्र का औषधि के रूप में अमरीका में पेटेंट हो गया है, तो सारे देश में सनसनी पैदा हो गई। योग और आयुर्वेद की तरह अब पूरी दुनिया जल्दी ही गौमाता के महत्व को स्वीकारने लगेगी। हमेशा की तरह हम अपनी ही धरोहर को विदेशी पैकेज में कई गुना दामों में खरीदने पर मजबूर होंगे।
गाय के दूध का वैज्ञानिक महत्व : अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हृदय विशेषज्ञों ने इस बात को जोर देकर कहा है कि हृदय रोगियों के लिए देसी गाय का दूध विशेष रूप से उपयोगी है। देसी गाय के दूध के कण सूक्ष्म और सुपाच्य होते हैं। अत: वह मस्तिष्क की सूक्ष्मतम नाडिय़ों में पहुंच कर मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करते हैं। देसी गाय के दूध में कैरोटीन (विटामिन-ए) नाम का पीला पदार्थ रहता है, जो आंख की ज्योति बढ़ाता है। चरक सूत्र स्थान 1/18 के अनुसार, देसी गाय का दूध जीवन शक्ति प्रदान करने वाले द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ है। देसी गाय के दूध में 8 प्रतिशत प्रोटीन, 8 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 0.7 प्रतिशत मिनरल (100 आई.यू) विटामिन ए और विटामिन बी,सी, डी एवं ई होता है। निघण्टु के अनुसार देसी गाय का दूध रसायन, पथ्य, बलवर्धक, हृदय के लिए हितकारी, बुद्धिवर्धक, आयुप्रद, पुंसत्वकारक तथा त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) नाशक है।
देसी गाय के घी का वैज्ञानिक महत्व : गोघृत खाने से कोलैस्ट्रोल नहीं बढ़ता। इसके सेवन से हृदय पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। रूसी वैज्ञानिक शिरोविच के शोधानुसार देसी गाय के घी में मनुष्य शरीर में पहुंचे रेडियोधर्मी कणों का प्रभाव नष्ट करने की असीम शक्ति है। गोघृत से यज्ञ करने से आक्सीजन बनती है। देसी गाय के घी को चावल के साथ मिलाकर जलाने से (यज्ञ) ईथीलीन आक्साइड, प्रोपीलीन आक्साइड और फोरमैल्डीहाइड नाम की गैस पैदा होती है। ईथीलीन आक्साइड और फारमैल्डीहाइड जीवाणु रोधक है जिसका उपयोग आप्रेशन थिएटर को कीटाणु रहित करने में आज भी होता है।
गौमूत्र का वैज्ञानिक महत्व : गौमूत्र में ताम्र होता है जो मानव शरीर में स्वर्ण के रूप में परिवर्तित हो जाता है। स्वर्ण सर्व रोग नाशक शक्ति रखता है। स्वर्ण सभी प्रकार का विषनाशक है। गौमूत्र में ताम्र के अतिरिक्त लोहे, कैल्शियम, फास्फोरस और अन्य प्रकार के क्षार (मिनरल्स), कार्बोनिक एसिड, पोटाश और लैक्टोज नाम के तत्व मिलते हैं। गौमूत्र में 24 प्रकार के लवण होते हैं जिनके कारण गौमूत्र से निर्मित विविध प्रकार की औषधियां कई रोगों के निवारण में उपयोगी हैं। गौमूत्र कीटनाशक होने से वातावरण को शुद्ध करता है और जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। यह त्रिदोष नाशक है, किन्तु पित्त निर्माण करता है। लेकिन काली देसी गाय का मूत्र पित्त नाशक होता है। नवयुवकों के लिए गौमूत्र शीघ्रपतन, धातु का पतलापन, कमजोरी, सुस्ती, आलस्य, सिरदर्द, क्षीण स्मरण शक्ति में बहुत उपयोगी है। पंचगव्य गोघृत गोमय, गोदधि, गोदुग्ध, गौमूत्र से मिलकर बनता है। उसका सेवन मिर्गी, दिमागी कमजोरी, पागलपन, भयंकर पीलिया, बवासीर आदि में बहुत उपयोगी है। कैंसर जैसे दु:स्साध्य और उच्च रक्तचाप तथा दमा जैसे रोगों में भी गौमूत्र सेवन अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है।
गोबर का वैज्ञानिक महत्व : इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. जी.ई. बीगेड ने गोबर के अनेक प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया है कि देसी गाय के ताजे गोबर से टी.बी. तथा मलेरिया के कीटाणु मर जाते हैं। आणविक विकरण से मुक्ति पाने के लिए जापान के लोगों ने गोबर को अपनाया है। गोबर हमारी त्वचा के दाद, खाज, एक्जिमा और घाव आदि के लिए लाभदायक होता है। सिर्फ एक देसी गाय के गोबर से प्रतिवर्ष 45000 लीटर बायोगैस मिलती है। बायोगैस के उपयोग करने से 6 करोड़ 80 लाख टन लकड़ी बच सकती है जो आज जलाई जाती है। जिससे 14 करोड़ वृक्ष कटने से बचेंगे और देश के पर्यावरण का संरक्षण होगा। गोबर की खाद सर्वोत्तम खाद है। जबकि फॢटलाइजर से पैदा अनाज हमारी प्रतिरोधक क्षमता को लगातार कम करता जा रहा है।ऐसी तमाम जानकारियों का संचय कर उसके व्यापक प्रचार प्रसार में जुटे युवा वैज्ञानिक श्री सत्यनारायण दास बताते हैं कि विदेशी इतिहासकारों और माक्र्सवादी चिंतकों ने वैदिक शास्त्रों में प्रयुक्त संस्कृत का सतही अर्थ निकाल कर हुत भ्रांति फैलाई है। इन इतिहासकारों ने यह बताने की कोशिश की है कि वैदिक काल में आर्य गोमांस का भक्षण करते थे।
शहरी जनता को भी अपनी बुद्धि शुद्ध करनी चाहिए। गौवंश की सेवा हमारी परंपरा तो है ही आज के प्रदूषित वातावरण में स्वस्थ रहने के लिए हमारी आवश्यकता भी है। हम जितना गौमाता के निकट रहेंगे उतने ही स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगे।-विनीत नारायण