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लाला जी की राजनीति में कुर्सी मोह के लिए कोई जगह न थी

Edited By ,Updated: 09 Sep, 2024 05:41 AM

there was no place for lust for power in lalaji s politics

अत्यंत आदरणीय, महान हस्ती, स्वतंत्रता सेनानी एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पंजाब में बनी कांग्रेस सरकार में शिक्षा एवं ट्रांसपोर्ट विभाग के मंत्री के रूप में सुशोभित हुए लाला जगत नारायण जी का व्यक्तित्व इतना विशाल था  कि वह एक ही समय में समाज की...

अत्यंत आदरणीय, महान हस्ती, स्वतंत्रता सेनानी एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पंजाब में बनी कांग्रेस सरकार में शिक्षा एवं ट्रांसपोर्ट विभाग के मंत्री के रूप में सुशोभित हुए लाला जगत नारायण जी का व्यक्तित्व इतना विशाल था  कि वह एक ही समय में समाज की सेवा कई मोर्चों पर सक्रियता से करते रहे। उन्होंने अपने बुलंद व्यक्तित्व से पंजाब की ही नहीं अपितु देश की राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह कहना ठीक होगा कि उन्होंने राजनीति को अपनी देशसेवा की नीति से नया मोड़ और नया रूप भी प्रदान किया। ऐसी हस्तियां इतिहास के पन्नों में अपना उल्लेखनीय स्थान रखती हैं। इसी संदर्भ में एक कवि ने क्या खूब लिखा है- 
हजारों साल नर्गिंस अपनी बे-नूरी पे रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा। 

लाला जी ने देश की खातिर अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। उन्होंने पंजाब के शिक्षामंत्री रहते हुए स्कूलों की पाठ्य पुस्तकों में सुधार कर दिया। अच्छी पाठ्य पुस्तकें सस्ते दामों पर विद्यार्थियों को उपलब्ध करवाईं। इस पर उनका काफी विरोध भी हुआ, पर वह अडिग रहे। इसी प्रकार उन्होंने ट्रांसपोर्ट का राष्ट्रीयकरण करके बस का सफर सस्ता और सरलता से उपलब्ध करवाया। उन्होंने कांग्रेस से ही त्यागपत्र दे दिया और फिर सारा जीवन स्वतंत्र विचारक के रूप में व्यतीत किया। 25 जून 1975 को देश में एमरजैंसी लगा दी गई और 26 जून को जिला प्रशासन ने लाला जी को गिरफ्तार कर लिया। वह 19 महीने जेल में रहे। उन्हें पटियाला जेल में स्थानांतरित कर दिया गया। वहां अन्य नेताओं के अतिरिक्त कांग्रेस के युवा नेता चंद्रशेखर भी कैद थे। अत: जेल में इन नेताओं से तब मुलाकातें और मंत्रणा भी होती रहती थी। 

लाला जी का स्वास्थ्य जेल में रहते काफी बिगड़ता जा रहा था। तब उनकी आयु 86 वर्ष की थी। उनकी आंखों का आप्रेशन भी हुआ और अन्य शारीरिक कष्ट भी उभरे, परन्तु लाला जी ने रिहा होने से इंकार कर दिया। यहां इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि लाला जी के स्वास्थ्य के प्रति उनका परिवार और परिवार के मुखिया श्री विजय कुमार चिंतित थे। उन्होंने लाला जी को उनके पटियाला जेल में रहने के दौरान जालंधर से प्रतिदिन कार द्वारा सफर करके  घर का बना भोजन उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी संभाली। इस हेतु जेल अधिकारियों को सूचित कर दिया गया था कि स्वास्थ्य लाभ हेतु जेल के भोजन की जगह लाला जी को घर का भोजन देना ठीक रहेगा। मुझे पता है कि श्री विजय जी जब घर का ताजा भोजन नियमित रूप से पटियाला  जेल में लाला जी को पहुंचाते रहे, तो वह अपने साथ हिंद समाचार, पंजाब केसरी एवं अन्य समाचार पत्र भी ले जाते थे। तब जेल में कोई समाचार पत्र तो मिलता नहीं था क्योंकि एमरजैंसी के काले दौर का घोर-जबर जारी था परन्तु विजय कुमार जी के यत्नों से समाचार पत्र पटियाला जेल तक पहुंचाए गए।

एक दिन श्री चंद्रशेखर ने समाचार पत्र देखे तो पूछा कि जेल में समाचार पत्र कैसे आ गए। तब उनको बताया गया कि लाला जी भी इसी जेल में हैं और उनके परिवार से श्री विजय कुमार यह समाचार पत्र लाए हैं। फिर एमरजैंसी का दौर खत्म होने को आया तो प्रचंड रूप में हुए घोर जबर से जन-आक्रोश सामने आया और कई राजनीतिक नेताओं ने अपने मतभेद भुलाकर एक राष्ट्रव्यापी राजनीतिक दल का गठन किया और जनता पार्टी की स्थापना हो गई। जब आम चुनाव हुए तो पंजाब से लेकर पश्चिम बंगाल तक के सारे राज्यों में कांग्रेस का सफाया हो गया और स्वयं इंदिरा गांधी भी चुनाव हार गईं ,जिन्होंने अपनी गद्दी बचाने के लिए देश में एमरजैंसी की घोषणा की तथा  इसे बड़ी सख्ती से लागू किया और हजारों राजनीतिक विरोधियों को जेलों में डाल दिया था। 

उल्लेखनीय है कि जनता पार्टी के रूप में जब आम चुनाव होने को आए तब लालाजी ने पंजाब की तब की अकाली लीडरशिप स. प्रकाश सिंह बादल, जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहड़ा आदि को समझाया कि पंजाब से लोकसभा की 13 सीटों में से 9 पर (जो अकाली दल को दी गई थीं) अपने चोटी के नेताओं को खड़े करें और स्वयं भी चुनाव लड़ें। तभी ये सीटें जीती जा सकेंगी। लालाजी ने तब सभी सीटों पर जनता पार्टी का खूब प्रचार किया, चुनावी मुहिम चलाई और अकाली दल यह सभी सीटें जीत गया। बाकी 4 सीटें भी जनता पार्टी की ही थीं, 3 पर जनसंघ के नेता जीते और 13वीं सीट फिल्लौर पर माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी उम्मीदवार मास्टर भगत राम भी जनता पार्टी की लहर में जीते। ये सीटें जीती गईं तो जनता पार्टी के नाम पर ही, परन्तु इन्हें मूर्त रूप देने का वास्तविक श्रेय तो लाला जी को जाता है। 

यहां बता दें कि लोकसभा की सीटें अकाली दल कभी भी इससे पहले 2 से अधिक नहीं जीत पाया था। यह लाला जी की देन ही थी कि अकाली दल इतनी सीटें तब जीत पाया। आज अगर लाला जी के संघर्षपूर्ण जीवन और उनकी महान देन के साथ-साथ उनसे राजनीतिक लाभ उठाने वालों की ओर देखा जाए तो घोर निराशा ही देखने को मिलती है। जिस स. प्रताप सिंह कैरों को लाला जी ने पंजाबी एकता के आदर्श से पंजाब का मुख्यमंत्री बनवाया-ङ्क्षहदू होते हुए और भीम सैन सच्चर के अत्यंत निकट होने के बावजूद उन्होंने प्रताप सिंह कैरों का समर्थन किया, उसी प्रताप सिंह कैरों ने लाला जी पर ही नहीं उनके परिवार पर भी सत्ता में आने के बाद जुल्म ढहाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इतिहास इसका साक्षी है। फिर अकाली दल को लोकसभा की 9 सीटें दिलवाने और उन्हें सफल बनाने में जिस लाला जी ने सिर-धड़ की बाजी लगाकर चुनाव मुहिम चलाई और उनको वह सब दिलाया जो उनके बिना उन्हें उतना न मिलता, उसी अकाली दल के कई नेता लाला जी की देन भूल गए और उनके विरुद्ध प्रचार करने लगे। राजनीति के इसी रूप को लाला जी ने पहचान लिया था। उन्होंने तब स्वयं लिखा था : 

अब मैं समझने लगा हूं कि राजनीति एक छल है, कपट है, घोखा है, फरेब है। अब राजनीति से ऊब गया हूं। राजनीति के कपटपूर्ण और आडंबर भरे वातावरण से निकल कर शांति और सुख अनुभव कर रहा हूं। वास्तव में लाला जगत नारायण जी की राजनीति जनसेवा का एक माध्यम रही, न कि ‘सत्ता’ प्राप्ति की। उनकी राजनीति में कुर्सी मोह के लिए कोई जगह नहीं थी।(लेखक प्रैस कौंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व सदस्य हैं।)-ओम प्रकाश खेमकरणी
 

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