चीजें वैसी नहीं हैं जैसी दिखती हैं

Edited By ,Updated: 18 Aug, 2024 04:36 AM

things are not as they seem

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की सामने आ रही गाथा ने व्यापार और वित्तीय दुनिया का ध्यान खींचा है। शैरेलक होम्स ने कहा, ‘यदि आप अंधविश्वास, नाटक और अराजकता को हटा दें, तो आपके पास केवल ठंडे तथ्य ही रह जाएंगे।’

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की सामने आ रही गाथा ने व्यापार और वित्तीय दुनिया का ध्यान खींचा है। शैरेलक होम्स ने कहा, ‘यदि आप अंधविश्वास, नाटक और अराजकता को हटा दें, तो आपके पास केवल ठंडे तथ्य ही रह जाएंगे।’ गाथा में अंधविश्वास यह है कि सरकार हमेशा लोगों के हित में बोलती और काम करती है। नाटक यह है कि कहानी बड़े व्यवसाय को छोटे निवेशकों के खिलाफ खड़ा करती है और अंत में हमें खून-खराबे से बचना चाहिए। अराजकता इसलिए है क्योंकि बहुत सारे लोग बहुत सारी आवाजों में बोलते हैं और नतीजा सिर्फ शोर होता है। 

यदि आप अंधविश्वास, नाटक और अराजकता को हटा दें, तो आपको सच्चाई मिल जाएगी। मुख्य प्रश्न यह था कि एक व्यावसायिक समूह में निवेश का स्रोत क्या था? समूह ने किसी भी गलत काम से इंकार किया और दावा किया कि पैसा वैध था। संदेह करने वालों ने आरोप लगाया कि यह पैसा ओवर-इनवॉइसिंग और राऊंड-ट्रिपिंग के जरिए आया था और यह अवैध था। सेबी ने मामले की जांच की और रिपोर्ट दी कि उसे प्रथम दृष्टया कुछ भी गलत नहीं मिला, लेकिन संदेह करने वाले संतुष्ट नहीं थे। आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस सप्रे की अध्यक्षता में 5 सदस्यीय समिति को जांच करने और रिपोर्ट देने को कहा। 

समिति ने क्या पाया : न्यायमूर्ति सप्रे समिति ने जो पाया और जो नहीं पाया, वह महत्वपूर्ण है। समिति ने पाया कि 12 विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफ.पी.आई.) सहित 13 विदेशी निवेशक थे। प्रत्येक एफ.पी.आई .के ‘लाभार्थी स्वामी’ का खुलासा किया गया था, लेकिन अंतिम लाभकारी स्वामी मतलब कि शृंखला में अंतिम प्राकृतिक व्यक्ति का खुलासा नहीं किया गया था। क्यों? क्योंकि अंतिम प्राकृतिक व्यक्ति का खुलासा करने की आवश्यकता 2018 में समाप्त कर दी गई थी! फिर भी, सेबी ने दावा किया कि उसने अक्तूबर 2020 से 13 विदेशी संस्थाओं के स्वामित्व की जांच की थी, लेकिन उसे कोई नतीजा नहीं मिला। समिति की टिप्पणी तीखी थी। ‘ऐसी जानकारी के बिना सेबी खुद को संतुष्ट करने में असमर्थ है कि उसके द्वारा जगाए गए संदेह को शांत किया जा सकता है। 

प्रतिभूति बाजार नियामक को गलत कामों का संदेह है, लेकिन साथ ही उसे संबंधित विनियमों में विभिन्न शर्तों का अनुपालन भी मिलता है। इसलिए, रिकॉर्ड से पता चलता है कि स्थिति बहुत खराब है।’ संबंधित प्रश्न पर कि क्या निवेशक या उनके लाभकारी मालिक निवेशित कंपनियों के ‘संबंधित पक्ष’ थे, समिति ने पाया कि ‘संबंधित पक्ष’ और ‘संबंधित पक्ष लेन-देन’ शब्दों में नवंबर 2021 में काफी हद तक संशोधन किया गया था, लेकिन भावी प्रभाव के साथ, कुछ 1 अप्रैल, 2022 से और कुछ 1 अप्रैल, 2023 से! इस पहलू पर समिति की टिप्पणी भी उतनी ही तीखी थी। ‘भविष्य में स्पष्ट शर्तें बनाने का रास्ता अपनाने के बाद, संबंधित पक्ष लेन-देन को नियंत्रित करने वाले नियमों के अंतर्निहित सिद्धांतों का परीक्षण करने की व्यवहार्यता समाप्त हो गई है।’ समिति का अंतिम निष्कर्ष यह था कि ‘ऐसा प्रतीत होता है कि एफ.पी.आई. के स्वामित्व ढांचे पर सेबी की विधायी नीति एक दिशा में आगे बढ़ी है जबकि सेबी द्वारा प्रवर्तन विपरीत दिशा में आगे बढ़ रहा है।’ 

सेबी ने जांच जारी रखी : फिर भी, सेबी ने 24 विशिष्ट मामलों में अपनी जांच जारी रखी। जब समिति की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई, तो कोर्ट ने दलीलें सुनीं और 3 जनवरी, 2024 के आदेश द्वारा सेबी की कार्रवाई को बरकरार रखा। कोर्ट ने सेबी को तीन महीने में अपनी जांच पूरी करने का भी निर्देश दिया। 7 महीने बीत चुके हैं। 

हितों का टकराव : सभी ने सोचा था कि शॉर्ट-सैलर, हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों को जनवरी 2024 में चुपचाप दफना दिया जाएगा, लेकिन शॉर्ट-सैलर अगस्त 2024 में फिर से सुर्खियों में आया जब उसने सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच के खिलाफ आरोप लगाए। बुच को अप्रैल 2017 में सेबी का पूर्णकालिक सदस्य नियुक्त किया गया था। अपना कार्यकाल पूरा करने और एक अंतराल के बाद, उन्हें 1 मार्च, 2022 को अध्यक्ष नियुक्त किया गया। जब 2018 और 2021-24 में महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए, तो बुच सेबी में निर्णय लेने वाले पद पर थीं। बुच के खिलाफ हितों के टकराव के आरोप लगाए गए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उनके और उनके पति के उन संस्थाओं में आर्थिक हित थे जिनकी सेबी द्वारा जांच की गई थी और न्यायमूर्ति सप्रे समिति द्वारा समीक्षा की गई थी। बुच ने अपने निवेश को स्वीकार किया, लेकिन स्पष्टीकरण भी दिया कि वे तब किए गए थे जब वह और उनके पति निजी नागरिक थे। उन्होंने सेबी में उनकी नियुक्ति के बाद निवेश को भुनाया था और संबंधित कंपनियां उसके तुरंत बाद निष्क्रिय हो गई थीं। 

मुद्दा यह नहीं है कि बुच की ओर से कोई गलत काम हुआ था या वास्तव में हितों का टकराव था। मुद्दा यह नहीं है कि सरकार व्यवसाय समूह को बचाने के लिए  बुच को बचा रही है या नहीं। बल्कि, यह मुद्दा बहुत सीधा और सरल है कि क्या बुच ने अपने पिछले संबंधों और कार्यों और संभावित हितों के टकराव का खुलासा सेबी, सरकार, न्यायमूर्ति सप्रे समिति और सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष किया? जाहिर है ऐसा नहीं। न ही  बुच ने खुद को जांच से अलग किया। यह मानते हुए कि सभी तथ्य  बुच के पक्ष में हैं, कम से कम उन्होंने एक गंभीर और दोषपूर्ण गलती की है। उन्हें मामले का खुलासा करना चाहिए था और खुद को मामले से अलग कर लेना चाहिए था। उनकी भागीदारी ने जांच को कलंकित किया है। उन्हें  इस्तीफा दे देना चाहिए और आरोपों की नए सिरे से जांच होनी चाहिए।-पी. चिदम्बरम

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