Edited By ,Updated: 29 Jul, 2024 03:41 AM
राजधानी दिल्ली के घरों से प्रतिदिन 11000 मीट्रिक टन से अधिक कूड़ा निकलता है जिसका संतोषजनक ढंग से निपटारा न होने के कारण दिल्ली में स्थित 3 लैंडफिल साइट (शहर भर का कूड़ा-कचरा इकट्ठा करने का स्थान) कूड़े के पहाड़ों में बदलते जा रहे हैं
राजधानी दिल्ली के घरों से प्रतिदिन 11000 मीट्रिक टन से अधिक कूड़ा निकलता है जिसका संतोषजनक ढंग से निपटारा न होने के कारण दिल्ली में स्थित 3 लैंडफिल साइट (शहर भर का कूड़ा-कचरा इकट्ठा करने का स्थान) कूड़े के पहाड़ों में बदलते जा रहे हैं। चीन के बाद भारत में प्रतिवर्ष सर्वाधिक कूड़ा पैदा होता है। भारत के लिए कूड़े की समस्या इसलिए भी बढ़ती जा रही है क्योंकि किसी भी शहर में कूड़े की लैंडफिल साइट में डम्प करने के सिवाय कोई दूसरा सॉलिड सिस्टम नहीं है।
दिल्ली में सबसे बड़ा कूड़े का पहाड़ गाजीपुर लैंडफिल साइट में है जिसकी ऊंचाई 2019 में 65 मीटर तक पहुंच गई थी। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी की 2022-23 की रिपोर्ट के अनुसार राजधानी के घरों से हर दिन निकलने वाले 11,352 टन कचरे में से 7352 टन कचरा या तो रीसाइकल कर दिया जाता है या उससे बिजली बना ली जाती है लेकिन बाकी बचा 4000 टन कूड़ा लैंडफिल साइट में डम्प कर दिया जाता है। इसी संबंध में सुप्रीमकोर्ट ने 26 जुलाई को कहा कि दिल्ली में ठोस अपशिष्ट (कूड़ा) प्रबंधन अत्यंत खराब हालत में है जिसके परिणामस्वरूप राजधानी में स्वास्थ्य एमरजैंसी पैदा हो सकती है।
जस्टिस ए.एस. ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि म्यूनिसीपल कार्पोरेशन दिल्ली के हल्फिया बयान तथा टाइम लाइन को देख कर तो यही लगता है कि दिल्ली में 11,000 मीट्रिक टन ठोस अपशिष्टï के निपटारे के लिए 2027 तक पर्याप्त सुविधाएं होने की कोई संभावना नहीं है। इससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि तब तक तो पैदा होने वाला कचरा और कितना बढ़ चुका होगा। इसके साथ ही उन्होंने गुरुग्राम, फरीदाबाद और ग्रेटर नोएडा में भी कूड़े की स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा है कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन का एकमात्र उपाय इसे निपटाने संबंधी नियमों का सख्ती से पालन करना ही है और तब तक विकास कार्यों एवं भवन निर्माण की अनुमति नहीं होनी चाहिए।
इस संबंध में अदालत ने पर्यावरण सचिव को एम.सी.डी. तथा दिल्ली सरकार के अधिकारियों की बैठक बुलाकर इस समस्या का तत्काल समाधान तलाश करने का आदेश दिया है। उन्होंने ऐसा ही आदेश गुरुग्राम और फरीदाबाद नगर निगम के आयुक्तों तथा ‘ग्रेटर नोएडा डिवैल्पमैंट अथारिटी’ के अधिकारियों को दिया है। निश्चय ही सुप्रीमकोर्ट का उक्त आदेश सही है। राजधानी तथा एन.सी.आर. को स्वास्थ्य एमरजैंसी से बचाने के लिए इस प्रकार के कदम उठाना समय की मांग है।