हाथ मिलाने की परंपरा देश के राजनीतिक विकास की प्रतीक

Edited By ,Updated: 08 Jul, 2024 05:16 AM

tradition of shaking hands is a symbol of political development of country

यह एक महत्वपूर्ण अवसर था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने संसद में एक-दूसरे से हाथ मिलाया। यह पिछले सप्ताह स्पीकर ओम बिरला के चुनाव के बाद हुआ था। हाथ मिलाने की परंपरा देश के राजनीतिक विकास का प्रतीक है

यह एक महत्वपूर्ण अवसर था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने संसद में एक-दूसरे से हाथ मिलाया। यह पिछले सप्ताह स्पीकर ओम बिरला के चुनाव के बाद हुआ था। हाथ मिलाने की परंपरा देश के राजनीतिक विकास का प्रतीक है। यह परंपरा एक महत्वपूर्ण क्षण को चिह्नित करती है। यह संसद के शुरूआती दिनों से चली आ रही है। उनके वैचारिक मतभेदों के बावजूद, यह सत्ता पक्ष और सत्तारूढ़ पार्टी के बीच अपेक्षित सहयोग को प्रदर्शित करता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने विपक्ष के नेता के रूप में राहुल की औपचारिक मान्यता को दर्शाया। 

कांग्रेस पार्टी के भीतर नई गतिशीलता होगी और अपनी नई भूमिका में राहुल के लिए चुनौतियां होंगी। मोदी के शासन के 10 साल बाद, लोकसभा में विपक्ष का नेता है। राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व फिर से संभाल लिया है और मोदी की भाजपा के खिलाफ शीर्ष राजनीतिक दावेदार के रूप में खड़े हैं। यह पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है, जिसमें कायाकल्प की उच्च उम्मीदें हैं। वह एक एकीकृत विपक्ष का निर्माण कर रहे थे, जो मोदी की भाजपा के  लिए अधिक मजबूत चुनौती पेश कर सकता है। एक अनिच्छुक नेता से एक विपक्ष के नेता के रूप में राहुल का परिवर्तन उनके राजनीतिक विकास को दर्शाता है। 2 महीने की भारत जोड़ो पद यात्रा शुरू करने के बाद उनकी लोकप्रियता बढ़ गई, जिसके कारण कांग्रेस ने 2024 में 2019 में जीती गई सीटों से दोगुनी सीटें हासिल कीं। इसका उद्देश्य लोगों से जुडऩा था। इसके बाद उन्होंने एक और यात्रा की। राहुल गांधी की राजनीतिक यात्रा, जो 2004 में अमेठी से सांसद बनने के साथ शुरू हुई, उनके लचीलेपन का प्रमाण है। 

पिछले 2 दशकों में, उन्होंने कई चुनौतियों, आलोचनाओं और छूटे हुए अवसरों का सामना किया है। उन्होंने कुछ वर्षों तक पार्टी अध्यक्ष के रूप में भी काम किया। उनकी राजनीतिक यात्रा उनके नेतृत्व गुणों के बारे में संदेह और आलोचना से भरी रही। हालांकि, वे मजबूत और दृढ़ बने रहे और पी.एम. मोदी के विश्वसनीय प्रतिद्वंद्वी बन गए। महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बावजूद, राहुल महत्वपूर्ण समय पर गायब हो जाते हैं। उन्होंने यू.पी.ए. के 10 वर्षों के दौरान कैबिनेट मंत्री के रूप में काम नहीं करने का फैसला किया, इसके बजाय पार्टी पर ध्यान केंद्रित किया। उपहास के बावजूद, वे अपने पिता राजीव गांधी और अपनी मां सोनिया गांधी के नक्शेकदम पर चलते हुए आज विपक्ष के नेता बन गए। 18वीं लोकसभा के संक्षिप्त उद्घाटन सत्र के दौरान, राहुल ने एक विश्वसनीय विपक्षी नेता के रूप में काम किया। उन्होंने मणिपुर की स्थिति, अग्निपथ योजना, नीट परीक्षा और संविधान सहित कई मुद्दों पर मोदी सरकार पर आक्रामक हमला किया। 

इसके अतिरिक्त, वर्तमान लोकसभा में विपक्षी सदस्यों की अधिक महत्वपूर्ण उपस्थिति है। 543 सदस्यों वाले सदन में एन.डी.ए. के 292 सदस्यों की तुलना में विभिन्न विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ ब्लॉक में 234 सदस्य और तीन स्वतंत्र सांसदों का समर्थन है। अपर्याप्त संख्या के कारण कांग्रेस विपक्षी दल का दर्जा हासिल नहीं कर सकी। राहुल के कई हमलों ने भाजपा को भी झकझोर दिया, जब उन्होंने कहा कि भाजपा के कई लोग ङ्क्षहदू नहीं हैं, तो भाजपा ने भी पलटवार किया। उनके उद्घाटन भाषण ने दोनों पक्षों के बीच एक बड़ा टकराव शुरू कर दिया। पहले सत्र के अंत में, प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब दिया। उन्होंने राहुल गांधी-जो अब विपक्ष के नेता हैं-को ‘बालक बुद्धि’ के रूप में वर्णित किया, जिसका अर्थ है कि वह एक बच्चे की तरह दिमाग वाले वयस्क व्यक्ति हैं। 

मोदी द्वारा इस शब्द का इस्तेमाल राहुल की नेतृत्व शैली के लिए एक अपमानजनक संदर्भ था, जिसका अर्थ है कि वह अपरिपक्व हैं और उनमें एक राजनीतिक नेता के रूप में अपेक्षित बुद्धि का अभाव है। पी.एम. मोदी ने कहा कि ‘‘इस व्यक्ति ने मुझे मारा, उस व्यक्ति ने मुझे मारा, मुझे यहां मारा गया, मुझे वहां मारा गया... यह नाटक सहानुभूति हासिल करने के लिए खेला जा रहा है।’’ विपक्ष के नेता के रूप में, राहुल गांधी के पास अब नई जिम्मेदारियां हैं जो भारतीय राजनीति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती हैं। उन्हें विपक्षी दलों को एकजुट करने, महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने, विपक्ष को एकजुट रखने और अपनी कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने का काम सौंपा गया है। उनकी भूमिका के लिए उन्हें संसदीय नियमों और विनियमों में निपुणता हासिल करनी होगी और विपक्ष का प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व करने के लिए व्यावहारिक संचार कौशल विकसित करना होगा। इन जिम्मेदारियों का भार महत्वपूर्ण है और यह भारतीय राजनीति के भविष्य को आकार देगा। 

वह लोक लेखा समिति के प्रमुख भी बन सकते हैं, यह पद आमतौर पर संसद में विपक्ष को दिया जाता है। इससे उन्हें अन्य संसदीय समितियों के लिए सदस्यों का चयन करने और भारत के कुछ सबसे प्रभावशाली सिविल सेवकों को चुनने में भाग लेने का अवसर मिलेगा। विपक्ष के नेता के रूप में, राहुल ने मोदी और नए अध्यक्ष ओम बिरला को चुनौती दी। उन्होंने अध्यक्ष से कहा, ‘‘असली सवाल यह नहीं है कि सदन कितनी अच्छी तरह चल रहा है, बल्कि यह है कि क्या यह चल रहा है और लोगों की आवाज कितनी सुनी जा रही है।’’सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष के बीच चल रही लड़ाई संसदीय सत्रों से परे भी जारी रहने की उम्मीद है। यह लड़ाई संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह होगी। राहुल संसद में पहले पन्ने पर ध्यान खींचने में कामयाब रहे हैं और उन्होंने अच्छी शुरूआत की है।-कल्याणी शंकर   
 

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