भारत विभाजन की त्रासदी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Aug, 2017 10:31 PM

tragedy of partition of india

15 अगस्त, 1947 का ऐतिहासिक दिन जहां भारत 1000 वर्ष की गुलामी से स्वतंत्र हुआ था, वहीं यह दिन....

15 अगस्त, 1947 का ऐतिहासिक दिन जहां भारत 1000 वर्ष की गुलामी से स्वतंत्र हुआ था, वहीं यह दिन भारत राष्ट्र का एक और दुर्भाग्यपूर्ण दिन था। भारत का एक और विभाजन हो गया। भारत का 30 प्रतिशत भाग भारत से कटकर पाकिस्तान नाम से एक अलग देश बन गया।  ‘‘पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा’’ की घोषणा करने वाले महात्मा गांधी असहाय से देखते रहे और कांग्रेस के नेताओं ने देश का विभाजन स्वीकार किया। 

15 अगस्त, 1947 को भारत की राजधानी दिल्ली दुल्हन की तरह सजी थी। सोलह शृंगार कर नृत्य हो रहे थे। लाल किले पर तिरंगा फहराकर नेहरू जी ने प्रथम स्वाधीनता दिवस की घोषणा की। 14 अगस्त की रात 12 बजे संसद के सैंट्रल हाल में नेहरू के प्रसिद्ध Tryst with Destiny भाषण के साथ अंग्रेज साम्राज्य का यूनियन जैक उतारकर भारत का राष्ट्रध्वज तिरंगा फहरा दिया गया। परन्तु उसी 15 अगस्त, 1947 को लाहौर में और पूरे पश्चिम पंजाब व सीमा प्रांत में हिन्दू-सिख इलाके और उनके घर धू-धू कर जल रहे थे। हजारों-लाखों के काफिले छोटा-मोटा सामान लेकर छोटे बच्चों को उठाए, महिलाओं को बीच में रखकर बड़े बूढ़ों को संभालते हुए भारत की ओर आ रहे थे। स्थान-स्थान पर लूटपाट, अपहरण व हत्याएं हो रही थीं। 

रेलगाडिय़ां चल तो रही थीं परन्तु भीड़ इतनी अधिक थी कि लोग रेलगाडिय़ों की छतों पर बाल-बच्चों समेत बैठने को मजबूर थे। छतों पर बैठे कितने ही पटरियों के पास बैठे पाकिस्तानी दरिंदों की गोलियों के शिकार होते रहे। 15 अगस्त को मैं लाहौर में था और मैंने वे लोमहर्षक भीषण भयावने कांड स्वयं अपनी आंखों से देखे थे जो आज भी मेरे दिलो-दिमाग को दहला देते हैं। मेरा पूरा परिवार लाहौर छोड़कर जा चुका था। संघ शिविर में पत्र व्यवहार की अनुमति न होने के कारण मुझे यह भी पता न था कि वे कहां गए हैं।

घर में एक किराएदार के पास चाबियां थीं। मोहल्ले में 10-12 घरों में कुछ लोग थे, शेष सब जा चुके थे। 10 अगस्त की रात को लाहौर में छत से जहां भी नजर जाती थी चारों ओर धू-धू जल रही सम्पत्तियों के दृश्य हृदय विदारक थे। हिन्दू मोहल्लों से उठती लपटें आकाश को छू रही थीं। जब किसी ओर से अल्ला-हू-अकबर के नारे लगते थे तो हिन्दू-सिख मोहल्लों से हर हर महादेव और सत श्री अकाल के बराबर के नारे लगते थे परन्तु अब प्रतिक्रिया की कोई सामथ्र्य बची नहीं थी। 11 अगस्त सायंकाल एक परिवार, जिनका घर मुस्लिम मोहल्ले के निकट था, अपना सामान लेकर छिपता हुआ हमारे घर के पास से जा रहा था। उसके पीछे-पीछे एक मुस्लिम नेता आया और उन्हें वापस अपने घर जाने के लिए कहने लगा। उसने कहा कि पाकिस्तान के सर्वेसर्वा जिन्ना ने भी रेडियो में अपील की है कि हिन्दू-सिख अपने-अपने घरों में रहें और पाकिस्तान में उनकी सुरक्षा का पूरा प्रबंध किया जाएगा। मोहल्ले के लोगों में आशा की किरण बंधी और वह परिवार अपने घर लौट गया परन्तु उसी रात उसके घर को आग लगा दी गई और घर को लूट लिया गया तथा पूरे परिवार की हत्या कर दी गई। 

डी.ए.वी. कालेज लाहौर और उसके होस्टल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित पंजाब सहायता समिति का शरणार्थी कैम्प लगा हुआ था। लाहौर मैडीकल कालेज के संघ के स्वयंसेवक डाक्टर, महिला डाक्टर, नर्सें छोटा-सा अस्पताल चला रहे थे। बीसियों घायलों का वहां इलाज हो रहा था। सारे पश्चिमी पंजाब से हिन्दू, सिख अपना घर-बार, खेत-खलिहान, दुकानें, कारखाने, माल-असबाब छोड़ कर डी.ए.वी. कालेज के शरणार्थी कैम्प में पहुंचते थे और वहां से डोगरा व गोरखा सैनिकों की सुरक्षा में उन्हें भारत जाने वाली गाडिय़ों में भेजा जाता था। हरेक की अपनी-अपनी रौंगटे खड़े कर देने वाली आपबीती थी। भयंकर अन्याय व अत्याचारों की घटनाएं सुन कर आंसू रोकना कठिन होता था। परिवार के परिवार मौत के घाट उतार दिए गए। असंख्य महिलाओं का अपहरण कर लिया गया था। अनेक महिलाओं ने कुओं में छलांगें लगाकर या घर, गुरुद्वारा या मंदिर में आग लगाकर भस्म हो कर अपने सम्मान की रक्षा की थी। 

नेहरू लियाकत समझौते के अंतर्गत डी.ए.वी. कालेज और उसके होस्टल में, डा. गोकुल चन्द नारंग की कोठी स्थित पंजाब सहायता समिति के कार्यालय, रेलवे स्टेशन, अस्पताल व अन्य कुछ स्थानों  पर डोगरा व गोरखा सैनिकों की कुछ टुकडिय़ां तैनात थीं। उन्हें साथ लेकर संघ के स्वयंसेवक हिन्दू-सिख पीड़ितों को बचाने का काम कर रहे थे। 15 अगस्त था या 16 अगस्त। पं जवाहर लाल नेहरू डी.ए.वी. कालेज कैम्प में सायंकाल आए थे। हजारों की संख्या में पीड़ित दुखी शरणार्थियों ने गुस्से में नेहरू वापस जाओ ‘गो बैक-गो बैक’ के नारे लगाने शुरू कर दिए। लोगों का गुस्सा देखकर नेहरू और बलदेव सिंह वापस चले गए। इस बीच स्वयंसेवकों ने लोगों का गुस्सा शांत किया। कुछ देर बाद नेहरू व बलदेव सिंह वापस आए। नेहरू ने घटनाओं पर दुख प्रकट करते हुए आश्वासन दिया कि पाकिस्तान सरकार से बातचीत हो गई है और तुरन्त शांति हो जाएगी।

भारतीय सैनिक टुकडिय़ां लाहौर व पाकिस्तान के अन्य शहरों, कस्बों में तैनात कर दी गई हैं। अब किसी को घबराने की आवश्यकता नहीं है। उनके वापस जाते ही उस रात भी लाहौर धू-धू कर जलता रहा। यद्यपि विभाजन रेखा की आधिकारिक घोषणा 15 अगस्त को भी नहीं हुई थी परन्तु कांग्रेस मंत्रियों और नेताओं द्वारा लाहौर छोड़कर चले जाने के कारण यह स्पष्ट था कि लाहौर पाकिस्तान में जा रहा है। नेहरू जी के आश्वासन के बावजूद नरसंहार जारी रहा। अत: शेष हिन्दुओं ने कुछ दिनों में ही लाहौर छोड़ दिया।

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