एक अच्छे अध्यापक का तबादला

Edited By ,Updated: 09 Jul, 2024 05:28 AM

transfer of a good teacher

ऐसा लगता है कि मेरी पीढ़ी का समय वापस लौट आया है और मैं बचपन में आ गई हूं। जहां यदि किसी अध्यापक-अध्यापिका के जाने के बारे में सुनते थे, तो फूट-फूट कर रोते थे। जितने पैसे जेब में होते थे, जोकि अक्सर ही बहुत कम होते थे, उनसे कुछ खरीद कर उन्हें कोई...

ऐसा लगता है कि मेरी पीढ़ी का समय वापस लौट आया है और मैं बचपन में आ गई हूं। जहां यदि किसी अध्यापक-अध्यापिका के जाने के बारे में सुनते थे, तो फूट-फूट कर रोते थे। जितने पैसे जेब में होते थे, जोकि अक्सर ही बहुत कम होते थे, उनसे कुछ खरीद कर उन्हें कोई उपहार देने की कोशिश करते थे। घर में उगे फूलों की माला बनाकर लाते थे और उन्हें पहनाते थे। आजकल भी ऐसे कई वीडियो देखे हैं, जहां अध्यापकों के ट्रांसफर की बात सुनकर बच्चे उनसे लिपटकर फूट-फूट कर रोने लगे। उनसे न जाने को कहने लगे। उनसे फिर से आने का वायदा लेने लगे। उनके पीछे दौड़े। कई अध्यापक भी अपने आंसू नहीं रोक सके। पूरे के पूरे गांव के निवासी अध्यापकों को गांव के बाहर छोडऩे आए। उनके खेतों में जो कुछ उगा था। उसे भेंट में लेकर आए। जब तक अध्यापक आंखों से ओझल नहीं हो गए वहीं खड़े रहे। लेकिन जिस घटना का जिक्र यहां करने जा रही हूं वह ऐसी अनोखी है कि उसे याद करके, बार-बार मन भर आता है। 

घटना तेलंगाना के मछरेली जिले के पोंकल गांव की है। वहां  53 वर्षीय अध्यापक जे. श्रीनिवास पिछले 12 वर्षों से सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाते थे। जब वह यहां आए थे तो स्कूल में मात्र 12 बच्चे आते थे। बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किए। माता-पिता को घर-घर जाकर समझाया कि अपने बच्चों को स्कूल भेजें। बच्चे पढ़ेंगे, तब ही बढ़ेंगे। उनके प्रयासों का ही परिणाम था कि अब स्कूल में पढऩे वाले बच्चों की संख्या 250 तक पहुंच गई। इस स्कूल में कक्षा एक से लेकर पांचवीं तक पढ़ाई होती है। पिछले दिनों श्रीनिवास का तबादला दूसरे स्कूल में कर दिया गया। 

बच्चों को जब यह पता चला तो वे बहुत नाराज हुए। वे अपने प्रिय अध्यापक के तबादले की बात को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। बच्चों ने गुस्से में स्कूल के गेट पर ताला लगा दिया। वे श्रीनिवास के पास जाकर रो-रोकर न जाने की प्रार्थना करने लगे, मगर श्रीनिवास ने कहा कि उनकी मजबूरी है। तबादला हुआ है, तो जाना ही पड़ेगा। वह सरकारी नियमों से बंधे हुए हैं। लेकिन अगली बात जो हुई उससे सभी हैरान रह गए। बच्चों ने अपने माता-पिता से कहा कि उनके प्रिय अध्यापक का तबादला हो गया है। वे भी अपने अध्यापक से उसी स्कूल में पढ़ेंगे, जहां वह जा रहे हैं। श्रीनिवास का तबादला 1 जुलाई को हुआ था। अगले दो दिन में 250 में से 133 बच्चे तीन किलोमीटर दूर उस स्कूल में जा पहुंचे जहां श्रीनिवास को भेजा गया था। इन बच्चों में कक्षा एक से पांचवीं कक्षा तक के छात्र-छात्राएं थे। उस जिले के शिक्षा अधिकारी ने कहा कि बच्चे अपने अध्यापकों से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं यह तो पता है। लेकिन वे अध्यापक के लिए स्कूल ही छोड़ देंगे और स्कूल छोड़कर उस स्कूल में चले जाएंगे जहां अध्यापक जा रहे हैं, यह पहली बार सुना है। ऐसी तो कल्पना करना तक मुश्किल है। 

श्रीनिवास से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने विनम्रता से कहा, ‘‘मैंने तो बस वही किया है, जो मेरा कत्र्तव्य था। कोशिश की कि बच्चों को खूब पढ़ा सकूं। उनकी समस्याओं का हल कर सकूं। उन्हें प्यार दे सकूं। बच्चों और माता-पिता ने मेरे ऊपर भरोसा जताया। मुझे स्नेह दिया। इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। उन्होंने यह भी कहा कि अब सरकारी स्कूलों में बहुत सी सुविधाएं हैं। मैं माता-पिता से अनुरोध करूंगा कि वे इनका लाभ उठाएं।’’ पोंकल गांव के लोग श्रीनिवास की तारीफ  करते नहीं अघाते। वे कहते हैं कि अगर ऐसे अध्यापक हर बच्चे को मिल जाएं तो बच्चों का भविष्य सुधर जाए। सच भी है अच्छे अध्यापक जीवन भर याद रहते हैं। इस लेखिका ने ऐसी अनेक घटनाएं देखी हैं कि कोई अध्यापक सड़क पर पैदल जा रहा है। अचानक उसके पास आकर सरकारी गाड़ी रुकती है। उसमें से कलैक्टर उतरता है। अपना परिचय देता है कि सर आपने मुझे पहचाना नहीं। आपने फलां सन में मुझे पढ़ाया था। जीवन  में जो कुछ बना वह आपकी ही वजह से। 

सरकारी स्कूलों के बारे में अक्सर बेहद नकारात्मक खबरें आती हैं कि वहां अध्यापक पढ़ाते नहीं। वे कक्षा में ही नहीं आते या कि  कुछ पैसे देकर किसी और को पढ़ाने भेज देते हैं। सरकारी स्कूलों की पढ़ाई का स्तर बेहद खराब है। ऐसी नकारात्मक खबरों, जिनमें से कुछ सच भी होंगी, का ही असर है कि लोगों के मन में सरकारी स्कूलों के प्रति यह राय बन गई है कि वहां बच्चों को पढ़ाने का मतलब उनका भविष्य खराब करना है। इसलिए वे अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजते हैं और मोटी फीस चुकाते हैं। लेकिन सरकारी स्कूलों के बारे में यह अवधारणा श्रीनिवास जैसे अध्यापकों के कारण टूट जाती है। और श्रीनिवास ही क्यों ऐसे बहुत से अध्यापक और अध्यापिकाएं होंगी,  जो सरकारी स्कूलों में रहते हुए भी अपने छात्रों के भविष्य का ख्याल  करते होंगे। अच्छा पढ़ाते होंगे। बच्चों और उनके माता-पिता के बीच बहुत लोकप्रिय होंगे। दूसरे अध्यापकों को भी ऐसे अध्यापकों से सीखने की जरूरत है। करके तो देखिए। बच्चों के  रूप में आपको जीवन भर के प्रशंसक मिलेंगे।-क्षमा शर्मा 
 

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