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यू.एस. एड के पर कतरने की कोशिश में ट्रम्प

Edited By ,Updated: 18 Feb, 2025 06:17 AM

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जब से अमरीका में डोनाल्ड ट्रम्प दोबारा राष्ट्रपति बने हैं, उन्होंने यू.एस. एड एजैंसी के पर कतरने का मन बना लिया है। उनका कहना है कि किसी भी एजैंसी को ‘अमरीका फस्र्ट’ के नारे के साथ ही काम करना होगा। यू.एस. एड तमाम देशों को आर्थिक मदद देती है।

जब से अमरीका में डोनाल्ड ट्रम्प दोबारा राष्ट्रपति बने हैं, उन्होंने यू.एस. एड एजैंसी के पर कतरने का मन बना लिया है। उनका कहना है कि किसी भी एजैंसी को ‘अमरीका फस्र्ट’ के नारे के साथ ही काम करना होगा। यू.एस. एड तमाम देशों को आर्थिक मदद देती है। हो सकता है कि ट्रम्प किसी और एजैंसी को लाना चाहते हों। ट्रम्प के साथ काम करने वाले बड़े उद्योगपति एलन मस्क पहले ही इसे अपराधी एजैंसी कह चुके हैं। 

यू.एस. एड की कार्यप्रणाली पर पहले ही बहुत से सवाल उठते रहे हैं, जो अब और तेज हो गए हैं। बताया जाता है कि दुनिया भर में यह संस्था चुनी हुई सरकारों को गिराने का काम करती है। इसके लिए तमाम संगठनों ए.एन.जी.ओज को मदद दी जाती है। कहने को एन.जी.ओज  को गैर-सरकारी संस्था कहा जाता है, लेकिन इनमें से बहुतों का काम विदेशी पैसे के बल पर अपने देश में तरह-तरह के विवाद पैदा करके सरकारों के लिए लगातार सिर दर्द पैदा करना होता है। इनके अनुसार ये असहमति की आवाजों को मदद देते हैं, लेकिन हम यह भी जानते हैं कि हर असहमति किसी न किसी की सहमति के लिए होती है। वैसे भी विदेशी पैसा कोई भी मुफ्त नहीं पाता है। इसके लिए उसे अपने आकाओं को खुश करना होता है। बताया जाता है कि यू.एस. एड भाषाओं और संस्कृति को बचाने का काम करती है। इसे सी.आई.ए. समर्थित संस्था भी कहा जाता है। जो भी हो, जब से इस संस्था के बारे में पढ़ रही हूं, तब से अमरीकी लेखक जॉन पार्किंस की पुस्तक ‘कनफैशन आफ इकोनामिक हिटमैन’ याद आ रही है। 

इस पुस्तक में विस्तार से बताया गया है कि कैसे अमरीकी अपने आर्थिक हितों को साधने के लिए विदेशों की तमाम संस्थाओं को मदद करते हैं। इसमें डैमोक्रेट और रिपब्लिकन का कोई भेद नहीं होता। अमरीकी आर्थिक हित यानी कि बहुराष्ट्रीय निगमों को फायदा पहुंचाने और उनके मुनाफे को रात-दिन बढ़ाना ही इनका उद्देश्य होता है। इसके लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। आपको याद होगा कि जब अमरीका में 9/11 हुआ था और वल्र्ड ट्रेड सैंटर को तोड़ दिया गया था तब ओसामा बिन लादेन का नाम सामने आया था। उन दिनों जूनियर बुश राष्ट्रपति थे। बिन लादेन के बहुत से रिश्तेदार अमरीका में रहते थे और बड़े व्यापारी थे। उनकी कंपनियों में बुश सरकार के बहुत से वरिष्ठ मंत्रियों का पैसा लगा था। इसी पुस्तक में बताया गया है कि जॉर्ज बुश ने रातों-रात इन रिश्तेदारों को अमरीकी विशेष विमान से इनके देश वापस भेज दिया था। 

जॉन पार्किंस खुद इकोनॉमिक हिटमैन रहे हैं। इकोनॉमिक हिटमैन कौन होते हैं। वे ही जो अमरीकी हित विदेशों में रहकर साधते हैं। इनमें सबसे बड़े हित आर्थिक ही होते हैं। इकोनॉमिक हिटमैन बनाने की विशेष ट्रेङ्क्षनग वे लोग देते हैं, जिनका नाम, पता, पहचान कुछ भी पता नहीं होता। न ही इनसे कोई निजी रिश्ता कभी कायम किया जाता है। इन्हें जो कुछ भी सिखाया जाता है, उसे किसी को भी बताने की मनाही होती है। ये हिटमैन दुनिया भर में फैले होते हैं। पार्किंस बताते हैं कि अमरीकी एजैंसीज और हिटमैन मिल-जुलकर काम करते हैं। पहले ये देशों की भाषा और संस्कृति को बचाने के नाम पर आते हैं। जैसा कि यू.एस. एड भी दावा करती है। फिर चुनी हुई सरकारों के विरुद्ध तमाम तरह के आंदोलन चलवाते हैं। लोगों में वैमनस्य और नफरत के बीज बोते हैं।  अपने देश में भी अक्सर ऐसा होता रहता है। यदि इस तरह के आंदोलनों से भी मान लीजिए किसी देश में कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा और उस देश की सरकार अमरीकी आर्थिक हितों की अनदेखी करती रही, तो जैकाल्स की मदद ली जाती है। इनका काम होता है, बड़े-बड़े नेताओं की हत्या। कई बार ये नेता हवाई दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं। जॉन ने अपनी पुस्तक में ऐसे कई उदाहरण दिए हैं। 

लेकिन यदि नेताओं के मरने से भी किसी देश की सरकार नहीं हिलती है तो आखिरी ऑप्शन होता है सेना की चढ़ाई। यह भी लोगों की मदद के वेश में किया जाता है। दिलचस्प यह है कि अमरीकी सेना के हस्तक्षेप,  अक्सर तानाशाही की मदद करते हैं, नाम लोकतंत्र का होता है। चुनी हुई सरकारों और नेताओं के बदले फौजी तानाशाहों या अपने कठपुतली नेताओं को सत्ता सौंप दी जाती है जिससे कि निर्बाध रूप से अमरीकी हितों को साधा जा सके। अतीत में हमने न जाने कितने देशों पर अमरीका की चढ़ाई देखी है। अमरीका के करतबों को बताने के लिए यह एक अच्छी किताब है। तब तो और भी जब जॉन पार्किंस खुद ऐसे कारनामों के हिस्से रहे हैं। उनका कहना है कि इस किताब को लिखने की प्रेरणा उन्हें अपनी बेटी से मिली। क्योंकि इसे लिखने  से उन्हें जान का खतरा था। तब उनकी बेटी ने हौसला बढ़ाते हुए कहा था कि डैडी कोई बात नहीं। अगर आप नहीं भी रहे तो भी हम आपकी बातों को लोगों तक पहुंचाएंगे और हम जानते हैं कि हम कभी असफल नहीं होंगे।-क्षमा शर्मा  
 

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