ट्रम्प डालर के जरिए दुनिया के राजनीतिक ढांचे को बदलना चाहते हैं

Edited By ,Updated: 10 Apr, 2025 05:15 AM

trump wants to change the world s political structure through the dollar

सोचिए आपने अपने नए मकान के लिए 50 लाख रुपए का लोन लिया। ब्याज की दर 9 प्रतिशत, अवधि 25 साल। आपको हर महीने करीब 42,000 रुपए की किस्त देनी पड़ेगी। अब अगर यह ब्याज की दर घट कर 6 प्रतिशत हो जाए तो आपकी किस्त 32,000 रुपए के आसपास हर महीने होगी। 25 साल के...

सोचिए आपने अपने नए मकान के लिए 50 लाख रुपए का लोन लिया। ब्याज की दर 9 प्रतिशत, अवधि 25 साल। आपको हर महीने करीब 42,000 रुपए की किस्त देनी पड़ेगी। अब अगर यह ब्याज की दर घट कर 6 प्रतिशत हो जाए तो आपकी किस्त 32,000 रुपए के आसपास हर महीने होगी। 25 साल के बाद आप पहले ब्याज की दर के हिसाब से 1.25 करोड़ रुपए दे चुके होंगे।

अब जरा अमरीका के कर्जे का हिसाब लें, इस सितंबर तक अपने छोटी अवधि के बांड पर उन्हें दुनिया को 8.66 ट्रिलियन डालर का भुगतान करना है। इसके लिए उन्हें औसतन 4.16 प्रतिशत की ब्याज की दर से भुगतान करना है। यानी सितंबर तक सिर्फ ब्याज-ब्याज के 360 बिलियन डालर्स जेब से सरक लिए। यह कितना पैसा है इसका अंदाजा इस बात से लगा लें कि हमारी वित्त मंत्री निर्मला ताई का पूरा का पूरा इस साल का बजट सिर्फ 560 बिलियन डालर्स का है। तो जहां अर्थशास्त्री अपना दिमाग खपा रहे हैं कि आयात और निर्यात में कितना फायदा, कितना घाटा होगा, बाजार मंदा कितना होगा, सामान कितना महंगा होगा, डोनाल्ड ट्रम्प तो बस अपने सिर पर इस भुगतान की तलवार को मंडराते देख रहे हैं। हमारे-आपके मकान पर लिए कर्ज की तरह, उनका पूरा प्रयास सिर्फ ब्याज की दर को घटाने पर है। 

तेल देखो, तेल की धार देखो: तो 2 अप्रैल को ट्रम्प ने दुनिया के 180 मुल्कों पर टैरिफ  ठोका। मार्कीट में भूचाल आ गया। स्टॉक मार्कीट में तबाही। विदेशी निवेशकों ने हर जगह से अपने पैसे निकालने शुरू कर दिए। भारत में ही एक दिन में 9000 करोड़ रुपए निकल लिए। अब पैसे निकाल तो लिए पर लगाए कहां, फिर वही डालर। हाथी कितना भी पतला हो जाए, हाथी तो हाथी है। एक दिन के अंदर अमरीका के ब्याज की दर 4 अप्रैल को 4.16 प्रतिशत से घट कर 3.97 प्रतिशत रह गई। अब अगर यह ब्याज की दर 10 साल के बांड पर घट कर 2.5 प्रतिशत रह जाए तो अमरीका को हर साल 360 बिलियन डालर्स की बजाय सिर्फ 200 बिलियन डॉलर्स का ही ब्याज चुकाना पड़ेगा। यानी हर साल जेब में बचेंगे 160 बिलियन डालर्स और जो बांड दबा के बिक रहे हैं, उसका पैसा अलग।  तो इसका असर पाठकों को बताने की जरूरत नहीं है। ज्यादा कमाई, कर्ज सस्ता, बहीखाते में घाटा कम। जहां अर्थशास्त्री मार्कीट में मांग और आपूर्ति के चक्रव्यू में उलझे रहते हैं, ट्रम्प डालर को एक विध्वंसक शक्ति की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।

ट्रम्प के समीकरण में उनके टैरिफ का जवाब दुनिया देगी भी तो कैसे? हथियार के अलावा अमरीका दुनिया को बेचता ही क्या खास है जो दुनिया टैरिफ  के बदले टैरिफ  ठोकेगी। यूरोपियन यूनियन को साल का 240 बिलियन डालर्स का अमरीका से व्यापार में फायदा पहुंचता है। क्या इसको गंवाने का साहस उनमें है। वियतनाम ने पिछले साल 123 बिलियन डालर्स अमरीका से कमाए थे। जानते हैं कि 46 प्रतिशत टैरिफ  पर उनका क्या जवाब है? कहते हैं कि माई-बाप  हम अपना टैरिफ  शून्य कर लेंगे।चीन ने कहा है कि हम ईंट का जवाब पत्थर से देंगे। 34 प्रतिशत टैरिफ का जवाब 34 प्रतिशत टैरिफ। ट्रम्प के पहले शासनकाल में चीन पर 25 प्रतिशत का टैरिफ  लगा था। चीन ने तब भी ईंट का जवाब पत्थर से ही दिया था। पर अमरीकी अर्थव्यवस्था पर एक प्वाइंट से भी कम का नुकसान हुआ था। अमरीका को खरोंच तक नहीं आई थी। 

पूरी दुनिया का पूरा व्यापार कुल मिला कर 33 ट्रिलियन डालर्स है। इसका करीब 17 प्रतिशत (5.4 ट्रिलियन डालर्स) अमरीका से होता है। दुनिया का 50 प्रतिशत से भी ज्यादा धंधा डालर्स में होता है। पूरी दुनिया का कर्ज 315 ट्रिलियन डालर्स का है। इस कर्ज का 64 प्रतिशत आदान-प्रदान डालर में होता है। तेल डालर में बिकता है। पूरी यूरोप की सुरक्षा का बोझ अमरीका ढोता है। अमरीका के पैसे और हथियार के बगैर नाटो की कल्पना भी नहीं की जा सकती। क्या अमरीका की सहायता के बगैर यूक्रेन युद्ध लडऩे की सोच भी सकता था? 80 से भी ज्यादा देशों में अमरीका के 800 मिलिट्री बेस हैं जिनसे इन देशों को सुरक्षा का कवच मिलता है। फिर भी अगर उलझोगे तो अमरीका के सैंक्शंस से कैसे निपटोगे। 
टैरिफ  बिसात पर सिर्फ पहली चाल : पर ट्रम्प के लिए टैरिफ  सिर्फ पहली चाल है। 50 देशों ने तो वैसे ही घुटने टेक दिए हैं। यह संख्या बढ़ेगी ही। हो सकता है कि कुछ देश डालर छोडऩे की हिम्मत जुटा लें। हो सकता है कई देश चीन की युआन करंसी में ही धंधा करें। 

पर जिस तरह साइकिल के पहिए में एक धुरी होती है और कई तारें , अगर एक-दो तारें टूट भी जाएं, पहिए का चलना बंद नहीं हो जाता। फिर जो तारें टूट जाएंगी, उनसे टैरिफ से तो पैसा आएगा ही। ट्रम्प इन अलग-अलग तारों से अलग-अलग निपटेंगे। कुछ से कहेंगे कि हमारे बांडों की मैच्योरिटी बढ़ा कर 50 साल कर दो, ब्याज की दर कम होगी। कुछ से कहेंगे कि अपने सैंट्रल बैंक में जो डालर का अम्बार लगा कर बैठे हो  उसे हल्का करो। पाबंदी होगी कि तुम धंधा डालर में ही करोगे। ज्ञानी कहते हैं कि राजनीति-वाजनीति में उलझना समय की बर्बादी है। पैसे की चाल देखो खेल खुद समझ में आ जाएगा। ट्रम्प भी डालर के पांसे से दुनिया के राजनीतिक ढांचे को अपनी सोच में ढालना चाह रहे हैं। उनकी सोच रूस से हाथ मिलाने की है। यूरोप को वह एक ऐसे शव की तरह मानते हैं जो उन्हें कंधे पर ढोना पड़ रहा है।

ट्रम्प लगता है मान चुके हैं कि दुनिया दो-तीन खेमों में बंट सकती है। कुछ चीन के दरबार में जा बैठेंगे। यूरोप अपना एक अलग खेमा शायद बना ले। पर जब तक डालर में धंधा है, कर्ज है, सारी सप्लाई चेन है दुनिया के हर समुद्र के हर कोने में अमरीकी मिलिट्री बेस हैं तब तक हाथी सवा सेर का ही रहेगा।-आशीष शुक्ला                                             

Let's Play Games

Game 1
Game 2
Game 3
Game 4
Game 5
Game 6
Game 7
Game 8

Trending Topics

IPL
Royal Challengers Bangalore

Rajasthan Royals

Teams will be announced at the toss

img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!