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असंतुलित आर्थिक नीतियां बढ़ा रही हैं अमीरी-गरीबी की खाई

Edited By ,Updated: 03 Mar, 2025 05:38 AM

unbalanced economic policies are increasing the gap between rich and poor

देश के लगभग 100 करोड़ भारतीयों के पास इतनी आय नहीं है कि वे विवेकाधीन वस्तुओं पर कुछ भी खर्च कर सकें अर्थात वे किसी भी प्रकार से किसी भी वस्तु पर अतिरिक्त खर्च करने में असमर्थ हैं।

देश के लगभग 100 करोड़ भारतीयों के पास इतनी आय नहीं है कि वे विवेकाधीन वस्तुओं पर कुछ भी खर्च कर सकें अर्थात वे किसी भी प्रकार से किसी भी वस्तु पर अतिरिक्त खर्च करने में असमर्थ हैं। लोग जरूरत के अलावा सामान या सुविधाएं नहीं खरीद सकते। वहीं, देश के केवल 10 फीसदी लोग, अर्थात 13-14 करोड़ लोग देश की अर्थव्यवस्था को चला रहे हैं क्योंकि ये लोग ही सबसे ज्यादा खर्च करते हैं और देश की तरक्की में बड़ा रोल निभाते हैं। केंद्र सरकार एक तरफ देश में तरक्की का नया मॉडल पेश करते हुए विकसित भारत की तरफ बढ़ते कदमों का आंकड़ा पेश करती है, वहीं गरीबी और अमीरी की बढ़ती खाई ने इस मॉडल पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। 

ब्लूम वैंचर्स की इंडस वैली की वाॢषक रिपोर्ट 2025 भारत की आर्थिक विषमता की यह तस्वीर पेश करती है। इस रिपोर्ट का सरकार द्वारा किसी तरह प्रतिवाद नहीं किए जाने से साफ जाहिर है कि देश की आॢथक सेहत एक तरफा जा रही है। अमीरी और गरीबी की खाई का चौड़ा होना जारी है। रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत का उपभोक्ता बाजार बड़े स्तर पर विस्तार नहीं कर रहा है, बल्कि एक ही जगह गहरा होता जा रहा है। इसका मतलब यह है कि भले ही अमीर लोगों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हो रही है, लेकिन जो लोग पहले से ही अमीर हैं, वे और भी अमीर हो रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार शीर्ष 10 प्रतिशत भारतीयों (10 सबसे अमीर भारतीय) के पास अब कुल नैशनल आय का 57.7 प्रतिशत हिस्सा है, जो पहले 1990 में 34 प्रतिशत था, जबकि निचले स्तर पर यह हिस्सा पहले के 22.2 प्रतिशत से घटकर 15 प्रतिशत रह गया है। इसके अलावा, 30 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्होंने हाल फिलहाल खर्च करना शुरू किया है। ये लोग भी अपने खर्च को लेकर बहुत सावधान हैं। खर्च करने वाला वर्ग बढ़ नहीं रहा!

आंकड़ों के मुताबिक 5 साल पहले रियल एस्टेट की कुल बिक्री में अफोर्डेबल हाऊसिंग की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत थी, जो अब घटकर महज 18 प्रतिशत रह गई है। इस महीने पेश हुए बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मध्यम वर्ग की जेब ढीली करने के लिए टैक्स में छूट दी। 12 लाख रुपए तक कमाई करने वालों को अब इंकम टैक्स नहीं देना होगा जिससे 92 प्रतिशत वेतनभोगी लोगों को राहत मिलेगी। इसके बावजूद भारत की खपत चीन से 13 साल पीछे है। वर्ष 2023 में भारत में प्रति व्यक्ति खर्च 1,493 डालर था, जबकि चीन में वर्ष 2010 में ही ये 1,597 डालर था। माइक्रोफाइनैंस सैक्टर में भी हालात ठीक नहीं हैं। माइक्रोफाइनैंस सैक्टर में बढ़ता कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है।

दिसंबर 2024 तक इस सैक्टर के नॉन-परफॉॄमग एसैट्स (एन.पी.ए.) 50,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। ये अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है और कुल लोन का 13 प्रतिशत है।अमीर-गरीब के बीच की खाई भारत में कभी छिपी नहीं रही है। यह खाई और चौड़ी हो गई है। माइक्रोफाइनैंस का मतलब है गरीब परिवारों को बिना गारंटी के लोन देना। इन परिवारों की सालाना कमाई 3 लाख रुपए से कम होती है। ज्यादातर महिलाएं इन लोन का इस्तेमाल करती हैं। लेकिन ज्यादा लोन देने की होड़ में हालात बिगड़ गए हैं। बंधन  बैंक इंडसइंड, आई.डी.एफ.सी. फस्र्ट जैसे बैंकों के एन.पी.ए. बढ़ गए हैं। बंधन बैंक के 56,120 करोड़ रुपए के लोन में से 7.3 प्रतिशत एन.पी.ए. हो चुके हैं। एन.पी.ए. वह कर्ज है जिसकी कोई भी किस्त 180 दिनों तक चुकाने में लेनदार असफल हो जाता है। इसके बाद बैंकों को इस तरह के लोन को एन.पी.ए में डालना होता है। हालांकि इस लोन की वसूली की कोशिश जारी रहती है और कई बार ये पूरा या आंशिक तौर पर वापस मिल जाता है। आंकड़ों के मुताबिक 91 से 180 दिन का बकाया लोन कुल आऊटस्टैंडिंग का 3.3 फीसदी है, जबकि 180 दिन से ज्यादा बकाया लोन 9.7 प्रतिशत है।

देश के शीर्ष एक फीसदी लोगों ने 2022-23 में औसतन 53 लाख रुपए कमाए, जो औसत भारतीय की आय से 23 गुना अधिक है जिसने 2.3 लाख रुपए की आय सृजित की। देश के निचले पायदान के 50 फीसदी और बीच के 40 फीसदी लोगों की औसत आय क्रमश 71, 000 रु. (राष्ट्रीय औसत का 0.3 फीसद) और 1,65,000 रु. (राष्ट्रीय औसत का 0.7 फीसद) रही  सबसे अमीर 9,223 लोगों (9.2 करोड़ वयस्क भारतीयों में से) ने औसतन 48 करोड़ रुपए कमाए (औसत भारतीय आय से 2,069 गुना)। भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद निजी उद्यम में वृद्धि और पूंजी बाजार की वृद्धि ने शीर्ष के कुछ ही लोगों के हाथों में संपत्ति का सिमटना बढ़ाया है। 

उदारीकरण के बाद से सेवा की अगुवाई में हुई आॢथक वृद्धि के भी असमान असर हुए। इस पूरे हालात से साफ है कि भारत की खपत ग्रोथ संतुलित नहीं है। एक तरफ जहां अमीर और अमीर हो रहे हैं, वहीं गरीब और गरीब जिसके लिए आने वाले समय में सरकार को बड़े कदम उठाने होंगे जिससे आॢथक असमानता कम हो सके। -योगेन्द्र योगी
 

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