प्रधानमंत्री की गणेश पूजा में उपस्थिति के संदर्भ को समझें

Edited By ,Updated: 15 Sep, 2024 05:49 AM

understand the context of the prime minister s presence at ganesh puja

भारत के प्रधानमंत्री द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश के निवास पर गणेश पूजा में भाग लेना एक ऐसा कार्य है जिसे आलोचना का पात्र बनने वाली घटना की बजाय सम्मान और एकता के प्रतीक के रूप में देखा जाना चाहिए। भारतीय शासन की जटिल संरचना में, जहां न्यायपालिका...

भारत के प्रधानमंत्री द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश के निवास पर गणेश पूजा में भाग लेना एक ऐसा कार्य है जिसे आलोचना का पात्र बनने वाली घटना की बजाय सम्मान और एकता के प्रतीक के रूप में देखा जाना चाहिए। भारतीय शासन की जटिल संरचना में, जहां न्यायपालिका और कार्यपालिका अलग-अलग लेकिन परस्पर निर्भर स्तंभों के रूप में कार्य करती हैं, ऐसे संकेत राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक सद्भाव को दर्शाते हैं। 

न्यायपालिका और कार्यपालिका भारतीय लोकतंत्र के 2 महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। हालांकि वे अपने कार्यों में अलग-अलग हैं, लेकिन उनका उद्देश्य एक समान है संविधान का संरक्षण और लोगों का कल्याण। कार्यपालिका के प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री और न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में भारत के मुख्य न्यायाधीश, सरकार की 2 महत्वपूर्ण शाखाओं के नेतृत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी व्यक्तिगत या धार्मिक घटनाओं में भागीदारी देश के शासन में उनकी संबंधित भूमिकाओं के प्रति आपसी सम्मान और समझ को दर्शाती है। 

भारत के मुख्य न्यायाधीश के आवास पर गणेश पूजा में प्रधानमंत्री की भागीदारी के आलोचकों को याद रखना चाहिए कि गणपति पूजा करना कोई अपराध नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का एक गहरा हिस्सा है। गणेश पूजा का महत्व, खासकर जब महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक द्वारा इसके पुनरुद्धार के लैंस के माध्यम से देखा जाता है, तो यह इसके गहरे उद्देश्यों - एकता, राष्ट्रवाद और सामूहिक शक्ति की याद दिलाता है। भारतीय परंपरा में, ‘कर्ता’ शब्द का अर्थ परिवार के मुखिया या प्रबंधक से है, जो पूरे परिवार की भलाई के लिए जिम्मेदार होता है। इसी तरह, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश अपने-अपने क्षेत्रों कार्यपालिका और न्यायपालिका के ‘कर्ता’ के रूप में कार्य करते हैं। जबकि उनकी भूमिकाएं अलग-अलग हैं, उनके उद्देश्य अक्सर एक जैसे होते हैं, खासकर राष्ट्रीय हित, कानून और न्याय के मामलों में। धार्मिक आयोजन में एक साथ आकर, वे यह प्रदर्शित करते हैं कि संस्थागत अलगाव के बावजूद, वे एक ही बड़े और महान लक्ष्य की ओर काम करते हैं लोगों का कल्याण और भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करना। 

यह सर्वविदित है कि कांग्रेस के सत्ता में रहने के दौरान कई ऐसे मामले हुए, जब उस पर न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करने या उसमें हस्तक्षेप करने का प्रयास करने का आरोप लगा। ऐसा ही एक उदाहरण जो हर जागरूक नागरिक के दिमाग में आता है, वह है जब 25 अप्रैल, 1973 को मुख्य न्यायाधीश एस.एम. सीकरी सेवानिवृत्त हुए, जो सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक केशवानंद भारती फैसले का अगला दिन था, जिसमें कहा गया था कि संसद संविधान के ‘मूल ढांचे’ में बदलाव नहीं कर सकती। संवैधानिक संशोधनों के लिए अपनी योजनाओं पर इस सीमा से नाखुश इंदिरा गांधी ने 26 अप्रैल को 3 वरिष्ठ न्यायाधीशों-न्यायमूर्ति के.एस. हेगड़े, जे.एम. शेलाट और.ए.एन.ग्रोवर की जगह न्यायमूर्ति ए.एन. रे को मुख्य न्यायाधीश बनाकर तुरंत प्रतिक्रिया दी। 

इस अधिक्रमण ने एक स्पष्ट संदेश भेजा, जिसने ए.डी.एम. जबलपुर मामले (जिसे बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले के रूप में भी जाना जाता है) में सर्वोच्च न्यायालय के बाद के फैसले को प्रभावित किया। 25 जून, 1975 को घोषित आपातकाल के दौरान, जिसने जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार सहित मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया था, सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने राष्ट्रपति के आदेश को दी गई चुनौतियों की सुनवाई की। अटॉर्नी जनरल ने तर्क दिया कि आपातकाल के दौरान कोई न्यायिक उपाय नहीं मांगा जा सकता है। न्यायमूर्ति खन्ना ने अटॉर्नी जनरल से आपातकाल के दौरान पुलिस हत्याओं जैसे गंभीर दुव्र्यवहारों के उपायों के बारे में सवाल किया। अटॉर्नी जनरल ने स्वीकार किया कि इस अवधि के दौरान कोई न्यायिक सहारा नहीं होगा। इस परेशान करने वाली स्वीकारोक्ति के बावजूद, बहुमत ने फैसला सुनाया कि नागरिकों को आपातकाल के दौरान जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता का कोई अधिकार नहीं होगा। नवंबर 1976 में, कांग्रेस ने 42वां संशोधन पारित किया, जिसका उद्देश्य न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर करना और अधिक सत्तावादी शासन स्थापित करना था। 

भारत के मुख्य न्यायाधीश के आवास पर गणेश पूजा में प्रधानमंत्री की भागीदारी एक-दूसरे की भूमिकाओं और शक्तियों के प्रति आपसी सम्मान और मान्यता को रेखांकित करती है। कांग्रेस के विपरीत, जिसने ऐतिहासिक रूप से न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर करने का प्रयास किया, यह इशारा कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक स्वस्थ संबंध को दर्शाता है। प्रधानमंत्री का धार्मिक समारोह में शामिल होना न्यायपालिका के कामकाज या निर्णय लेने में हस्तक्षेप नहीं है। सम्मानजनक सांस्कृतिक या धार्मिक भागीदारी में शामिल होने और राजनीतिक लाभ के लिए न्यायिक स्वतंत्रता को नष्ट करने का प्रयास करने के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है, जैसा कि कांग्रेस के दौर में देखा गया था। यह घटना न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच स्वस्थ संबंधों का प्रतिनिधित्व करती है, जो संविधान को बनाए रखने और राष्ट्र के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए उनकी सांझा प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है। आलोचना का कारण बनने की बजाय, इसे भारत के लोकतांत्रिक और सांस्कृतिक लोकाचार के केंद्र में सद्भाव और एकता के उत्सव के रूप में देखा जाना चाहिए।-प्रो. गौरव वल्लभ(भाजपा नेता)

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!