समान नागरिक संहिता : मोदी सरकार गुपचुप इस दिशा में बढ़ रही है

Edited By ,Updated: 19 Jun, 2024 05:08 AM

uniform civil code modi government is quietly moving in this direction

भाजपानीत राजग सरकार ने अपना तीसरा कार्यकाल आरंभ कर दिया है और इस बार भी मोदी का वर्चस्व है। लगता है मोदी अपने कोर एजैंडा के मुख्य भाग समान नागरिक संहिता को लागू कर रहे हैं। इससे पूर्व वह अपने मुख्य एजैंडा की दो बातों, जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को...

भाजपानीत राजग सरकार ने अपना तीसरा कार्यकाल आरंभ कर दिया है और इस बार भी मोदी का वर्चस्व है। लगता है मोदी अपने कोर एजैंडा के मुख्य भाग समान नागरिक संहिता को लागू कर रहे हैं। इससे पूर्व वह अपने मुख्य एजैंडा की दो बातों, जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को निरस्त करना और अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण को पूरा कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मानते हैं कि किसी भी देश में उसके नागरिकों के लिए धर्म आधारित कोई कानून नहीं, बल्कि एक समान कानून होना चाहिए। 

लगता है भाजपा के सहयोगी जद (यू) और तेदेपा इससे असहमत हैं, किंतु भाजपा का मानना है कि इस दिशा में कोई भी कदम आम सहमति से लिया जाए। स्वाभाविक रूप से विपक्ष ने इसे मोदी द्वारा भारत की विविधता का असम्मान बताया और कहा कि लोकतंत्र का उद्देश्य शासन होना चाहिए, परन्तु मोदी गुपचुप तरीके से इसे लागू करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्हें इस बात को समझना होगा कि समान नागरिक संहिता धार्मिक समूहों की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार और उनके व्यक्तिगत कानूनों में तब तक हस्तक्षेप करेगी जब तक ये धार्मिक समूह बदलाव के लिए तैयार न हों। 

यह अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का मुद्दा है और भारत में रह रहे मुसलमानों के लिए हिन्दुत्व ब्रिगेड की नीति है। इसके अलावा यह अपनी पसंद के धर्म को मानने की संवैधानिक स्वतत्रंता का उल्लंघन करता है। इसमें विभिन्न समुदायों को अपने व्यक्तिगत कानूनों को मानने की अनुमति दी गई है। उदाहरण के लिए, संविधान का अनुच्छेद 32 सभी धार्मिक समूहों को अपने धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार और अनुच्छेद 29 अपनी अलग संस्कृति के संरक्षण का अधिकार देता है। कुछ लोग चिंतित हैं कि समान नागरिक संहिता लागू करने से सभी समुदायों पर हिन्दुत्व की संहिता थोपी जाएगी और इसमें विवाह, तलाक, बाल अभिरक्षा, संपत्ति अधिकार से संबंधित ऐसे प्रावधान हो सकते हैं, जो हिन्दू रीति-रिवाजों और प्रथाओं के अनुसार हों। 

समान नागरिक संहिता के पक्षधर इस बात को रेखांकित करते हैं कि यह धर्म को सामाजिक संबंधों से अलग करती है तथा हिन्दू संहिता, शरिया कानून आदि जैसे व्यक्तिगत कानून, जो विभिन्न समुदायों के धर्म ग्रंथों ओर रीति रिवाजों पर आधारित हैं, उनके स्थान पर विवाह, तलाक, दत्तक ग्रहण, उत्तराधिकार आदि के मामले में धर्म को ध्यान में रखते हुए सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून लाने से विभिन्न सांस्कृतिक समूहों में सौहार्द बनेगा और असमानताएं दूर होंगी, महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण होगा और एक समान समाज का निर्माण होगा। 

इसके अलावा समान नागरिक संहिता कमजोर वर्गों और धार्मिक अल्पसंख्यकों को संरक्षण प्रदान करेगी और साथ ही एकता के माध्यम से राष्ट्रीय भावना को प्रोत्साहन देगी। समान नागरिक संहिता की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि विभिन्न समुदायों के व्यक्तिगत कानूनों में भेदभावपूर्ण प्रथाएं हैं और सामाजिक सुधार, असमानता को समाप्त करने तथा मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए समान नागरिक संहिता आवश्यक है और यह भाव उच्चतम न्यायालय ने भी अपने विभिन्न निर्णयों में व्यक्त किया है। किंतु देश की विविधता अैर विभिन्न धार्मिक कानूनों के चलते यह कहना आसान है, करना कठिन है। देश में धार्मिक कानून न केवल पंथवार अलग हैं, अपितु समुदायवाद, जातिवाद और क्षेत्रवाद भी अलग हैं। 

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस पर आपत्ति व्यक्त की है और कहा कि भारत एक बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक समाज है तथा प्रत्येक समूह को अपनी पहचान बनाए रखने का संवैधानिक अधिकार है। समान नागरिक संहिता भारत की विविधता के लिए खतरा है और उनके धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का अतिक्रमण है और ऐसे नियम थोपे जाएंगे जो बहुसख्ंयक धार्मिक समुदाय द्वारा निर्देशित होंगे। 

हैरानी की बात यह है कि उदार मुसलमान समान नागरिक संहिता पर मौन हैं। अनेक इस्लामी देशों ने पर्सनल लॉ में सुधार किया है ताकि इसका दुरुपयोग रोका जा सके। सीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को, ईरान और यहां तक कि पाकिस्तान ने भी बहुविवाह प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है। कानूनी विशेषज्ञों में मतभेद है कि क्या राज्य को समान नागरिक संहिता लाने की शक्ति प्राप्त है? कुछ लोगों का मानना है कि विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और संपत्ति अधिकार समवर्ती सूची में आते हैं और इस सूची के 52 विषयों पर केन्द्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। कुछ लोग इस बात से असहमत हैं। उनका कहना है कि राज्यों को एक समान नागरिक संहिता की शक्ति देने से अनेक व्यावहारिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। यदि गुजरात में एक समान नागरिक संहिता हो और जिन दो लोगों ने वहां शादी की है, यदि वे राजस्थान जाते हैं तो उन पर कौन-सा कानून लागू होगा। 

इसके अलावा समान नागरिक संहिता राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है। उसे लागू करने के लिए सरकार बाध्य नहीं है। उदाहरण के लिए अनुच्छेद 47 में राज्य को निर्देशित किया गया है कि वह नशे वाले पेयों और मादक द्रव्यों के सेवन पर प्रतिबंध लगाएगा, किंतु अधिकतर राज्यों में शराब बेची जा रही है और अलग-अलग राज्यों में शराब पीने के लिए अलग-अलग आयु निर्धारित की गई है। समान नागरिक संहिता एक संवेदनशील मुद्दा है और इसे लागू करना कठिन है, किंतु इसे लागू करना चाहिए। इस दिशा में एक शुरुआत की जानी चाहिए। परंपराओं और रीति रिवाजों के नाम पर भेदभाव को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। समान नागरिक संहिता राष्ट्रीय एकता और अखंडता को भी प्रोत्साहन देगी और विभिन्न धार्मिक कानूनों के प्रति निष्ठा समाप्त होगी क्योंकि ये अलग-अलग विचारधाराओं पर आधारित हैं। 

समय आ गया है कि एक समान नागरिक संहिता लागू करने से पूर्व लोगों में आम सहमति बनाई जाए और उनकी गलतफहमियां दूर की जाएं। गोवा में 1887 में पुर्तगालियों ने एक समान नागरिक संहिता लागू कर दी थी। आप अतीत में जीकर प्रगति नहीं कर सकते। किसी भी समुदाय को प्रगतिशील कानून के मार्ग में बाधक बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। अनुच्छेद 44 को लागू किया जाए। हम कब तक पंडितों, मुल्लाओं और पादरियों के अनुसार चलते रहेंगे?-पूनम आई. कौशिश

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!