आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन : निर्वाचन आयोग शक्तिहीन, नेताओं की मनमर्जी

Edited By ,Updated: 29 May, 2024 05:23 AM

violation of the code of conduct

इस चटपटे धुआंधार चुनावी सर्कस में लोकतंत्र सिद्धान्तों की आड़ में हितों का टकराव बन गया है। यह बात हमारे राजनेताओं के झूठ को पकड़ती है क्योंकि वे चुनाव प्रचार के दौरान विष वमन और अपशब्दों का प्रयोग करते हैं और पिछले 6 सप्ताहों से हम ऐसा देखते-सुनते...

इस चटपटे धुआंधार चुनावी सर्कस में लोकतंत्र सिद्धान्तों की आड़ में हितों का टकराव बन गया है। यह बात हमारे राजनेताओं के झूठ को पकड़ती है क्योंकि वे चुनाव प्रचार के दौरान विष वमन और अपशब्दों का प्रयोग करते हैं और पिछले 6 सप्ताहों से हम ऐसा देखते-सुनते आ रहे हैं। यह इस बात को रेखांकित करता है कि नए राजनीतिक संवाद में कितनी गिरावट आ गई है और इस संवाद में चटपटी बातों पर दर्शक सीटियां और तालियां बजाते हैं और राजनेता यह सब कुछ इस आशा के साथ करते हैं कि इससे उन्हें राजनीतिक निर्वाण प्राप्त होगा। 

एक बात स्पष्ट है, भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट आई है और वह हमारे राजनेताओं के सबसे विकृत स्वरूप को सामने ला रही है। हमारे राजनेता खुल्लमखुल्ला घृणा भरे भाषण दे सांप्रदायिक उन्माद भड़का रहे हैं और उन्हें गरिमा का बिल्कुल भी ध्यान नहीं है। इस तरह वे सार्वजनिक जीवन में अपने सबसे निचले स्तर तक गिर रहे हैं। सबसे दुख की बात यह है कि चुनाव आयोग भाजपा तथा ‘इंडिया’ गठबंधन द्वारा आदर्श आचार संहिता का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन करने के बारे में कार्रवाई करने में विफल रहा है। 

निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों से कहा है कि वे अपने स्टार प्रचारकों अर्थात मोदी और राहुल को ऐसी टिप्पणियों से बचने के लिए कहें और कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश तथा भाजपा उम्मीदवार को ममता बनर्जी पर इस अभद्र टिप्पणी के कारण प्रतिबंध लगाया कि ‘आपका मूल्य क्या है और आपके पिता कौन हैं।’ परिणामत: ऐसे वातावरण में, जहां पर राजनीति गाली-गलौच और अपशब्दों के स्तर तक गिर गई है, निर्वाचन आयोग की आदर्श आचार संहिता राजनीतिक प्रतिस्पर्धियों और जानी दुश्मनों के शस्त्रागार में सबसे घातक मिसाइल बन गई है। कोई भी पक्ष आदर्श आचार संहिता के सामान्य आचरण, बैठक, रैलियां, मतदान केन्द्रों पर पर्यवेक्षकों, सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के बारे में सात सिद्धान्तों की परवाह नहीं कर रहा और यदि नैतिकता का उपदेश देने वाले सवयं उसको अपनाने लगें तो उनके दोगलेपन की कला किस तरह सफल होगी। चुनाव का मतलब है विरोधियों के विरुद्ध बढ़त प्राप्त करना, चाहे निर्वाचन आयोग आदर्श आचार संहिता की दुहाई देता रहे। परिणाम महत्वपूर्ण है, उसको प्राप्त करने के साधन नहीं। 

कांग्रेस ने मोदी पर खोखली बातें कहने का आरोप लगाया कि यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो वह विरासत कर लगाएगी ताकि उसकी जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी लूट जारी रहे। महिलाओं के मंगलसूत्र को मुसलमानों को बांट देगी और कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र पर मुस्लिम लीग की छाप बताई। कांग्रेस ने कहा कि मोदी एक जहरीला सांप हैं। वे कहते हैं कि उनकी 56 इंच का सीना है। हम इसका क्या करें। आप यह बताएं कि भोजन कब देंगे। पी.एम. का मतलब पनौती मोदी और जेबकतरा है। वे फिजूल की बातें कर रहे हैं कि जैसे हम तुम्हारी भैंस चुरा लेंगे और प्रत्येक के बैंक खातों और लॉकरों की जांच करेंगे। 

मोदी एंड कंपनी ने इसका प्रत्युत्तर कांग्रेस पर यह आरोप लगाते हुए दिया कि ओ.बी.सी. का कोटा छीनकर मुसलमानों को आरक्षण दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मैं दलितों के आरक्षण को छीनने के हर प्रयास को विफल करूंगा। वे वोट बैंक के समक्ष मुजरा कर रहे हैं। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार में ओ.बी.सी. का कोटा छीनकर मुसलमानों को आरक्षण दिया जा रहा है। वे भाषा और क्षेत्र के आधार पर उत्तर और दक्षिण में खाई पैदा कर रहे हैं और कहा कि शहजादा राहुल गांधी मूर्खों और झूठों का सरदार है और वह वोट जिहाद के लिए लोगों को उकसा रहा है। 

तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने मोदी को पापी कहा तो राकांपा के शरद पवार ने उन्हें निर्लज्ज कहा। माकपा के एक नेता ने कहा कि क्या राहुल नेहरू गांधी परिवार से हैं, उन्हें इस बारे में संदेह है। उनके डी.एन.ए. की जांच की जानी चाहिए। ए.आई.एम.आई.एम. के ओवैसी ने कहा कि कोई माई का लाल पैदा नहीं हुआ जो मुझे रोक सके। मोदी आर.एस.एस. का पिट्ठू है। इशारा कर दिया तो दौडऩा पड़ेगा। एक विचारणीय प्रश्न उठता है कि क्या प्रधानमंत्री के लिए उचित है कि वह इस तरह की भाषा का प्रयोग करें? क्या निर्वाचन आयोग को तुरंत कार्रवाई नहीं करनी चाहिए? 

आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में दोषसिद्धि की दर को कम देखते हुए क्या आदर्श आचार संहिता के मामले केवल सांकेतिक हैं? यदि आदर्श आचार संहिता को कानूनी रूप दिया जाता तो क्या निर्वाचन आयोग को अधिक शक्ति मिलेगी? क्या आदर्श आचार संहिता को सांविधिक दर्जा दिया जाएगा जैसा कि कार्मिक लोक शिकायत विधि और न्याय संबंधी संसद की स्थायी समिति ने 2013 में सिफारिश की थी। 

विशेषज्ञों का कहना है कि आदर्श आचार संहिता शक्तिहीन और अप्रासंगिक है जो हमारे नेताओं की बातों पर अंकुश नहीं लगा सकती और इसका पालन करना पूर्णत: नैतिकता पर निर्भर है न कि कानून के भय से। प्रत्येक चुनावों में ऐसा होता रहा है जहां पर निर्वाचन आयोग हमेशा इन्हीं प्रश्नों का सामना करता रहा है और जब तक वह किसी समाधान पर पहुंचता है, मतदान हो चुका होता है। सच यह है कि आदर्श आचार संहिता चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के बीच एक स्वैच्छिक करार है और यह सांविधिक रूप से बाध्यकारी नहीं है। दल और उम्मीदवार इसका खुलेआम उल्लंघन करते हैं और आयोग शक्तिहीन दिखाई देता है। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, आदर्श आचार संहिता को कानूनी स्वीकृति प्राप्त नहीं है। हम केवल किसी पार्टी के चुनाव चिह्न को फ्रीज कर सकते हैं या एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में उसकी मान्यता समाप्त कर सकते हैं। इससे कम-ज्यादा कुछ भी नहीं। 

समय आ गया है कि आदर्श आचार संहिता के बारे में पुनॢवचार किया जाए, उसे नए सिरे से बनाया जाए और इसे कानून का रूप दिया जाए साथ ही इसके उल्लंघन के मामले में चुनाव आयोग को दंडात्मक कार्रवाई करने की शक्ति दी जाए। हालांकि आदर्श आचार संहिता उम्मीदवारों के लिए एक नैतिक दायित्व बनता है कि वे चुनावों को स्वंतत्र तथा निष्पक्ष बनाएं। यह चुनाव अनेक जमीनी मुद्दों को उठाने के लिए जाना जाएगा, किंतु इसके विकृत चुनाव प्रचार को भी याद रखा जाएगा। यह दुखद तथ्य है कि बेरोजगारी, विकास, मुद्रास्फीति, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जैसी जटिल समस्याओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। कुल मिलाकर यह इस बात की याद दिलाता है कि भारत की राजनीतिक संस्कृति में किस तरह की गिरावट आ रही है जहां पर चुनावी प्रक्रिया में लोकतंत्र की खामियां उजागर हो रही हैं, जो हमारे संस्थानों की विश्वसनीयता को नष्ट कर सकती है। 

यह महत्वपूर्ण नहीं है कि चुनाव कौन जीतता है क्योंकि अंतत: हार हम लोगों की होगी। यह प्रणाली आम आदमी को बेहतर जीवन से वंचित रखने का खेल है। हमें राजनेताओं को यह अनुमति नहीं देनी चाहिए कि वे हमारे साथ खिलवाड़ करते रहें। हमें इस बात की मांग करनी चाहिए कि चुनावी सुधार लागू किए जाने चाहिएं ताकि हमारा लोकतंत्र सच्चे रूप में प्रतिनिधिक बन सके। निर्लज्ज और स्वार्थी लोगों को वोट देना बंद करना चाहिए, जो अनैतिकता को अधिक महत्व देते हैं। क्या अपशब्द और गाली-गलौच भारतीय लोकतंत्र का आधार बनेगा और यदि बनेगा तो कब तक? हमें इन प्रश्नों पर विचार करना होगा।-पूनम आई. कौशिश
 

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