सच व झूठ, वैज्ञानिक और अवैज्ञानिक सोच के बीच ‘युद्ध’

Edited By ,Updated: 14 Nov, 2024 05:43 AM

war  between truth and lies scientific and unscientific thinking

भारत में आज हर क्षेत्र में विचारधारा की दो परस्पर विरोधी धाराएं कार्यशील हैं। बेशक यह रुझान विश्वव्यापी है परन्तु हमारे देश में इन धाराओं का स्वभाव तथा निशाना अधिकतर स्पष्ट नजर आता है।

भारत में आज हर क्षेत्र में विचारधारा की दो परस्पर विरोधी धाराएं कार्यशील हैं। बेशक यह रुझान विश्वव्यापी है परन्तु हमारे देश में इन धाराओं का स्वभाव तथा निशाना अधिकतर स्पष्ट नजर आता है। इन दोनों धाराओं को समझने के लिए एक हद तक राजनीतिक पार्टियों की, भाजपा तथा गैर-भाजपा रूपी 2 राजसी खेमों में बंटी मौजूदा कतारबंदी भी सहायक सिद्ध होती है मगर अनेक मसलों पर ये राजनीतिक दल अपने पाले बदल भी लेते हैं। ऐसे समय, जब राजनीतिक दलों के नेताओं की स्पष्ट दिखाई देती सियासी विरोधता पल-छिन में आपसी सहयोग में बंट जाती है तो राजनीतिक धड़ों के ऐसे पैंतरे से उक्त दो धाराओं के बीच का अंतर समझना लोगों के लिए मुश्किल हो जाता है।  वामपंथी दलों की पहचान पर अमल इन दोनों खेमों से अलग जनहित पक्ष वाले हैं। 

आर्थिक क्षेत्र में, प्रमुख राजनीतिक दल वैश्विक साम्राज्यवादियों के दबाव के अंतर्गत विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष द्वारा निर्धारित की जातीं नव उदारवादी नीतियों के हक में खड़े साफ नजर आते हैं। यह नामकरण संसारीकरण, उदारीकरण, निजीकरण आदि भ्रम डालने वाले शब्दों के आधार पर किया गया है। मौजूदा दौर में उदारीकरण तथा निजीकरण के चौखटे के अंतर्गत सरकारी क्षेत्र का भोग डाल कर देश की कुल संपत्ति देसी-विदेशी कार्पोरेट घरानों के हाथों सौंपी जा रही है। जब सारा कारोबार तथा सामाजिक सेवाएं कार्पोरेट घरानों के हवाले हो जाएंगी तो पक्की नौकरी की तरह ठेका भर्ती, काम के घंटों में वृद्धि तथा असल आमदनी, श्रमिक अधिकारों और भत्तों में कटौती के साथ-साथ बेरोजगारी, महंगाई तथा भुखमरी का बेरोक-टोक फैलाव होना भी लाजिमी है। 

कार्पोरेट लुटेरों का उद्देश्य ‘लोक सेवा’ नहीं, बल्कि पूंजी के असीम भंडार एकत्र करना होता है। पूंजी की यह भूख कभी भी पूरी नहीं होती। जबकि स्व:निर्भर आर्थिक विकास और साम्राज्यवादी लूट के खात्मे वाला जनहितैषी विकास माडल इस लुटेरी व्यवस्था के बिल्कुल विपरीत है। इस माडल के अंतर्गत किसी भी देश के साथ द्विपक्षीय व्यापार करते हुए राष्ट्र हितों को प्रमुखता दी जाती है। देश की सभी वामपंथी पार्टियां इसी विकास माडल की हिमायती हैं। राजनीति के क्षेत्र में सत्ता पर विराजमान आर.एस.एस. की विचारधारा की पक्की अनुयायी भाजपा देश के मौजूदा धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक तथा संघवादी ढांचे को तहस-नहस करके इसकी जगह धर्म पर आधारित ऐसा कट्टर राष्ट्र कायम करने के लिए हर प्रयास कर रही है, जो पूरी तरह से गैर-लोकतांत्रिक  होगा। 

कोई भी धर्म जब राजनीति की बागडोर संभालता है तो बहुसंख्यक धर्म से संबंधित आबादी सहित धार्मिक अल्पसंख्यकों, दलितों, महिलाओं तथा वैज्ञानिक विचारधारा वाले लोगों के प्रति अन्याय, भेदभाव तथा ज्यादतियों का दौर अवश्य तेज होता है। कोई भी धर्म आधारित राजनीतिक ढांचा सभी नागरिकों को लिखने-बोलने तथा अन्य ढंगों के माध्यम से विचार प्रकट करने और सरकारी नीतियों का विरोध करने के अधिकारों से अवश्य वंचित करता है। ‘हिंदुत्ववादी’ विचारधारा जैसी इसी नई व्यवस्था के अनुसार ढाले गए संविधान में सभी लोगों को बराबर के अधिकार कदाचित हासिल नहीं हो सकेंगे। देश का इतिहास, शैक्षिक पाठ्यक्रम, रस्मो-रिवाज सब मनुवादी व्यवस्था के अधीन, सनातनी विचारधारा के अनुसार तय किए जाएंगे। इसी को हिंदू धर्म के ‘पुनर्जागरण’  का नाम दिया जा रहा है।

भारतीय समाज तथा राजनीति में भी एक धड़ा ऐसा है जो मेहनत तथा वैज्ञानिक सोच के आधार पर देश को विकास की बुलंदियों पर पहुंचाने और मनुष्य के हाथों मनुष्य की लूट-खसूट के प्रबंध का खात्मा करके बराबरी के उसूलों पर आधारित सर्व सांझा समाज बनाने के लिए प्रयत्नशील है। यह धड़ा बेरोजगारी-महंगाई, कुपोषण, गरीबी-भुखमरी जैसे मुद्दों के इर्द-गिर्द राजनीतिक एजैंडा तय करने और इतिहास की अच्छी परम्पराओं व रीति-रिवाजों का अनुसरण करता हुआ जनसाधारण को अंधविश्वासों, अप्रचलित रस्मों-रिवाजों, कर्मकांडी धारणाओं तथा ऊंच-नीच वाली जाति-पाति व्यवस्था से छुटकारा दिलाने के लिए संघर्षरत है। इसके विपरीत एक दूसरी धारा भी है, जो लोगों के वास्तविक मुद्दों को नजरअंदाज करती हुई देश को मध्य युग के अंधेरे की ओर धकेल कर समाज को झूठ, वहमों-भ्रमों तथा कर्मकांडों के मकडज़ाल में फंसा देखना चाहती है। 

दो विरोधी धाराओं के बीच इन अलगावों को सच तथा झूठ, हकीकत तथा वैज्ञानिक व अवैज्ञानिक सोच के बीच ‘युद्ध’ कहा जा सकता है। यही कारण है कि मौजूदा सत्ताधारी अपने किसी चुनावी विरोधी राजनीतिक पक्ष से कई गुणा अधिक वैज्ञानिक तथा अग्रगामी विचारधारा की समर्थक तथा इसी के इर्द-गिर्द लोक लामबंदी कर रही वामपंथी पार्टियों के तर्कशील विद्वानों की लिखतों के कट्टर विरोधी है। इस मौजूदा संघर्ष में वास्तविक देशभक्ति तथा मानवीय अमलों की पहचान भी होगी, जो आखिर में उजले भारत के लिए एक वरदान सिद्ध होगी।-मंगत राम पासला 

Related Story

    Trending Topics

    IPL
    Royal Challengers Bangalore

    Gujarat Titans

    Teams will be announced at the toss

    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!