Edited By ,Updated: 15 Jul, 2024 06:04 AM
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू योग्यता के आधार पर अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर हैं। हमने 1990 के दशक में उनके प्रशासन को देखा है। जब आंध्र प्रदेश अविभाजित था, उस समय आंध्र प्रदेश की सड़कें गुणवत्तापूर्ण और उत्तम दर्जे की हुआ करती थीं।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू योग्यता के आधार पर अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर हैं। हमने 1990 के दशक में उनके प्रशासन को देखा है। जब आंध्र प्रदेश अविभाजित था, उस समय आंध्र प्रदेश की सड़कें गुणवत्तापूर्ण और उत्तम दर्जे की हुआ करती थीं। हम हमेशा आंध्र प्रदेश की सड़कों की तुलना कर्नाटक से करते थे। आंध्र प्रदेश का अवैज्ञानिक विभाजन बचे हुए आंध्र प्रदेश के लिए घातक था। इंद्रप्रस्थ (नई दिल्ली) की सरकार आंध्र प्रदेश की दयनीय आर्थिक स्थिति के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। आप कल्पना कीजिए, यह मेरी इच्छा नहीं है, अगर हम कर्नाटक को उत्तर और दक्षिण में विभाजित करते हैं तो उत्तर कर्नाटक को अगले 50 वर्षों तक नुकसान उठाना पड़ेगा।
मैं भारतवर्ष को उत्तर और दक्षिण 2 भाग में विभाजित करना चाहता हूं, ताकि देश की एकता, अखंडता और प्रगति में इन 2 क्षेत्रों के योगदान को समझा जा सके। हजारों वर्षों से उत्तर ने योद्धा और राजनेता पैदा किए हैं। इसी तरह दक्षिण ने बुद्धिजीवियों को जन्म दिया है। योद्धाओं और बुद्धिजीवियों का यह संयोजन प्राचीन दुनिया में लगातार सफल राजवंशों और भारतवर्ष की आधुनिक दुनिया में सरकारों द्वारा हासिल किया गया संतुलन है, जिसे हमारे अज्ञानी लोग इंडिया, भारत और हिंदुस्तान कहते हैं।
जब भी योद्धाओं और बुद्धिजीवियों के बीच असंतुलन होता है, अराजकता फैलती है और बाहरी दुनिया स्थिति का फायदा उठाती है। जब उत्तर और दक्षिण के बीच राज्यों की पहचान की बात आती है, तो हमारा आर्थिक वर्ग, राजनीतिक वर्ग और मुख्यधारा का मीडिया भी दक्षिण को केवल केरल, तमिलनाडु, पांडिचेरी, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक तक सीमित कर देता है। ये अज्ञानी लोग महाराष्ट्र को दक्षिण से अलग करते हैं। मैं महाराष्ट्र को दक्षिणी क्षेत्र का हिस्सा मानता हूं। अगर हम महाराष्ट्र को नजरअंदाज करेंगे तो हम योद्धा वर्ग की कमी को नहीं भर पाएंगे। दक्षिणी क्षेत्र में राष्ट्रीयता की बात करें तो महाराष्ट्र पहले स्थान पर है।
शरद पवार आज कमजोर हो सकते हैं। जिस दिन प्रधानमंत्री की नियुक्ति होनी थी, उस दिन शरद पवार ने सबसे पहले सोनिया गांधी की उम्मीदवारी का विरोध किया था। आंध्र प्रदेश ने 2 बेहतरीन राजनेता दिए हैं, एक हैं पी.वी. नरसिम्हा राव और दूसरे हैं वर्तमान चंद्रबाबू नायडू। पी.वी.एन. ने उस समय के हमारे बेहतरीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को मौका दिया। उन्होंने किसी गुट की बात नहीं मानी। आज पूरा विपक्ष अपने चुनावी फायदे के लिए लोगों को जाति के आधार पर बांटने की साजिश कर रहा है।
अगर हम चंद्रबाबू नायडू के नजरिए का सम्मान नहीं करेंगे तो हम जहाज से चूक जाएंगे। हमारी समृद्धि की गाड़ी इन अराजकतावादियों के कारण पटरी से उतर जाएगी। अगर हमारे मुस्लिम भाई-बहन सोचते हैं कि सनातन समाज में अराजकता पैदा करके वे समृद्ध हो सकते हैं तो यह उल्टा होगा। आपकी आजीविका सनातन समाज से जुड़ी हुई है। जब हम अपने धार्मिक स्थलों की तीर्थ यात्रा करते हैं तो वहां मुस्लिम ड्राइवर होते हैं। वहां मुस्लिम फूल विक्रेता होते हैं। कपूर, अगरबत्ती और अन्य सामानों के मुस्लिम निर्माता होते हैं। आप सांस्कृतिक रूप से एक निष्पक्ष सनातनी/हिंदू और धार्मिक रूप से मुसलमान हैं। यदि इस्लाम आपकी समृद्धि की गारंटी दे सकता है, तो अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आर्थिक उथल-पुथल क्यों है। वे एक दिन में 2 भोजन नहीं जुटा पा रहे हैं।
अयोध्या में राम मंदिर के बनने से हमारे मुस्लिम भाई भी समृद्ध होंगे क्योंकि यहां आने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी और वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ेगी। इस मंदिर द्वारा संचित धन का कुछ हिस्सा शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना के लिए भी इस्तेमाल किया जाएगा। हमारे लिए मंदिर आस्था के अलावा आर्थिक केंद्र भी हैं। आइए हम जाति जनगणना के मुख्य पहलू पर आते हैं जैसा कि हमारे आधुनिक राजनेता बताते हैं। इस पहलू पर विचार करने से पहले हमें उस आधार को संबोधित करना होगा जिस पर उन दिनों जाति खड़ी थी। हम इसे वर्ण कहते थे, जाति नहीं। जाति अंग्रेजों द्वारा बनाई गई और अतार्किक है। वर्ण तार्किक और व्यवसाय पर आधारित था। प्रत्येक वर्ण का अपना धर्म संविधान होता था, जिसमें चरित्र और प्रतिबद्धता होती थी। ब्राह्मण ज्ञान प्राप्त करते थे और ज्ञान का प्रसार करते थे।
कृपया चंद्र बाबू नायडू के संदेश को तिरुपति बालाजी द्वारा विपक्ष को भेजे गए संदेश के रूप में देखें। वे चंद्र बाबू नायडू को ‘इंडिया’ गठबंधन में चाहते थे। अब उन्हें चंद्र बाबू नायडू की कौशल जनगणना का समर्थन करना होगा। यह उस संदर्भ में अधिक उपयुक्त है, जिसमें चंद्र बाबू नायडू ने यह नरेटिव बेहतरीन पेश किया और विपक्ष पूरी तरह से नैतिक रूप से हार गया। इसका कारण यह है कि वे भाजपा के मुख्यमंत्री नहीं हैं। वे संघ परिवार से भी नहीं जुड़े हैं। यह उनका मूल नरेटिव है जो सदियों पुरानी जाति व्यवस्था को हल कर सकता है। युवा इस जाति सिंड्रोम से बाहर आना चाहते हैं। आइए संसद में बहस करें। हम चंद्र बाबू नायडू महान के साथ हैं। हमारी पाठ्य पुस्तकों में अब अकबर महान नहीं है।-एस. सुंदर राजन