हम बंगलादेशी हिंदुओं की व्यथा को हल्के में न लें

Edited By ,Updated: 02 Dec, 2024 05:37 AM

we should not take the plight of bangladeshi hindus lightly

1971 की भारत पाक जंग के बाद हिंदुस्तान की बदौलत वजूद में आए बंगलादेश में हिंदुओं के साथ बुरा बर्ताव हमारे देश के लिए निरंतर चिंता का सबब बना हुआ है। जनसंख्या के लिहाज से, बंगलादेश भारत और नेपाल के पड़ोसी देशों के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हिंदू...

1971 की भारत पाक जंग के बाद हिंदुस्तान की बदौलत वजूद में आए बंगलादेश में हिंदुओं के साथ बुरा बर्ताव हमारे देश के लिए निरंतर चिंता का सबब बना हुआ है। जनसंख्या के लिहाज से, बंगलादेश भारत और नेपाल के पड़ोसी देशों के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हिंदू आबादी वाला देश है। बंगलादेश के 64 जिलों में से 61 में हिंदू धर्म दूसरा सबसे बड़ा धर्म है, लेकिन बंगलादेश में कोई भी हिंदू बहुल जिला नहीं है। वर्तमान बंगलादेश में हिंदू आबादी लगातार जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में घट रही है, 1941 में 28 प्रतिशत से 1971 में बंगलादेश की स्थापना के समय 13.5 प्रतिशत हो गई और 2022 में और कम होकर 7.9 प्रतिशत हो गई । बंगलादेश मुक्ति युद्ध के दौरान उत्पीडऩ से बचने के लिए लगभग 80 लाख हिंदू भारत के विभिन्न हिस्सों में भाग गए। आजादी के बाद, यह पता चला कि 15 लाख हिंदू भारत में रह गए।

ढाका विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री अबुल बरकत के अनुसार, 1964 से 2013 तक धार्मिक उत्पीडऩ और भेदभाव के कारण लगभग 11.3 मिलियन हिंदुओं ने बंगलादेश छोड़ दिया। उनके अनुसार औसतन हर दिन 632 हिंदू देश छोड़कर चले गए और सालाना 230,612 हिंदू देश छोड़कर चले गए। पड़ोसी देशों में हिंदुओं पर अत्याचार की कहानी नई नहीं है। वर्ष 1947 में जब भारत का विभाजन हुआ, लाखों की संख्या में हिन्दू और मुसलमानों ने धर्म के आधार पर मुल्क बदला। फिर भी कुछ मुसलमान ऐसे थे, जो भारत में ही रह गए और इसी तरह कुछ हिन्दू पाकिस्तान में रह गए। भारत ने हिन्दू राष्ट्र बनने की बजाय धर्मनिरपेक्ष राज्य बनना पसंद किया, ताकि भारत में रहने वाले अल्पसंख्यक खुद को असुरक्षित न समझें, उन्हें समान अधिकार मिलें और इसके लिए भारत ने अपने संविधान में धर्म चुनने की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकारों की सूची में स्थान दिया है।

भारत विभाजन से पहले मुसलमानों की संख्या भारत की कुल आबादी का 10 प्रतिशत थी, जो आज बढ़कर लगभग 15 प्रतिशत हो गई है। लेकिन पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं की किस्मत भारतीय मुसलमानों जैसी न तब थी, न आज है। पाकिस्तान में बसे हिन्दुओं में से लगभग 96 फीसदी सिंध प्रान्त में ही रहते हैं। वर्ष 1956 में पाकिस्तान का संविधान बना और पाकिस्तान प्रगतिशील और उदारवादी विचारधाराओं को त्यागकर  कट्टर देश बन गया, और तभी से अल्पसंख्यक हिन्दुओं का वहां रहना दुश्वार हो गया। बंगलादेश में भी यह कहानी दोहराई जा रही है।देखने में आया है कि पाकिस्तान की जब भी भारत के आगे दाल नहीं गलती तो सभी घटनाओं का दुष्परिणाम पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं को भुगतना पड़ता है । जिया-उल-हक की तानाशाही से लेकर अब तालिबान के अत्याचारों तक पाकिस्तानी हिन्दुओं का जीवन दूभर ही रहा है। 

कहते हैं कि आजादी के वक्त पाकिस्तान में कुल 428 मंदिर थे, जिनमें से अब सिर्फ 26 ही बचे हैं। पाकिस्तान में ज्यादातर हिन्दू मंदिर या गिरा दिए गए या उन्हें होटल बना दिया गया है। पाकिस्तान के नैशनल कमिशन फॉर जस्टिस एंड पीस की वर्ष 2012 की रिपोर्ट के मुताबिक 74 प्रतिशत हिन्दू महिलाएं यौन शोषण का शिकार होती हैं। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग की वर्ष 2012 की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में हर महीने 20 से 25 हिन्दू लड़कियों का अपहरण होता है और जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया जाता है। जब पाकिस्तान में जीने के लिए हिन्दू अल्पसंख्यकों की अनुकूल स्थिति नहीं रही, तो बंगलादेश इसका अपवाद कैसे साबित होगा और आज यही कुछ हिंदुओं के साथ बंगलादेश में देखने को मिल रहा है।

बंगलादेश की वर्तमान सरकार भारत विरोधी सोच वाली है जिससे यूनुस भी अछूते नहीं हैं। अगर वे भारत हितैषी दिखना भी चाहें तो वह ऐसा कर नहीं सकते क्योंकि हसीना सरकार के गिरने का बड़ा कारण उनका भारत हितैषी नजरिया था। वरना वहां सुप्रीमकोर्ट का रिजर्वेशन पर फैसला आने के बाद उनको अपदस्थ करने का कोई कारण ही नहीं था? रिजर्वेशन के नाम पर वहां के युवाओं को हथियार के रूप में बंगलादेशी कट्टरपंथियों ने इस्तेमाल किया और हसीना सरकार को गिरा दिया। ये लोग ऐसे अवसर की तलाश में ही बैठे थे। खेद की बात है कि जिस बंगलादेश को आजाद कराने के लिए हिन्दुस्तानी यानी भारतीय फौजों ने मुकाबला किया था, इसी भारत के बहुसंख्यकों को अब वहां के हुक्मरान अपना दुश्मन क्यों मानते हैं?-डा. वरिन्द्र भाटिया
 

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