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सुरक्षा की कमजोर परतें : भीड़ प्रबंधन पर पुनर्विचार जरूरी

Edited By ,Updated: 24 Feb, 2025 05:31 AM

weak layers of security crowd management needs to be reconsidered

भीड़ मानव इतिहास जितने पुराने कारणों से इकट्ठा होती है, विशेषकर आस्था, संगीत, न्याय और उत्सव के लिए। लेकिन जब व्यवस्था और अव्यवस्था के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है, तो त्रासदी अनजाने में ही आ जाती है। 15 फरवरी को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में...

भीड़ मानव इतिहास जितने पुराने कारणों से इकट्ठा होती है, विशेषकर आस्था, संगीत, न्याय और उत्सव के लिए। लेकिन जब व्यवस्था और अव्यवस्था के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है, तो त्रासदी अनजाने में ही आ जाती है। 15 फरवरी को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में 18 लोगों की जान चली गई। महाकुंभ मेले के लिए प्रयागराज पहुंचने के लिए उत्सुक श्रद्धालु खुद को ऐसी व्यवस्था में फंसा हुआ पाते हैं जो उन्हें विफल कर देती है। ट्रेनें देरी से चल रही थीं। प्लेटफार्म अस्पष्ट थे। सुरक्षा की मौजूदगी कम थी।

रेलवे सुरक्षा बल (आर.पी.एफ.)  ने स्वीकार किया कि प्लेटफार्म बदलने की वजह से अव्यवस्था हुई। हालांकि, रेल मंत्री इसे खारिज करते रहे हैं। आर.पी.एफ. की रिपोर्ट के अनुसार, रात करीब 8.45 बजे एक घोषणा की गई कि प्रयागराज जाने वाली कुंभ स्पैशल ट्रेन प्लेटफार्म 12 से रवाना होगी। कुछ ही देर बाद, एक और घोषणा ने यात्रियों को प्लेटफार्म 16 पर भेज दिया, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हो गई और भगदड़ मच गई। जैसे ही यात्री प्लेटफार्म बदलने के लिए दौड़े, प्लेटफार्म 12-13 और 14-15 से सीढिय़ां चढऩे वाले लोग दूसरी ट्रेनों से उतर रही भीड़ से टकरा गए। अफरा-तफरी में लोग सीढिय़ों पर फिसलकर गिर गए। कोई रास्ता न होने के कारण दूसरे लोग सीढिय़ों पर चढ़ गए, जिससे अफरा-तफरी मच गई।

रेलवे ने मृतकों के परिवारों को 10 लाख रुपए और घायलों को 1-2.5 लाख रुपए के बीच मुआवजे की घोषणा की। हालांकि, जिस तरह से ये भुगतान किए गए, उससे चिंताएं पैदा हुई हैं। शोक संतप्त परिवारों से रेलवे की 3 सदस्यीय टीम ने शवगृह में सम्पर्क किया। उनके प्रियजनों की पहचान करने के बाद, उनका मौके पर ही सत्यापन किया गया, जहां अधिकारियों ने उनके पहचान दस्तावेजों की प्रतियां जांचीं और रख लीं। फिर, उन्हें नकद में मुआवजा राशि (10 लाख रुपए) शव के साथ दी गई। 

इसके तुरंत बाद, उन्हें पुलिस सुरक्षा में उनके गृहनगर वापस भेज दिया गया। परिवार के एक सदस्य ने बताया,‘‘उन्होंने मुझे शव सौंपा और एक रेलवे अधिकारी ने मुझे 10 लाख रुपये नकद दिए। इसके बाद वे मुझे एम्बुलैंस की ओर ले गए और एक पुलिस वाले को साथ भेजा। मुझे मीडिया से बात करने की अनुमति नहीं दी गई और शव को घर ले जाने को कहा गया।’’ यह इस तरह की पहली आपदा नहीं थी और जब तक कुछ बुनियादी बदलाव नहीं होते, यह आखिरी भी नहीं होगी। भीड़ की सुरक्षा केवल आपदा का जवाब देने के बारे में नहीं है, यह इसे रोकने के बारे में है, और रोकथाम के लिए इच्छाधारी सोच से कहीं अधिक की आवश्यकता होती है। इसके लिए संरचना, सुरक्षा की परतें और एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता होती है जो एक तत्व के लडख़ड़ाने पर ढह न जाए।

ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता होती है जो विफलताओं को बढऩे से पहले ही पकड़ ले। यहीं पर एक बहुस्तरीय दृष्टिकोण आवश्यक हो जाता है, जिसमें प्रत्येक परत एक सुरक्षा कवच और प्रत्येक सावधानी आपदा के विरुद्ध एक अवरोध होती है। आइए हम इसे सुरक्षा की कुछ परतें कहें जो व्यवस्था और अराजकता, जीवन और हानि के बीच खड़ी हैं। ये हैं-
1. विनियमन और नीति निर्माण: सरकारों को स्पष्ट भीड़ प्रबंधन नीतियां निर्धारित करनी चाहिएं, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आयोजन स्थल सुरक्षा मानकों को पूरा करें और उनकी क्षमता सीमाएं सख्त हों। इन कानूनों को बनाए रखा जाना चाहिए,केवल लिखित रूप में नहीं।
2. योजना और जोखिम मूल्यांकन : प्रत्येक सभा को सावधानीपूर्वक दूरदर्शिता के साथ देखा जाना चाहिए। जोखिम मूल्यांकन में बाधाओं का अनुमान लगाना चाहिए, भीड़ की आवाजाही के पैटर्न का विश्लेषण करना चाहिए और स्पष्ट आपातकालीन प्रोटोकॉल बनाना चाहिए। यह वैकल्पिक नहीं है; यह अस्तित्व है।
3. परिचालन नियंत्रण : प्रशिक्षित कर्मचारी, वास्तविक समय की निगरानी और नियंत्रित प्रवेश ङ्क्षबदू आवश्यक हैं। संरचित प्रबंधन के बिना भीड़भाड़ वाली जगह दुर्घटना का इंतजार कर रही है।
सुरक्षा को केवल अधिकारियों की जिम्मेदारी के रूप में देखा जाता है। हालांकि, भीड़ व्यक्तियों से बनी होती है, और जो व्यक्ति सुरक्षा को समझते हैं, उनके आपदा में योगदान करने की संभावना कम होती है। जन जागरूकता अभियान व्यापक होने चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि लोगों को पता हो कि आपात स्थिति में कैसे प्रतिक्रिया करनी है, कैसे आगे बढऩा है और कैसे बाहर निकलने के रास्ते तलाशने हैं।-हरि जयसिंह 
 

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