‘हैल्थ फूड’ के नाम पर हमें क्या खिलाया जा रहा

Edited By ,Updated: 06 Oct, 2023 04:48 AM

what are we being fed in the name of  healthy food

आधुनिक जीवन की भाग-दौड़ में हम अपने भोजन पर उतना ध्यान नहीं देते जितना हमें स्वस्थ रहने के लिए देना चाहिए।

आधुनिक जीवन की भाग-दौड़ में हम अपने भोजन पर उतना ध्यान नहीं देते जितना हमें स्वस्थ रहने के लिए देना चाहिए। इसीलिए आए दिन हमारे शरीर में कोई-न-कोई दिक्कत उत्पन्न होती रहती है। रोजमर्रा के खाने में पौष्टिक तत्वों की कमी के कारण अक्सर बीमार पडऩे पर डाक्टर भी हमें ताजी और शुद्ध चीजें खाने की ही सलाह देते हैं। इसके साथ हमारी डाइट को ‘हैल्थ फूड’ पर आधारित होने की भी सलाह देते हैं।

अपनी सेहत की चिंता करते हुए हम बाजार में ‘हैल्थ फूड’ के नाम पर मिलने वाली वस्तुएं खरीदने की होड़ में लग जाते हैं परंतु यहां सवाल उठता है कि क्या ‘हैल्थ फूड’ के नाम पर बिकने वाले डिब्बा बंद या सील बंद उत्पादन वास्तव में हमारे शरीर के लिए ‘हैल्दी’ हैं? बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादनों ने बाजार में एक ऐसा मायाजाल बिछाया है जिसके शिकंजे में हम बड़ी आसानी से फंस जाते हैं। यह कंपनियां अपने उत्पादनों को ‘हैल्थ फूड’ का जामा ओढ़ा कर उपभोक्ताओं को इसकी लत लगाने में कामयाब हो जाती हैं।

आम लोग भी इनकी मार्कीटिंग और आकर्षक विज्ञापन के झांसे में बहुत आसानी से आ जाते हैं। बिना यह सोचे-समझे कि क्या इन ‘हैल्थ फूड्स’ में वो सभी पौष्टिक तत्व सही मात्रा में हैं, जो हमारे शरीर के लिए जरूरी हैं? क्या हमें जिन तत्वों का परहेज करना चाहिए वो इन ‘हैल्थ फूड्स’ में हैं? क्या बाजार में अपने प्रतिद्वंद्वी से आगे निकलने की होड़ में ये कंपनियां जनता को ‘जंक फूड’ की आदत ती नहीं डाल रही हैं? ऐसे उत्पादनों का सेवन करने से हमारी सेहत बेहतर होने की बजाय और खराब हो जाती है।

सबसे पहले बात करते हैं रोजमर्रा के खाने में इस्तेमाल होने वाली ऐसी वस्तु की जो आमतौर पर हर घर में पाई जाती है। आज हर घर में सुबह के नाश्ते में ‘ब्राऊन ब्रैड’ का चलन बढ़ गया है। विज्ञापनों के कारण इसे ‘व्हाइट ब्रैड’ का एक विकल्प कहा जाने लगा है। जैसा कि इसके नाम से ही जाना जाता है, यह ‘ब्राऊन’ है यानी कि यह मैदे से नहीं बल्कि आटे से बनी है। परंतु असल में आप यदि इसका पैकेट देखें तो इसमें आपको कभी भी 100 प्रतिशत आटा नहीं मिलेगा। इसमें आपको आटे के साथ-साथ काफी मात्रा में मैदा, चीनी, नमक, वैजीटेबल ऑयल और प्रिज्र्वेटिव भी मिलेंगे। यानी दावे से उलट यह आटा ब्रैड वास्तव में 100 प्रतिशत आटे से नहीं बनी।

मैदे और चीनी के नुक्सान तो सभी को पता हैं। यह आपके शरीर में वजन बढ़ाने का काम करते हैं। मैदा खाने से कब्ज की दिक्कत भी होती है। उसी तरह प्रिजर्वेटिव खाने से शरीर में कैंसर जैसे रोग होने का खतरा भी बढ़ जाता है तो फिर यह हमारे शरीर के लिए हैल्दी कैसे हुई? आजकल आपने यह भी देखा होगा कि कई उत्पादों पर ‘फैट फ्री या लो फैट’ का ठप्पा लगा होता है। ऐसे कई बिस्कुट, स्नैक्स और अन्य उत्पाद बाजार में हैं जो ‘फैट फ्री या लो फैट’ होने का दावा करते हैं।

‘फैट फ्री या लो फैट’ के लालच में हम इन उत्पादों के प्रति आकॢषत हो जाते हैं और इनके आदी हो जाते हैं। परंतु क्या आपको पता है कि ऐसे ज्यादातर उत्पादों में साधारण मात्रा से कहीं अधिक मात्रा में शूगर यानी चीनी का प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही इनमें ‘फैट’ का विकल्प देने के लिए कैमिकल द्वारा प्रोसैस किए गए तत्व भी डाले जाते हैं। इन कैमीकल तत्वों का हमारे शरीर पर बुरा असर पड़ता है। जहां तक हो सके हमें इन चीजों से बचना चाहिए।

आजकल के युवा वर्ग में एक नए पेय की मांग बढ़ती जा रही है और वो है ‘एनर्जी ड्रिंक’। आकर्षक विज्ञापनों की आड़ में युवाओं को ऐसे ‘एनर्जी ङ्क्षड्रक’ का आदी बनाया जा रहा है। कैफीन होने के कारण, इन्हें पीने से हमें कुछ क्षण के लिए ताजगी का एहसास होता है। अधिक मात्रा में प्रोटीन लेना भी हमारी सेहत के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। अधिक प्रोटीन केवल ज्यादा खेल-कूद करने वाले या वेट लिङ्क्षफ्टग करने वालों को किसी विशेषज्ञ की सलाह पर ही लेना चाहिए, आम इंसान को नहीं। कोरोना के डर से हम किसी भी बाजारू वस्तु का सेवन नहीं कर रहे थे, केवल घर का बना भोजन ही खा रहे थे।  हमें घर का बना पौष्टिक भोजन ही खाना चाहिए, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मायाजाल में नहीं फंसना चाहिए। -रजनीश कपूर

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