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दिल्ली में भाजपा की जीत के मायने

Edited By ,Updated: 15 Feb, 2025 05:12 AM

what does bjp s victory in delhi mean

दिल्ली में एग्जिट पोल के नतीजे सही साबित हुए हैं। बात यहां तक पहुंच गई कि अरविंद केजरीवाल के साथ ही मनीष सिसौदिया जैसे नेता चुनाव हार गए। यह जरूर रहा कि दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी अपनी सीट बचाने में कामयाब हो गईं। भारतीय जनता पार्टी ने शानदार जीत...

दिल्ली में एग्जिट पोल के नतीजे सही साबित हुए हैं। बात यहां तक पहुंच गई कि अरविंद केजरीवाल के साथ ही मनीष सिसौदिया जैसे नेता चुनाव हार गए। यह जरूर रहा कि दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी अपनी सीट बचाने में कामयाब हो गईं। भारतीय जनता पार्टी ने शानदार जीत हासिल की। अब 27 साल बाद दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने जा रही है। क्या दिल्ली में आम आदमी पार्टी की आम आदमी को लुभाने की रणनीति विफल हो गई है? या फिर आम आदमी को लुभाने की आम आदमी पार्टी की नीति को भारतीय जनता पार्टी ने हड़प लिया। आम आदमी पार्टी ने चुनाव से पहले दिल्ली की जनता से कई वायदे किए थे। लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने एक कदम आगे बढ़कर दिल्ली की जनता से इसी तरह के कई वायदे कर दिए। शराब घोटाले जैसे आरोपों के कारण पहले की अपेक्षा आम आदमी पार्टी की छवि जरूर खराब हुई। रही सही कसर पिछले 10 साल की एंटी इंकम्बैंसी ने पूरी कर दी।

शराब घोटाले के मामले में जमानत पर जेल से रिहा होने के बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि वह दिल्ली की कुर्सी पर तभी बैठेंगे जब चुनाव में जनता की अदालत उन्हें इस लायक समझेगी। लेकिन शायद जनता की अदालत ने उन्हें इस लायक नहीं समझा। हालांकि यह माना जाता है कि अरविंद केजरीवाल की सरकार ने दिल्ली में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर कार्य किया। चाहे मोहल्ला क्लीनिक हों या फिर दिल्ली के सरकारी स्कूलों की दशा सुधारना हो, अरविंद केजरीवाल ने इन मुद्दों पर निश्चित रूप से जनता का ध्यान अपनी तरफ खींचा। यह बात अलग है कि उनके विरोधी शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अरविंद केजरीवाल द्वारा किए गए कार्यों में भी समय-समय पर कई कमियां निकालते रहे। अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार करने और अपने घर को शीशमहल बनाने का आरोप भी खूब लगा। शीशमहल के मुद्दे पर तो ‘आप’ और भाजपा के बीच काफी जुबानी जंग हुई। अरविंद केजरीवाल ने भी प्रधानमंत्री के घर को राजमहल बनाने का आरोप लगाया। इस तरह शीशमहल और राजमहल के मुद्दे पर कई दिनों तक घमासान मचा रहा। 

कांग्रेस के चुनावी मैदान में कूदने के बाद तो माहौल और दिलचस्प हो गया। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने केजरीवाल पर जबरदस्त हमला बोला। भले ही दिल्ली के चुनाव में कांग्रेस को कुछ हाथ न लगा हो लेकिन वह केवल इस बात से ही संतुष्ट हो सकती है कि उसने दिल्ली से केजरीवाल की विदाई में अपनी भूमिका निभाई क्योंकि केजरीवाल ने काफी समय से दिल्ली में कांग्रेस के वोटों पर कब्जा कर रखा था। कांग्रेस को यह भी याद था कि उन्होंने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अन्ना हजारे के साथ मिल कर कैसे कांग्रेस के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन किया था। इस आंदोलन में आर.एस.एस. की क्या भूमिका रही थी, यह भी कांग्रेस अच्छी तरह जानती थी। हालांकि इस आंदोलन के बाद न ही तो अन्ना हजारे बोलते नजर आए और न ही इस आंदोलन में शामिल कई लोगों की भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में कोई आवाज सुनाई दी। 
जाहिर है इस आंदोलन का एक उद्देश्य कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाना भी था। इसलिए अब कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुद्दा बनाया। संदीप दीक्षित ने कैग की रिपोर्ट का हवाला देकर अरविंद केजरीवाल के स्वास्थ्य संबंधी दावों को भी नकारने का काम किया।  यह तो शायद उसे भी पता था लेकिन चुनावी समर में उतरकर अपने अस्तित्व को बचाने के लिए भी काम किया। इस चुनाव में दिल्ली की जनता ने यह भी महसूस किया कि अरविंद केजरीवाल कई मुद्दों पर काम नहीं कर पाए। केजरीवाल यह कहने लगते कि केन्द्र सरकार काम नहीं करने दे रही है। लोगों को यह महसूस हुआ कि केजरीवाल जो काम नहीं कर पाते हैं, वह काम केन्द्र सरकार पर डाल देते हैं।

वेतन आयोग और 12 लाख तक के वेतन पर कोई टैक्स नहीं जैसे फैसलों को लोगों ने पसंद किया और इसका असर चुनाव पर भी पड़ा। कुछ दिनों पहले तक भी ‘आप’ और भाजपा में कड़ी टक्कर मानी जा रही थी। लेकिन आखिरी कुछ दिनों में चुनाव पलट गया। भारतीय जनता पार्टी को मध्यम वर्ग का अच्छा खासा वोट मिला। मध्यम वर्ग ने 12 लाख तक के वेतन पर कोई टैक्स न लेने की घोषणा को काफी पसंद किया। कुल मिलाकर बात यह है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली का चुनाव हार चुकी है। अरविंद केजरीवाल तक अपनी सीट नहीं बचा पाए हैं। यह सही है कि राजनीति में कुछ भी स्थिर नहीं होता है। समय-समय पर बड़े-बड़े राजनेता चुनाव हारते रहे हैं। लेकिन राजनीति में अहंकार को दूर रखना चाहिए। 

अरविंद केजरीवाल पर यह आरोप बार-बार लगता रहा है कि वे दूसरे राजनेता को उस तरह स्थान नहीं देते हैं जिस तरह देना चाहिए। यानी आम आदमी पार्टी में आन्तरिक लोकतंत्र नहीं है। यही कारण है कि उनके कई पुराने साथी उनसे अलग हो चुके हैं। जिस पार्टी पर यह आरोप हो कि उसके अन्दर आंतरिक लोकतंत्र नहीं है आज उसी लोकतंत्र ने अरविंद केजरीवाल को नकार दिया। अरविंद केजरीवाल पर भारतीय जनता पार्टी की बी टीम होने का आरोप भी लगता रहा है। तो क्या ए टीम ने बी टीम को हरा दिया है। राजनीति में हार जीत तो लगी रहती है लेकिन असली यह है कि आपकी विचारधारा क्या है। आप किस विचारधारा पर चलते हैं और आप किस विचारधारा पर टिके रहते हैं। क्या अरविंद केजरीवाल की कोई विचारधारा दिखाई देती है।-रोहित कौशिक 
    

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