Edited By ,Updated: 25 Mar, 2025 06:02 AM

पिछले दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक किशोरी के मामले में विवादास्पद फैसला दिया। मामला नवम्बर 2021 में उत्तर प्रदेश के कासगंज शहर का है। लड़की की मां का कहना है कि शाम के वक्त वह अपनी 14 वर्षीय लड़की के साथ अपनी देवरानी के गांव से लौट रही थी। तभी...
पिछले दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक किशोरी के मामले में विवादास्पद फैसला दिया। मामला नवम्बर 2021 में उत्तर प्रदेश के कासगंज शहर का है। लड़की की मां का कहना है कि शाम के वक्त वह अपनी 14 वर्षीय लड़की के साथ अपनी देवरानी के गांव से लौट रही थी। तभी एक मोटरसाइकिल उनके पास आकर रुका, जिस पर 3 लड़के पवन, आकाश और अशोक बैठे हुए थे। एक लड़के ने मां से कहा कि वह लड़की को उसके साथ जाने दे। वह उसे सुरक्षित घर छोड़ देगा। मां ने उसकी बात पर विश्वास किया और बच्ची को उनके साथ जाने दिया। रास्ते में इन 3 लड़कों ने बच्ची के साथ अपराध को अंजाम दिया। उसके स्तन खींचे। उसका नाड़ा खींचकर तोड़ दिया और पुलिया के नीचे खींचकर ले जाने लगे। लड़की रोने लगी। तभी वहां से ट्रैक्टर पर गुजर रहे 2 लोगों ने लड़की का रोना सुना तो तीनों उन दोनों को तमंचा दिखाते हुए वहां से भाग गए। इन तीनों में मुख्य अपराधी पवन के पिता से जब लड़की की मां ने शिकायत की तो उन्होंने उसे धमकी दी।
इसके बाद लड़की की मां थाने पहुंची लेकिन वहां से भी निराशा हाथ लगी। तब यह मामला कासगंज की विशेष कोर्ट में पहुंचा जहां पवन और आकाश नामक लड़कों पर बलात्कार और पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया। इस मामले में उस दिन ट्रैक्टर पर आए दोनों लोग गवाह बने। तब अभियुक्तों ने इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। और फैसला देखिए कि जज साहब ने कहा कि इस मामले में अभियुक्त बलात्कार की कोशिश कर रहे थे, यह साबित नहीं होता। अदालत ने कहा कि बलात्कार करने की कोशिश और अपराध के बीच तैयारी के अंतर को सही तरीके से समझा जाना चाहिए। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत को यह निर्देश भी दिया कि अभियुक्तों के खिलाफ कपड़े उतारने के इरादे से हमला या बल प्रयोग और पॉक्सो के तहत गम्भीर यौन हमले के तहत मुकद्दमा चलाया जा सकता है।
यानी कि कल को कोई किसी लड़की को चलती गाड़ी, बस या सड़क से खींचकर ले जाए, उसके अंग- प्रत्यंग छुए , उसे किसी निर्जन स्थान पर ले जाए तो इन्हें बलात्कार की कोशिश नहीं माना जाना चाहिए । एक तरफ बिशाखा गाइडलाइंस के अनुसार लड़की को कोई अश्लील चित्र या कार्टून दिखाना अथवा उससे कोई भद्दा मजाक करना भी अपराध की श्रेणी में आता है। नए दुष्कर्म कानून के अनुसार लड़की या स्त्री को 14 सैकेंड घूरना तक अपराध है। ऐसे में इस नाबालिग लड़की के स्तनों को खींचना, उसका नाड़ा खोलना, उसे पुलिया के नीचे खींचकर ले जाने की कोशिश क्या किसी अच्छी मंशा से की जा रही थी? और क्यों की जा रही थी? एक तरफ लड़की को सुरक्षित घर छोडऩे का वायदा उसकी मां से किया गया था, मगर तीनों लड़कों ने लड़की को अकेली समझ उससे बदतमीजी की। आखिर लड़कियों को इस तरह के अपराधों का सामना क्यों करना पड़े? किसी की भी इतनी हिम्मत कैसे हो? कल को तो लोग सड़क-सड़क , मोहल्ले में ऐसा करने लगेंगे क्योंकि उन्हें मालूम होगा कि उच्च न्यायालय ने ऐसा फैसला पहले ही दिया हुआ है जहां लड़कियों से इस तरह का बर्ताव अपराध की श्रेणी में नहीं आता।
आखिर जज महोदय इस निर्णय पर पहुंचे कैसे। लड़की का रोना क्या कोई नाटक था या वह इस तरह के बर्ताव को पसंद कर रही थी इसलिए खुशी में रो रही थी। सोचिए कि अगर ट्रैक्टर पर सवार 2 लोग वहां न पहुंचे होते, तो शायद यह बच्ची सामूहिक दुष्कर्म का शिकार हो गई होती। क्या गुड टच और बैड टच के बारे में जज साहब को मालूम नहीं?क्या निर्भया से लेकर अब तक हमारी सोच कतई नहीं बदली? और यदि न्यायाधीश लोग ही इस तरह के फैसले देने लगेंगे तो यह उच्च न्यायालय की साख का सवाल भी है। यह एक पुरुषवादी सोच भी है जो मन में कहीं गहरी सोच में बैठी हुई है कि लड़की के साथ कुछ भी कर लो, वह हमारा क्या कर लेगी। इसीलिए पूछने वाले कई ज्ञानी यह भी कह सकते हैं कि आखिर लड़की की मां ने उसे उन लड़कों के साथ भेजा ही क्यों था।
यानी कि लड़कों के साथ भेजोगी तो ऐसा ही होगा। यह अधिकार आखिर लड़कों को कैसे मिला। बच्चियों के प्रति हर रोज होने वाले ऐसे अपराधों से क्या हमारी रूह जरा भी नहीं कांपती? या यह सोच वहीं की वहीं है कि लड़की अगर बाहर निकलेगी तो अपराध की शिकार होगी ही, इसलिए उसे घर से बाहर ही नहीं निकलना चाहिए या जन्म लेते ही खत्म कर दीजिए। न वे होंगी, न अपराध होंगे। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। और यह धरती अपराधों के भार से मुक्त हो जाएगी। लड़की को गलत मंशा से छूना , उसे निर्वस्त्र करना, खींचकर ले जाना कैसे अपराध नहीं है, यह समझ में नहीं आया। क्या अदालतों के सारे पुराने फैसले पलट दिए जाएंगे? कायदे से तो इन अपराधियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। राष्ट्रीय महिला आयोग और उत्तर प्रदेश महिला आयोग को इसका संज्ञान लेना चाहिए। केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री को भी चुप नहीं रहना चाहिए। मीडिया में जब से यह खबर छपी है तब से बहुत-सी महिला नेताओं ने इस पर नाराजगी भी प्रकट की है।-क्षमा शर्मा