Edited By ,Updated: 10 Feb, 2025 06:18 AM
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दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के बाद अब अरविंद केजरीवाल क्या करेंगे। कहने को तो कहा जा सकता है कि आप के पास अभी भी 43 फीसदी वोट हैं जो विपक्ष में रहते हुए भाजपा के पास कभी नहीं रहा। ‘आप’ के पास 22 विधायक हैं यानी 10 सालों में पहली बार मजबूत विपक्ष...
दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के बाद अब अरविंद केजरीवाल क्या करेंगे। कहने को तो कहा जा सकता है कि आप के पास अभी भी 43 फीसदी वोट हैं जो विपक्ष में रहते हुए भाजपा के पास कभी नहीं रहा। ‘आप’ के पास 22 विधायक हैं यानी 10 सालों में पहली बार मजबूत विपक्ष है। ‘आप’ का एम.सी.डी. पर कब्जा बना हुआ है। ‘आप’ के पास पंजाब में 3 चौथाई मतों से जीती हुई सरकार है। कहने को तो यह भी कहा जा सकता है कि केजरीवाल हौसले का नाम है जो 11 साल पहले धूल से खड़ा होकर मुख्यमंत्री पद पर पहुंच सकता है तो यह कहानी फिर क्यों दोहराई नहीं जा सकती। सारे तर्क अपनी जगह सही हैं लेकिन सबसे बड़ी बात है कि चुनावों में भले ही आप पार्टी निपटी नहीं हो लेकिन सिमटी जरूर है लेकिन केजरीवाल की व्यक्तिगत छवि निपटी है। इसके लिए केजरीवाल खुद जिम्मेदार हैं और खुद की जवाबदेही भी उन्हें ही तय करनी है। साफ बात है। केजरीवाल यह कहते हुए चुनावी जंग में उतरे थे कि अगर आप को लगे कि केजरीवाल ईमानदार है तो वोट देना वोट नहीं दिया जनता ने तो क्या समझा जाए कहने की जरूरत नहीं है।
राजनीति में न तो बड़बोलापन चलता है और न ही अहंकार और न ही अर्श पर पहुंचकर फर्श पर चलने वालों की उपेक्षा करना। राजस्थान के कांग्रेस नेता अशोक गहलोत शीला दीक्षित के समय दिल्ली के प्रभारी महासचिव बनाए गए थे। तब शीला दीक्षित की कार्यशैली से दिल्ली कांग्रेस के कुछ बड़े नेता नाराज बताए गए थे। तब प्रभारी महासचिव गहलोत ने कहावत के जरिए शीला दीक्षित तक संदेश पहुंचाया था। मियांजी घोड़ी चढ़े तो चढ़े पर नीचे वालों की सलाम तो कबूल करें। गहलोत ने करीब 20 साल पहले जो कहावत कही थी वह आज केजरीवाल पर पूरी तरह से लागू होती है। तो सवाल उठता है कि केजरीवाल अब आगे क्या करेंगे। उनके पास क्या विकल्प बचते हैं। घर में सियासी चोरी हुई है। भाजपा वाले खिड़की उखाड़ के अंदर पहुंचे तो कांग्रेस ने रोशनदान का सहारा लिया तो सियासी डाका पड़ चुका है। अब केजरीवाल (1). क्या क्या चोरी हुई का हिसाब किताब करें, (2). चोरी होने से जो बच गई उसको संभालने का यत्न करें, (3). सी.सी.टी.वी. कैमरों में चोरों की पहचान करें, (4). हाय चोरी हो गई का विलाप करें। साफ है कि केजरीवाल भी जानते हैं कि क्या-क्या चोरी हो चुका है। वह यह भी जानते हैं कि चोरी किसने की। विलाप करने का कोई तुक नहीं है क्योंकि रुदाली में जनता शामिल होने वाली नहीं है। तो एकमात्र विकल्प यही बनता है बचा खुचा घर संभाला जाए।
22 विधायकों को भाजपा के संभावित ऑपरेशन लोटस से बचाना है। एम.सी.डी. के मेयर पद पर भाजपा की नजर है और उसे जीतने के बाद एम.सी.डी. पर ही सियासी डाका डाला जा सकता है क्योंकि स्थानीय निकाय चुनावों में दल बदल कानून लागू नहीं होता है। लिहाजा इस मोर्चे पर केजरीवाल को लगना होगा। वैसे तो अच्छा होता अगर केजरीवाल खुद का चुनाव जीत जाते ऐसे में वह विधानसभा में विपक्ष के नेता बनते और नई भाजपा सरकार की रोज घेराबंदी करते। लेकिन अब ऐसा होने नहीं जा रहा है। भाजपा सरकार केजरीवाल सरकार के समय लिए गए फैसलों की समीक्षा करेगी। मोहल्ला क्लिनिक में दवा खरीद में घोटाले का आरोप पहले ही लगाया जा चुका है। भाजपा आयुष्मान योजना लागू करेगी और मोहल्ला क्लिनिक के मौजूदा स्वरूप में बदलाव होना तय है। यहां केजरीवाल को जनता के बीच उतरने का मौका मिल सकता है। सरकारी स्कूलों में मनीष सिसोदिया की जबरदस्त छाप है। जाहिर है कि भाजपा इस छाप को धूमिल करना चाहेगी। अगर ऐसा होता है तो मनीष सिसोदिया के पास मौका होगा।
भाजपा जरूर चाहेगी कि अधमरी ‘आप’ के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी जाए। इसके लिए जांच एजैंसियों को सक्रिय किया जाना भी तय है। शराब कांड पर आरोप तय करने और मुकद्दमा शुरू करने में तेजी देखी जा सकती है। नया मुख्यमंत्री क्या शीश महल में रहने लगेगा या भाजपा इस मसले को आगे भी गरमाए रखेगी यह भी देखना दिलचस्प रहेगा। यानी कुल मिलाकर केजरीवाल को 2 मोर्चों पर एक साथ लडऩा होगा। विधायकों और पार्षदों को बचाना, अदालती दांव पेचों से खुद को बचाना। इसके लिए कार्यकत्र्ताओं का साथ जरूरी होगा जिनके समर्पण में पिछले 10 सालों में रिसाव ही देखा गया है।
केजरीवाल के जेल जाने पर जितनी संख्या में आप के समर्थक सड़क पर उतरे वह खतरे की पहली घंटी का संकेत दे गया था। लेकिन तब केजरीवाल ने शुतुरमुर्ग की तरह सिर रेत में छुपा लिया था और तूफान गुजर जाने का इंतजार करने लगे थे। तो केजरीवाल क्या करेंगे या क्या कर सकते हैं :
(1). खुद को दिल्ली की राजनीति तक सीमित कर सकते हैं। जहां बीज डाला गया था और जहां पौधा सींचा गया था वहीं पौधा मुरझा गया तो देश में क्या खाक सियासत करेंगे।
(2). केजरीवाल चाहें तो देश भर में मोदी और राहुल गांधी को गरियाते हुए घूम सकते हैं। इसे खिसियानी बिल्ली का खंभा नोंचना ही कहा जाएगा।
(3). केजरीवाल कांग्रेस के इंडिया गठबंधन की धूप छांव में अगले कुछ महीने चुपचाप समय काटने और उचित समय के इंतजार की रणनीति अपना सकते हैं।
(4). केजरीवाल पंजाब के रास्ते राज्यसभा पहुंच कर आप संसदीय दल के नेता बन कर अपने वजूद को चमकाने की कोशिश कर सकते हैं।-विजय विद्रोही