mahakumb

कब सुधरेंगी स्वास्थ्य सेवाएं?

Edited By ,Updated: 03 Mar, 2025 05:42 AM

when will health services improve

आजादी के बाद नियोजित कार्यक्रम के तहत देश भर में जो कार्यक्रम शुरू किए गए थे, उनमें ग्रामीण इलाकों के लिए स्वास्थ्य परियोजनाएं भी थीं। मकसद था देश के देहातों में स्वास्थ्य सेवाओं का जाल बिछाना ताकि गरीब लोगों की सेहत सुधर सके। आज 75 वर्ष बाद भी...

आजादी के बाद नियोजित कार्यक्रम के तहत देश भर में जो कार्यक्रम शुरू किए गए थे, उनमें ग्रामीण इलाकों के लिए स्वास्थ्य परियोजनाएं भी थीं। मकसद था देश के देहातों में स्वास्थ्य सेवाओं का जाल बिछाना ताकि गरीब लोगों की सेहत सुधर सके।आज 75 वर्ष बाद भी हालत यह है कि गरीब की सेहत सुधरना तो दूर स्वास्थ्य सेवाओं की ही सेहत खराब दिखाई देती है। विभिन्न दलों की सरकारों के शासन के बावजूद नए-नए नारों से, नए-नए वायदों से, नई-नई योजनाओं के सपने दिखाकर देश का पैसा बर्बाद किया जाता रहा है।

स्वास्थ्य आदमी की बुनियादी जरूरत है। इसलिए उसकी ङ्क्षचता जितनी आम आदमी को होती है उतनी ही सरकार को भी होनी चाहिए। जाहिर है कि सभी चालू सरकारी योजनाओं की गुणवत्ता में सुधार आना चाहिए। नियोजित विकास के तहत देश के कई प्रदेशों के देहातों में सामुदायिक विकास खंडों में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना की गई। मूल सोच यह थी कि ग्रामवासियों के लिए चिकित्सा, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण सेवाएं एकीकृत रूप में उपलब्ध कराई जाएंगी। जिनमें उपचार, वातावरण स्वच्छता (सुरक्षित पेय जय आपूर्ति व कूड़ा-मलमूत्र निपटाना), मातृ शिशु स्वास्थ्य, विद्यालय स्वास्थ्य, संक्रामक रोगों की रोकथाम, स्वास्थ्य शिक्षा व जन्म-मृत्यु आंकड़ों का संकलन जैसी सेवाएं शामिल थीं। 

दूसरी पंचवर्षीय योजना की समाप्ति पर देश भर में हजारों प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र स्थापित हो चुके थे। मैदानी क्षेत्रों में 5000 व पर्वतीय क्षेत्रों में 3000 की आबादी पर एक मातृ शिशु स्वास्थ्य उप केन्द्र भी खोले गए। इन उप केन्द्रों पर प्रसवपूर्व, प्रसव के दौरान व प्रसवोपरांत स्वास्थ्य सेवाओं के साथ प्रतिरक्षण, निर्जलीकरण उपचार के लिए घोल वितरण और खून की कमी दूर करने के लिए आयरन या फोलिक एसिड की गोलियां बांटना व अंधेपन व नेत्र रोग से बचाव हेतु विटामिन घोल बांटना शामिल था। कालांतर में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में परिवर्तित होना था। इसलिए पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान इन केन्द्रों में जहां शल्य क्रिया, बाल रोग विशेषज्ञ, महिला रोग विशेषज्ञ व पैथोलॉजी सेवाएं और बढ़ाई गईं वहीं प्रत्येक केंद्र में मरीजों के लिए उपलब्ध बिस्तरों की संख्या 6 से 30 कर दी गई। जाहिर है इस पूरे तामझाम पर जनता का अरबों रुपया खर्च हुआ। पर क्या जो कुछ कागजों पर दिखाया गया, वह जमीन पर भी हो रहा है? 

देश के किसी भी गांव में जाकर असलियत जानी जा सकती है। इतना ही नहीं आबादी के तेजी से बढ़ते आकार के बावजूद देश भर में जनसंख्या पर आधारित सेवा केन्द्रों व कर्मचारियों को बढ़ाने का काम कई वर्षों से ठप्प पड़ा है। ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा केन्द्रों के हाल इतने बुरे हैं कि सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में कोई भी विशेषज्ञ अपनी नियुक्ति नहीं चाहता। प्रशिक्षण केन्द्रों का पूरा स्टाफ व साज सज्जा दशकों से बेकार पड़ी है। इस तरह ऐसे सेवा केन्द्र चिकित्सकीय व स्वास्थ्य सेवाएं तो न मुहैया करा पाए, अलबत्ता नसबन्दी कराने के केन्द्र जरूर हो गए। 1970-71 से 1991-92 तक नसबंदी के अलावा यहां कुछ भी नहीं हुआ। 20 सूत्रीय कार्यक्रमों के दौरान जो फर्जी नसबंदी का दौर चला था, वह अभी थमा नहीं है।

नसबंदी की उपलब्धियां फर्जी तौर पर बढ़ा-चढ़ाकर बताई जाती रही हैं और इन्हीं ‘उपलब्धियों’ की एवज में नौकरशाह करोड़ों रुपए के पुरस्कार लेते रहे। इस तरह देश की बेबस जनता पर दोहरी मार पड़ी है। साल 2000 में विश्व बैंक द्वारा ‘भारत जनसंख्या परियोजना’ लागू हुई। योजना का मूल उद्देश्य सेवा संगठनों को मजबूत करना था। फलत: एक ओर नव निर्माण शुरू हुआ दूसरी ओर नए चिकित्सकीय सेवा केन्द्र खोले गए। देश में कई उपकेन्द्र गांव से दूर बनाए गए, जो कभी इस्तेमाल नहीं हुए। आज ये केंद्र वीराने में खंडहर बन चुके हैं। ऐसी योजनाओं के नाम पर तमाम ब्यूरोक्रेट-टैक्नोक्रेट अमरीका, थाईलैंड, इंगलैंड आदि से प्रशिक्षण लेकर आए। पर जहां से प्रशिक्षण लेने गए थे, वहां वापिस लौटकर नहीं आए। उन्हें उनकी नियुक्ति दूसरी जगह कर दी गई, आखिर क्यों? 

जब यही करना था तो लाखों रुपया प्रशिक्षण पर बर्बाद करने की क्या जरूरत थी? इसी तरह सूचना शिक्षा संचार के नाम पर प्राइवेट छपाई भी लाखों रुपए खर्च करके करवाई गई। जनचेतना फैलाने के नाम पर छपवाई गई यह स्टेशनरी कभी काम नहीं आई। न जाने कितने फार्म छपे व रद्दी में बिक गए। इस पूरे कार्यक्रम के नतीजे असंतोषजनक थे। ऐसा विश्व बैंक द्वारा कराए गए मूल्यांकन से पता चला। नतीजतन देश के कई प्रदेशों में ‘भारत जनसंख्या परियोजना 3,4,5’ नहीं दी गई। पर ‘भारत जनसंख्या परियोजना-6’ इनमें से कई प्रदेशों को मिल गई। जिसका मूल उद्देश्य श्रम संसाधनों का विकास करना था। इस योजना के तहत ऊपर के अधिकारी तो विदेशी सैरगाहों में घूम आए पर नीचे का स्टाफ भी पीछे नहीं रहा। वे भी अहमदाबाद, गांधीग्राम, मुंबई में सैर सपाटे करता रहा। 

बढ़-चढ़ कर दावा किया जाता है कि चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में हुई खोजों व शोध के कारण उपचार के क्षेत्र में अत्यधिक सुविधाएं आज सुलभ हैं। हृदय के साथ ही अन्य अंगों का प्रत्यारोपण भी आज हो रहा है। परन्तु वैश्वीकरण व उदारीकरण के फलस्वरूप इस दिशा में जितना भी विकास हुआ व सेवा सुविधाएं उपलब्ध हुईं उन तक पहुंच समाज के धनाढ्य व नव-धनाढ्य वर्ग की ही है। स्वास्थ्य के मामले में भारत का पारंपरिक ज्ञान और लोकजीवन का अनुभव इतना समृद्ध है कि हमें बड़े ढांचों, बड़े अस्पतालों और विदेशी अनुदानों की जरूरत नहीं है, जरूरत है अपनी क्षमता और अपने संसाधनों के सही इस्तेमाल की।-विनीत नारायण
 

Related Story

    Trending Topics

    Afghanistan

    134/10

    20.0

    India

    181/8

    20.0

    India win by 47 runs

    RR 6.70
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!