कम्युनिस्ट पार्टी में जहां खूबियां हैं, वहीं खामियां भी

Edited By ,Updated: 30 Dec, 2024 05:46 AM

while the communist party has its own merits it also has its own demerits

वर्ष 2008 से अमरीका में शुरू हुआ आॢथक संकट यद्यपि दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है, जिसने स्पष्ट रूप से सिद्ध कर दिया है कि पूंजीवादी व्यवस्था मानवता का कल्याण करने में पूर्णत: असमर्थ है। वर्तमान संकट शुरू होने के समय ईसाई धर्म के सर्वोच्च धार्मिक नेता...

वर्ष 2008 से अमरीका में शुरू हुआ आर्थिक संकट यद्यपि दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है, जिसने स्पष्ट रूप से सिद्ध कर दिया है कि पूंजीवादी व्यवस्था मानवता का कल्याण करने में पूर्णत: असमर्थ है। वर्तमान संकट शुरू होने के समय ईसाई धर्म के सर्वोच्च धार्मिक नेता पोप ने कहा था, ‘‘जर्मनी में जन्मे एक महान व्यक्ति कार्ल माक्र्स ने हमें पूंजीवादी व्यवस्था में होने वाले आर्थिक धमाकों के बारे में पहले से ही सचेत कर दिया था परन्तु हम उसकी भविष्यवाणियों की ओर ध्यान नहीं दे सके।’’ कार्ल माक्र्स की भविष्यवाणी का सार यह है कि पूंजीवादी व्यवस्था समाज के प्रति अपने दायित्वों को पूरा करने के मामले में विफल रही है जबकि समाजवाद यानी समानताओं वाले समाज में इन कार्यों को पूरा करने की अपरिहार्य संभावनाएं हैं। 

भारत में 1947 के बाद से विभिन्न रंगों की सरकारों के प्रदर्शन और आम लोगों की बढ़ती कठिनाइयों को देखते हुए बुद्धिमान नागरिक अक्सर सवाल करते हैं कि क्या व्यावहारिक दृष्टिकोण से पूरी तरह से जनसमर्थक होने के बावजूद वामपंथी विचारधारा अभी भी प्रासंगिक है? वर्तमान समय में कम्युनिस्ट पार्टियां कमजोर क्यों होती जा रही हैं। समाज में संघर्षशील होते हुए भी वे लुटे-पिटे लोगों के बीच अपना प्रभाव एवं जनाधार क्यों नहीं बढ़ा सकीं। बुद्धिमान लोगों का मानना है कि वामपंथी दलों की ताकत कम से कम इतनी तो होनी ही चाहिए, जो उन्हें वर्तमान सरकारों की जनविरोधी नीतियों और समाज को बांटने वाले साम्प्रदायिक विचारों का विरोध करने में सक्षम बना सके।

वामपंथी ताकतों के बारे में कोई संदेह नहीं है। सही सोच रखने वाले लोगों विशेषकर श्रमिकों, किसानों और मेहनतकश लोगों के दिलों में वाम आंदोलन को मजबूत देखने की प्रबल इच्छा दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। वामदलों ने अपनी मानवतावादी विचारधारा, स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए गौरवपूर्ण बलिदानों, श्रमिकों, किसानों, भूमिहीन मजदूरों सहित समाज के हर पीड़ित वर्ग की समस्याओं को हल करने और उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए जन संघर्षों के रूप में सबसे अधिक योगदान दिया है। 

राजनीति को सत्ता का सुख भोगने और भ्रष्टाचार तथा लूटपाट के माध्यम से अकूत धन संचय करने का हथियार मानने वाले राजनेताओं के एकदम विपरीत कम्युनिस्टों के लिए ‘राजनीति’ जनसेवा का सर्वोत्तम हथियार है, जो पूरे समाज को सभी कठिनाइयों से मुक्ति दिला सकता है। राजनीतिक पैंतरेबाजी में कम्युनिस्टों ने भी कई गलतियां की हैं। लेकिन ऐसी अधिकांश चूकें किसी निजी स्वार्थ से प्रेरित नहीं बल्कि समय की परिस्थितियों का सही आकलन न कर पाने या आत्ममंथन और गलत निर्णय के कारण होती हैं। इन सभी कमियों के बावजूद भारत की राजनीति में कम्युनिस्टों की एक विशिष्ट पहचान आज भी अवश्य बनी हुई है। 

कम्युनिस्ट पार्टियों को सार्वजनिक क्षेत्र का मूल्यांकन करते समय एक बात अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए कि शासक वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दल वर्तमान आर्थिक व्यवस्था के ढांचे के भीतर ही राजनीति करते हैं। आर्थिक नीतियों के मामले में इनमें कोई बुनियादी अंतर नहीं है। इसलिए कुछ बिंदुओं पर मतभेद होने के बावजूद शासन चलाने का तरीका करीब-करीब एक जैसा है। इसके विपरीत कम्युनिस्ट वर्तमान  ढांचे के संवैधानिक ढांचे के भीतर रहते हुए भी यथासंभव लोगों के कल्याण की संभावनाएं तलाशते रहते हैं लेकिन अंत में वे मौजूदा व्यवस्था को मौलिक रूप से बदल देते हैं और एक नई राजनीतिक-आर्थिक व्यवस्था का निर्माण करते हैं। इसलिए अन्य राजनीतिक दलों की तुलना में कम्युनिस्टों के लिए आम जनता को वैचारिक रूप से सहमत कर संगठित करना कठिन कार्य है।

‘राजसत्ता’ भी अन्य दलों की तुलना में वामपंथियों के साथ अधिक शत्रुतापूर्ण व्यवहार करती है। कम्युनिस्ट आंदोलन के विस्तार में एक बड़ी बाधा उसका विभिन्न गुटों में बंटना है। नि:संदेह इन विभाजनों के पीछे कई और वैध राजनीतिक, वैचारिक और संगठनात्मक कारण रहे हैं लेकिन वामपंथी आंदोलन का समर्थन करने वाले आम लोग इन कारणों से काफी हद तक अनभिज्ञ हैं।  इसका खमियाजा उन्हें कदम-कदम पर भुगतना पड़ रहा है। जहां प्रत्येक कम्युनिस्ट पार्टी या गुट की अपनी-अपनी उपलब्धियां और खूबियां हैं, वहीं उन सभी की कुछ कमियां और खामियां भी हैं। ऐतिहासिक अनुभवों के आलोक में तथा कार्यान्वयन समिति की संयुक्त बैठकों एवं चर्चाओं के माध्यम से इन मतभेदों को दूर करने अथवा कम करने के पर्याप्त प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। 

कुछ कम्युनिस्ट नेताओं और संगठनों को अहंकार या अंत:मूर्खता का शिकार होकर खुद को सच्चा या दूसरों से श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश करते देखना भी आम बात है जिस देश में सामाजिक परिवर्तन का झंडा फहराना है, उस क्षेत्र या समाज की आम जनता को तैयार करने के लिए नायकों, विचारकों, समाज सुधारकों और अन्य महापुरुषों की शिक्षाओं और उपदेशों से प्रेरणा लेनी होगी। महिलाओं के प्रति जातिवाद, उत्पीडऩ और भेदभाव जैसी क्रूर प्रथाएं और उनकी अनोखी कठिनाइयों को नजरअंदाज करना भी वामपंथी आंदोलन की एक बड़ी कमी रही है। कम्युनिस्ट कार्यकत्र्ताओं की भावनाओं के अनुसार यदि वामपंथी दल देश में मजबूत होना चाहता है तो उसे व्यक्तिगत अहंकार और ‘केवल मैं ही अच्छा हूं’ की घातक अवधारणा को त्यागना होगा और मतभेद के सवालों को किनारे रख कर स्वीकार्य मुद्दों पर एकजुट होना होगा।-मंगत राम पासला

Related Story

    Trending Topics

    Afghanistan

    134/10

    20.0

    India

    181/8

    20.0

    India win by 47 runs

    RR 6.70
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!