mahakumb
budget

बाढ़ के पानी का प्रबंधन कौन करे

Edited By ,Updated: 30 Jul, 2024 05:24 AM

who should manage flood water

दो -तीन दिन पहले की बात है। एक स्थान से गुजर रही थी, तो वहां एक बड़ा होर्डिंग लगा देखा। जिस पर लिखा था कि वर्षा जल की एक-एक बूंद बचाना जरूरी है। ऐसे विज्ञापन अक्सर ही नजर आते हैं। अपनी मूल प्रतिज्ञा में यह बात बहुत अच्छी भी लगती है।

दो -तीन दिन पहले की बात है। एक स्थान से गुजर रही थी, तो वहां एक बड़ा होर्डिंग लगा देखा। जिस पर लिखा था कि वर्षा जल की एक-एक बूंद बचाना जरूरी है। ऐसे विज्ञापन अक्सर ही नजर आते हैं। अपनी मूल प्रतिज्ञा में यह बात बहुत अच्छी भी लगती है। वैसे भी अपने यहां कहावत है कि बूंद-बूंद से घट भरे। दशकों से यह घोषणा भी की जाती रही है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा। भारत में जल संचयन की विविध तकनीकें पहले से ही मौजूद हैं। राजस्थान जहां सबसे कम बारिश होती है वहां की जल संचयन की प्रविधियों के बारे में मशहूर पर्यावरणविद् स्वर्गीय अनुपम मिश्र ने 2 अद्भुत पुस्तकें लिखी थीं। ‘आज भी खरे हैं तालाब’ और ‘राजस्थान की रजत बूंदें’। अनेक संस्थाएं भी पानी बचाने की तमाम विधियों पर काम करती हैं।

बुंदेलखंड में पानी बचाने के लिए खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़ जैसे नारों का बोलबाला है। पहाड़ों में भी पानी के संचयन की अनेक तरकीबें मौजूद रही हैं। मगर अफसोस की बात है कि ये सब तकनीकें तथाकथित विकास की भेंट चढ़ चुकी हैं। जिन नदियों को हम देवी मानते हैं, पूजते हैं, उन्हें इस कदर प्रदूषण झेलना पड़ रहा है कि बहुत-सी नदियों का पानी ई-लैबल तक का नहीं रहा है। यानी कि पीने की बात छोडि़ए वह जानवरों को नहलाने तक के लिए अनुपयोगी है। इनमें गंगा और यमुना जैसी नदियां भी शामिल हैं। खैर, एक तरफ बूंद-बूंद जल बचाने की बातें हैं तो दूसरी तरफ  हम देख रहे हैं कि इन दिनों देश के अधिकांश प्रदेश बाढ़ में डूबे हैं। लोगों के घरों, दुकानों, स्कूलों, अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों तथा हवाई अड्डों पर पानी भरा है। फसलें नष्ट हो गई हैं। लोग अपने घर-बार छोड़कर भाग रहे हैं। 

घर में तबाही देखें कि अपनी जान बचाएं।  नदियां, झरने सब उफन रहे हैं। कहीं घर धराशायी हो रहे हैं तो कहीं पुल भरभराकर टूट रहे हैं। मवेशी बहे जा रहे हैं। सड़कें पानी से भरी हैं। लोग जहां हैं, वहीं फंसे हैं। पता नहीं इनमें से कितने बीमार भी होंगे, मगर आने-जाने के रास्ते हों तब तो अस्पताल तक पहुंचें। अस्पताल पहुंच भी जाएं तो क्या पता कि अस्पताल भी पानी में डूबा हो। एक लड़के ने डूबते बछड़े को अपनी जान पर खेलकर बचाया है। इसी तरह एक मुसलमान व्यक्ति ने 6 कांवडिय़ों को अपनी परवाह न करके बाहर निकाला है। बाढ़ का यह कहर इस बार की तो बात नहीं है। हर बार हम ऐसे ही दृश्य देखते हैं। भरे पानी में करंट आने से कइयों की मृत्यु की बातें भी सुनते हैं। लेकिन मौसम बदलता है, तो बाढ़ और नदियों, झरनों के उग्र रूप भी भुला दिए जाते हैं, यह सोचकर कि अगली बार जब कुछ होगा तब देखेंगे और अगली बार पिछली बार से भी भयानक मंजर देखने को मिलते हैं। क्या ऐसा असंभव है कि इतना बड़ा यह देश अपने अतिरिक्त पानी का प्रबंधन न कर सके। बाढ़ के इस पानी के संचयन के लिए ऐसे प्रबंध क्यों नहीं किए जाते कि अतिरिक्त पानी जैसे ही नदियों में आए वह तबाही मचाने के मुकाबले कहीं इकट्ठा किया जा सके। 

इस पानी के कारण हमारा घटता भूजल बढ़ सकता है। नदियां सूखने से बच सकती हैं। जो मीठा पानी समुद्र में मिलकर खारा बन जाता है और पीने के लायक नहीं रहता, उसे बचाकर न केवल मनुष्यों बल्कि पशु-पक्षियों यहां तक कि फसलों की प्यास बुझाई जा सकती है। सूखे से निपटा जा सकता है। यह देखकर क्या आश्चर्य नहीं होता कि कोई भी चुनाव पानी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर नहीं लड़ा जाता। चुनावों में अक्सर लोगों से जुड़े मसलों के मुकाबले सनसनीखेज मुद्दे उठाए जाते हैं जो लोगों को उद्वेलित कर सकें और चुनाव जिता सकें। पानी का इस्तेमाल बढ़ती तकनीक और बढ़ती आबादी के कारण लगातार बढ़ रहा है, मगर उसे बचाएं कैसे,  प्रदूषण मुक्त कैसे करें, इसका कोई हल दिखाई नहीं देता। यदि हर शहर अपने  अतिरिक्त पानी को बचाए तो पानी की कमी से सहज ही मुक्त हुआ जा सकता है। चेन्नई को जीरो पानी वाला शहर घोषित किया जा चुका है । बहुत से शहर इस कतार में हैं। गांवों तक में भू-जल का स्तर 400 मीटर तक पहुंच गया है।-क्षमा शर्मा
 

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!