Edited By ,Updated: 28 Dec, 2024 04:47 AM
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प्रत्येक वर्ष बहुत कुछ छोड़कर जाता है जो आने वाले वर्ष के लिए महत्वपूर्ण तो होता ही है साथ में चेतावनी भी कि यदि जो भूलें हुई हैं वह दोहराई गईं तो कीमत चुकानी होगी और जो श्रेष्ठ तथा जनहित के काम हुए, वे आगे जारी न रहे तो दुष्परिणाम भुगतने होंगे। यह...
प्रत्येक वर्ष बहुत कुछ छोड़कर जाता है जो आने वाले वर्ष के लिए महत्वपूर्ण तो होता ही है साथ में चेतावनी भी कि यदि जो भूलें हुई हैं वह दोहराई गईं तो कीमत चुकानी होगी और जो श्रेष्ठ तथा जनहित के काम हुए, वे आगे जारी न रहे तो दुष्परिणाम भुगतने होंगे। यह व्यक्ति, समाज, देश यानी सरकार सब पर समान रूप से लागू होता है।
लेखा जोखा : इस वर्ष का आरंभ भव्य राम मंदिर से हुआ और अंत इस बहस से हो रहा है कि राम आज कितने प्रासंगिक हैं। संविधान और उसके निर्माताओं को लेकर वाद विवाद ही नहीं, संसद में मारपीट और धक्का मुक्की तक की नौबत आ गई। जनमानस लक्ष्मण के कार्टून की तरह बस ताक रहा है कि यह दिन भी देखना पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि 28 दिसंबर को ही सन 1885 में इंडियन नैशनल कांग्रेस की स्थापना के लिए तब बंबई में अधिवेशन हुआ था और गुलाम भारत को एक नई ज्योति दिखाई दी थी कि वह स्वतंत्रता की उम्मीद रख सकता है। यह राष्ट्रीय दल आज किस अवस्था में है, यह सभी जानते हैं और इस बारे में थोड़ा कहा भी काफी समझा देता है। इस वर्ष देश में जैसे चुनावों की बहार ही छाई रही।
लोकसभा और अनेक राज्यों के चुनाव संपन्न हुए। 2014 में एक विकल्प के रूप में उभरी भारतीय जनता पार्टी अपना वर्चस्व बनाए हुए है। शेष सभी दल ‘हम भी दौड़ में हैं’ की तर्ज पर जहां तहां जुगनूं की तरह चमक दिखाते रहते हैं। वे कसमसाते रहते हैं कि कैसे इस मदमस्त हाथी की सधी चाल को रोका जाए। स्थिति यह है कि गजराज भूल रहे हैं कि एक चींटी उन्हें धूल चटा सकती है। सत्ता का आनंद लेने में कोई बुराई नहीं लेकिन जब यह सिर चढ़कर बोलने लगे तब पतन होना निश्चित है। सत्ताधारी चेत जाएं तो ठीक वरना नियति किसी को बख्शती नहीं।
एक देश एक चुनाव की मीमांसा के लिए संसदीय समिति बना दी अन्यथा अधिकतर बिल तो बिना चर्चा के पास कर लिए जाने की परंपरा बन रही थी। विपक्ष पूरा जोर लगाता रहा कि संसद की कार्रवाई चलने ही न दी जाए। भारत के इतिहास में शामिल इन पन्नों से अगली पीढ़ी क्या सीखेगी, यह सोचना है! अटल बिहारी वाजपेयी की इस वर्ष सौंवीं जयंती थी। वे ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनकी कथनी विज्ञानी सोच पर आधारित थी और करनी ऐसी कि विश्व में अमरीका जैसे सूरमा दांत किटकिटाने के अतिरिक्त कुछ न कर सकें।
संयुक्त राष्ट्र संघ में उदाहरण बना भाषण हो, केवल एक वोट की कमी से सरकार का त्याग कर देना हो या दुनिया भर की सैटेलाइट क्षमता को चकमा देकर आणविक परमाणु हथियार से देश को सशक्त करना हो, हमेशा याद रहेंगे। उनके संपर्क में आने, उनसे बातचीत करने और उनका मुक्त अट्टहास सुनने का अवसर जिन्हें मिला, वे धन्य हैं। अटल जैसा न भूतो न भविष्यति। भारत की नदियों को जोड़ कर उनके जल का इस्तेमाल सिंचाई, अतिवृष्टि और सूखाग्रस्त क्षेत्रों को हरा भरा बनाने की कल्पना का जन्म अटल जी के ही मन में हो सकता था। उनके स्वप्न को धराशायी करने का काम कांग्रेस सरकार ने किया। पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह जो नरसिम्हा राव की खोज थे और जिन्हें अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने का श्रेय जाता है, वे अपने कार्यकाल में ज्यादा कुछ न कर सके। वे भी अब 92 वर्ष की आयु में दिवंगत हो चुके हैं। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
यह वर्ष सिने संसार के शोमैन और निर्माता, निर्देशक, अभिनेता राज कपूर की सौंवीं वर्षगांठ मनाने के साथ समाप्त हो रहा है। वे अकेले ऐसे कलाकार थे जो उस जमाने में रूस जैसे शक्तिशाली देश में अपनी कला का लोहा मनवा चुके थे। दो देश कैसे एक-दूसरे के साथ आत्मीय संबंध बना सकते हैं, इसका उदाहरण राज कपूर के अतिरिक्त किसी और का नहीं हो सकता। भारतीय सिनेमा को नई पहचान देने के प्रयास में सफल और फिल्मों के माध्यम से साधारण व्यक्ति की व्यथा को समझने में उसका उपयोग करने में कुशल श्याम बेनेगल का भी निधन हुआ। वे 91 वर्ष के हुए थे और कुछ ही दिन पूर्व अपनी वर्षगांठ मनाई थी। बहुत सरल, कम बोलने वाले और थोड़े से शब्दों में अपनी बात कहने में माहिर थे। इस वर्ष उद्योगपतियों में प्रमुख रतन टाटा भी नहीं रहे, वे भारत रत्न आधिकारिक सम्मान को गौरव प्रदान करने वाले व्यक्ति थे। उन्हें जल्दी मिलेगा, यह कामना है। उनकी बनाई कंपनियों ने लगभग प्रत्येक क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का मान-सम्मान बढ़ाया है। नए उद्यमी उन्हें अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं और उनकी दूरदृष्टि और प्रबंधन योग्यता का वरण करना चाहते हैं।
2025 से क्या उम्मीद करें : उम्मीद की जा सकती है कि प्रत्येक भारतीय आधुनिक टैक्नोलॉजी अपनाने और बदलते परिवेश में स्वयं को ढाल पाएगा। गाड़ी स्टेशन से छूट गई तो उसमें सवार होने की नौबत कब आएगी, कुछ नहीं कहा जा सकता। दूसरा सवाल यह हल होना चाहिए कि जल और वायु प्रदूषण से निजात कैसे मिलेगी क्योंकि इसने जीवन नर्क बना दिया है। मृत्यु निश्चित है लेकिन जीते हुए मरने जैसा अनुभव हो रहा है। तीसरी आशा यह है कि वेतनभोगी कर्मचारी, किसान, मजदूर और अपना स्वयं का व्यवसाय करने की जुगाड़ में लगे युवाओं को अपने जीवन में एहसास हो कि जिस देश में वह रहते हैं उसका नाम भारत वर्ष है।-पूरन चंद सरीन