आखिर कौन सुनिश्चित करेगा त्वरित न्याय

Edited By ,Updated: 18 Nov, 2024 05:32 AM

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सुप्रीमकोर्ट ने आधिकारिक तौर पर चल रही ‘बुलडोजर संस्कृति’ पर रोक लगा दी है। सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि राज्य ‘शक्ति ही अधिकार है’ के खुलेआम प्रदर्शन में लिप्त हैं। वे रातों-रात बेघर और बेसहारा हो चुके परिवारों के बारे में कुछ भी सोचे बिना ऐसा करते हैं।

सुप्रीमकोर्ट ने आधिकारिक तौर पर चल रही ‘बुलडोजर संस्कृति’ पर रोक लगा दी है। सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि राज्य ‘शक्ति ही अधिकार है’ के खुलेआम प्रदर्शन में लिप्त हैं। वे रातों-रात बेघर और बेसहारा हो चुके परिवारों के बारे में कुछ भी सोचे बिना ऐसा करते हैं। सुप्रीमकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि उचित प्रक्रिया अपनाए बिना नागरिकों की संपत्ति को ध्वस्त करना कानून के नियमों के विपरीत है। जस्टिस बी.आर. गवई और के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए कुछ शर्तें निर्धारित की हैं, जिनमें अनिवार्य नोटिस भी शामिल है, जिनका अधिकारियों को संपत्ति को ध्वस्त करने से पहले पालन करना होगा।

2022 में नागरिकता अधिनियम विरोधी प्रदर्शनों के दौरान इस प्रथा ने गति पकड़ी और तब से हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अक्सर दंगों के बाद इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। विनाश के पैमाने का अंदाजा लगाने के लिए, 2022 और 2023 के बीच, स्थानीय, राज्य और केंद्रीय अधिकारियों ने 1,53,820 घरों को ध्वस्त कर दिया, जिससे 7,38,438 लोग बेघर हो गए। न्यायालय ने इन विध्वंसों को चुनौती देने वाले कार्यकत्र्ताओं और पीड़ितों द्वारा लाई गई याचिकाओं की एक शृंखला को संबोधित किया। इसने इस प्रथा को अवैध घोषित किया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया:

-उचित प्रक्रिया के बिना व्यक्तियों को दंडित करना ‘कानूनविहीन स्थिति’ बनाता है जहां ‘शक्ति ही सही है।’ कार्यकारी अधिकारी अभियुक्तों की संपत्ति को नष्ट करके उन्हें दंडित करने के लिए न्यायाधीश के रूप में कार्य नहीं कर सकते।
-आपराधिक न्याय शास्त्र यह मानता है कि जब तक दोष साबित न हो जाए, तब तक अभियुक्त निर्दोष है। 
-घर को ध्वस्त करने से पूरा परिवार दंडित होता है। सामूहिक दंड का एक रूप जो असंवैधानिक है। सर्वोच्च न्यायालय ने उन कदमों को स्पष्ट किया है जो किसी भी अवैध संरचना को ध्वस्त करने से पहले अधिकारियों को उठाने चाहिएं। उचित प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करने के लिए, निम्नलिखित उपायों की शृंखला को रेखांकित किया गया है: सबसे पहले, किसी भी अवैध संरचना को ध्वस्त करने से पहले कम से कम 15 दिन की मोहलत दी जानी चाहिए।

दूसरा, विध्वंस के लिए आधार स्पष्ट होने चाहिएं, तथा नोटिस में विशिष्ट उल्लंघनों और विध्वंस के लिए कानूनी आधार का विवरण होना चाहिए। इसे संबंधित कलैक्टर और जिला मैजिस्ट्रेट के समक्ष भी प्रस्तुत किया जाना चाहिए।तीसरा अपील के अधिकार से संबंधित है, जिसके तहत आरोपी को व्यक्तिगत रूप से आदेश को चुनौती देने का मौका मिलना चाहिए। विध्वंस के लिए अंतिम आदेश 15 दिनों तक लागू नहीं किया जाएगा ताकि पीड़ित व्यक्ति अदालतों का दरवाजा खटखटा सके। चौथा डिजिटल रिकॉर्ड से संबंधित है तथा एक पोर्टल प्रक्रिया का दस्तावेजीकरण करेगा, जिसमें नोटिस, प्रतिक्रियाएं और अंतिम आदेश शामिल हैं। पांचवां, विध्वंस की वीडियोग्राफी की जानी चाहिए तथा अधिकारियों को जवाबदेही के हित में प्रक्रिया में भाग लेने वाले नागरिक और पुलिस अधिकारियों को एक रिपोर्ट भेजनी चाहिए। इस फैसले का सबसे महत्वपूर्ण पहलू सरकारी अधिकारियों पर लगाया गया व्यक्तिगत दायित्व है, जो प्रभावी रूप से उनकी भूमिकाओं में जवाबदेही के उच्च मानक को समाहित करता है। यदि वे न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करते हैं, तो उन्हें ध्वस्त संपत्तियों की भरपाई के लिए अपनी जेब से भुगतान करना होगा। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यह प्रावधान अधिकारियों को राजनीतिक रूप से प्रेरित आदेशों को आंख मूंदकर लागू करने से रोक सकता है।

यह स्पष्ट कर दिया गया है कि कार्यकारी अधिकारियों द्वारा सत्ता का दुरुपयोग न्यायालयों द्वारा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। महिलाओं, बच्चों और वृद्धों को रातों-रात सड़कों पर घसीटते हुए देखना नि:संदेह एक सुखद दृश्य नहीं है। अधिकारियों को उनका ध्यान रखना चाहिए ताकि उन्हें तकलीफ न हो। हम अधिकारियों को ‘शक्ति ही अधिकार है’ की अवधारणा से निर्देशित होने की अनुमति नहीं दे सकते। हालांकि यह फैसला कानून के शासन को मजबूत करता है, लेकिन इसका प्रभाव अनिश्चित बना हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले अक्सर संवैधानिक सिद्धांतों की पुष्टि करते हैं लेकिन निरंतर उल्लंघन को रोकने में विफल रहते हैं। 

उल्लेखनीय रूप से, न्यायालय ने पीड़ितों की तत्काल जरूरतों, जैसे कि मुआवजा या अपराधियों को जवाबदेह ठहराना को संबोधित नहीं किया। इससे न्याय का प्रश्न अनसुलझा रह जाता है। कई प्रभावित व्यक्ति अपने नुकसान के लिए उचित मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं। अंत में, यह कहा जाना चाहिए कि ‘बुलडोजर न्याय’ के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट की कड़ी आलोचना कई परिवारों के लिए देर से आई हो सकती है जो अधिकारियों द्वारा सत्ता के दुरुपयोग  के शिकार थे। यहां  मानवीय स्पर्श की आवश्यकता है ताकि महिलाओं और बच्चों को पीड़ा न हो। हालांकि, सबसे बड़ा सवाल यह है कि कौन सुनिश्चित करेगा कि लोगों को कार्यपालिका के गलत न्याय का सामना न करना पड़े। इसके लिए हमें नागरिकों की सुरक्षा के लिए नए मानदंड बनाने होंगे।-हरि जयसिंह
 

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